मुझे तो हार मिलती आई है संगदिल ज़माने में
मुहब्बत के लिए मैं ज़िन्दगी भर प्यास से तड़पा
सुबह से शाम हो जाती है बस रिश्ते निभाने में
कोई तो बात है जो दर्द मेरे कम ना होते हैं
ख़ुदा को भी मज़ा आता है बस मुझको रुलाने में
पुकारा जिसने जब मुझको दौड़ कर बांह को पकड़ा
कोई तो हाथ मेरा थाम ले ऊपर उठाने में
बड़ी मुद्दत हुई है दर्द सीने में उबलता है
मधुकर टूट जाता है बस अब इसको छुपाने में
शिशिर मधुकर