अकसर वो पेड़ जैसे,
मुझको देखा करता है।
मेरी खामोशी को,
सुनके भी चुप रहता है।
अकारण ही मेरे साथ,
होने का सुख देता है।
उसकी छाया में भूल जाती हूँ,
अपने जीवन के संघर्ष।
उसके साथ होने से मिलता है,
मेरे इस मन को बल।
20 अगस्त 2024
अकसर वो पेड़ जैसे,
मुझको देखा करता है।
मेरी खामोशी को,
सुनके भी चुप रहता है।
अकारण ही मेरे साथ,
होने का सुख देता है।
उसकी छाया में भूल जाती हूँ,
अपने जीवन के संघर्ष।
उसके साथ होने से मिलता है,
मेरे इस मन को बल।
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मुझे कविता और कहानी लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है। मन में कुछ भावनाएं और विचार आते है, उन्हें लिख लेती हूं । उम्मीद करती हूं मेरा लिखा हुआ आप लोगो को पसंद आए। यदि अच्छा लगे तो कमेंट करके मेरा प्रोत्साहन बढ़ाइएगा।D