मेरी मां छूट गई,
जैसे जग छूट गया।
मेरी मां रूठ गई,
जैसे रब रूठ गया।
कोई ना समझा,
मेरी परेशानी।
जैसे मेरे दिल का,
एक टुकड़ा टूट गया।
क्योंकि मरहम लगाने वाला,
मुझसे रूठ गया।
2 सितम्बर 2024
मेरी मां छूट गई,
जैसे जग छूट गया।
मेरी मां रूठ गई,
जैसे रब रूठ गया।
कोई ना समझा,
मेरी परेशानी।
जैसे मेरे दिल का,
एक टुकड़ा टूट गया।
क्योंकि मरहम लगाने वाला,
मुझसे रूठ गया।
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मुझे कविता और कहानी लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है। मन में कुछ भावनाएं और विचार आते है, उन्हें लिख लेती हूं । उम्मीद करती हूं मेरा लिखा हुआ आप लोगो को पसंद आए। यदि अच्छा लगे तो कमेंट करके मेरा प्रोत्साहन बढ़ाइएगा।D