मुझको मालूम है तूने मुझे दिल से निकाला है
तेरा दर आज भी मेरे लिए लेकिन शिवाला है
एक तेरे साथ में ही ज़िंदगी आबाद लगती थी
बड़े जतनों के संग इसको मैंने तन्हा संभाला है
लाख तूफ़ान आने पर भी जो डगमग नहीं होती
वही बाती तो जीवन भर सदा करती उजाला है
ज़िंदगी किस तरह होगी ये तय करते हैं बस पासे
मुझे तो हार दी जब भी मैंने इनको उछाला है
जिसे जो चाहिए वो ही यहाँ मिलता नहीं मधुकर
ना जाने कौन सा ये खेल कुदरत का निराला है