कमबख्त जुबां ऐसी है,
कि अपने लिए भी,
लड़ ना पाए।
कोई तुम्हे नोच खाए,
फिर भी तुम्हारे मुंह से,
उफ्फ तक ना आए।
क्या करना ऐसी समझदारी का,
कि सामने वाला तुम्हें,
इस्तेमाल करके निकल जाए।
18 अक्टूबर 2024
कमबख्त जुबां ऐसी है,
कि अपने लिए भी,
लड़ ना पाए।
कोई तुम्हे नोच खाए,
फिर भी तुम्हारे मुंह से,
उफ्फ तक ना आए।
क्या करना ऐसी समझदारी का,
कि सामने वाला तुम्हें,
इस्तेमाल करके निकल जाए।
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मुझे कविता और कहानी लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है। मन में कुछ भावनाएं और विचार आते है, उन्हें लिख लेती हूं । उम्मीद करती हूं मेरा लिखा हुआ आप लोगो को पसंद आए। यदि अच्छा लगे तो कमेंट करके मेरा प्रोत्साहन बढ़ाइएगा।D