भले ही घाव भर जाएं निशां तो फिर भी रहते हैं
मुहब्बत के गमों को आज हम तन्हा ही सहते हैं
वो पत्थर हैं ज़माने से कभी कुछ भी नहीं बोला
मगर हम उनसे लिपटे आज भी झरने से बहते हैं
बड़ी चिंता है दुनिया को कहीं वो बात ना कर लें
तभी जज्बात मन के आज वो नज़रों से कहते हैं
कटेगी ज़िन्दगी खुशहाल हो बस साथ में उनके
महल पर अपने ख्वाबों के निरी रेती से ढहते हैं
इतनी खुदगर्ज है दुनिया बदलते वक्त में मधुकर
कफ़न खुद की मय्यत का हम खुद ही से तहते हैं
शिशिर मधुकर