छुपाया बहुत खुद को नैन पर फिर भी मिल गए
असर ऐसा हुआ दिल पे फूल खुशियों के खिल गए
खौफ ने इस कदर घोला है ज़हर फ़िज़ा में शहर की
लाख जज़्बात हैं दिल में मगर लब कब के सिल गए
ज़लज़ला लाने वालों ने तो कमी कोई भी ना छोड़ी
जड़े जिनकी गहरी थीं दरख़्त वो सब भी हिल गए
फूल पाने की कोशिशें ना मेरी परवान चढ़ सकीं
फूल के पात झर गए और मेरे तो हाथ छिल गए
दूर वो क्या हुए मधुकर जीवन के सफर में आज
यूँ लगता है मानो छोड़ के सारे महके अनिल गए
शिशिर मधुकर