मेरी मजबूरियों को, अपना हथियार ना समझो।
मेरी खामोशियों को, अपनी जीत न समझो।
टूट के भी, संभलना आता है मुझे।
बिखर के भी, जुड़ना आता है मुझे।
मैं वो नही, जो हार के गिर जाऊंगी।
में तो वो हूं, जो जल के भी कुंदन बन जाऊंगी।
22 अगस्त 2024
मेरी मजबूरियों को, अपना हथियार ना समझो।
मेरी खामोशियों को, अपनी जीत न समझो।
टूट के भी, संभलना आता है मुझे।
बिखर के भी, जुड़ना आता है मुझे।
मैं वो नही, जो हार के गिर जाऊंगी।
में तो वो हूं, जो जल के भी कुंदन बन जाऊंगी।
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मुझे कविता और कहानी लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है। मन में कुछ भावनाएं और विचार आते है, उन्हें लिख लेती हूं । उम्मीद करती हूं मेरा लिखा हुआ आप लोगो को पसंद आए। यदि अच्छा लगे तो कमेंट करके मेरा प्रोत्साहन बढ़ाइएगा।D