अँधेरे जब कभी इंसान के जीवन में आते हैं
तभी तो चाँद दिखता है ये तारे टिमटिमाते हैं
सरद रातें हुईं लम्बी तो ग़म किस बात का प्यारे
सुबह की आस में फिर से चलो दीपक जलाते हैं
घना कोहरा है राहों में नज़र कुछ भी नहीं आता
चलो फिर से मुहब्बत की घनी बारिश कराते हैं
पात शाखों से झरते हैं रवि मायूस रहता है
सृजन फिर से नया होगा चलो कसमें निभाते हैं
बर्फ जब भी पिघलती है नीर नदियों में बहता है
खुशी का राग कानो में फिर तो झरने सुनाते हैं