मेरे बचपन का वो आंगन,
कहीं खो सा गया है।
जैसे मुझे ना पाकर,
वो उदास हो सा गया है।
लौटना तो चाहा था,
बचपन की उन राहों पे।
पर बचपन का हर पहलू,
जैसे गुमनाम हो सा गया है।
29 अगस्त 2024
मेरे बचपन का वो आंगन,
कहीं खो सा गया है।
जैसे मुझे ना पाकर,
वो उदास हो सा गया है।
लौटना तो चाहा था,
बचपन की उन राहों पे।
पर बचपन का हर पहलू,
जैसे गुमनाम हो सा गया है।
10 फ़ॉलोअर्स
मुझे कविता और कहानी लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है। मन में कुछ भावनाएं और विचार आते है, उन्हें लिख लेती हूं । उम्मीद करती हूं मेरा लिखा हुआ आप लोगो को पसंद आए। यदि अच्छा लगे तो कमेंट करके मेरा प्रोत्साहन बढ़ाइएगा।D