मैं खुश थी, अपने छोटे से घर में,
पर तुमसे बर्दाश ना हुआ।
तोड़ दिया घरौंदा मेरा,
बिछड़ गए मेरे सारे अपने।
रूह जैसे निकल गई है,
अब लाश बने हैं सपने मेरे।
2 सितम्बर 2024
मैं खुश थी, अपने छोटे से घर में,
पर तुमसे बर्दाश ना हुआ।
तोड़ दिया घरौंदा मेरा,
बिछड़ गए मेरे सारे अपने।
रूह जैसे निकल गई है,
अब लाश बने हैं सपने मेरे।
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मुझे कविता और कहानी लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है। मन में कुछ भावनाएं और विचार आते है, उन्हें लिख लेती हूं । उम्मीद करती हूं मेरा लिखा हुआ आप लोगो को पसंद आए। यदि अच्छा लगे तो कमेंट करके मेरा प्रोत्साहन बढ़ाइएगा।D