तूने जब से मुझको अपनी दुनिया से निकाला है
इक ग़म ही फ़कत चोटिल हो सीने ने संभाला है
तबस्सुम छोड़ के ऐ फूल देख तुझको क्या मिला
ख़ुशबुएं लुट गई सारी और सूखी ये प्रेम माला है
शहर की आबो हवा भी अब ऐसी ज़हरीली हुई
हर नज़र नीची है और जुबां पर लटका ताला है
मेरी बातों ने यहाँ कई अपनों को नाराज़ किया
जुबां कड़वी रही हो चाहे मगर दिल ना काला है
अंधेरे कितना भी मधुकर यहाँ तुम्हें डराया करें
पार उनके चलो हरदम जहाँ पर बस उजाला है
शिशिर मधुकर