लाख चाहा किया भूलें वो फिर भी याद आते हैं
अगर बनता है हर इंसान केवल एक मिट्टी से
कहो जज़्बात अपने दिल के वो कैसे छुपाते हैं
हरे हैं घाव सीने के मगर उनकी ये फितरत है
भूल के सारी पीड़ा को वो केवल मुस्कुराते हैं
भले ही सामने सबके मैं पत्थर सा कहूँ खुद को
मगर तन्हाई के आलम तो मुझको भी रुलाते हैं
मुहब्बत जो भी करते हैं भुला सब कुछ यहाँ मधुकर
बुरे हालात में भी साथ वो हर पल निभाते हैं