एक दिन आईने के सामने,
जब मैंने खुद को देखा,
क्या है वजूद मेरा,
खुद से मैंने पूछा।
हंसता खेलता वो चेहरा,
क्या हो गया है,
जीवन की उलझन में,
जैसे सो गया है।
कहि खिलखिलाती हंसी थी जहां,
आज वो जैसे खो गई है,
चेहरे की रंगत तो जैसे,
बेरंग हो गई हैं।