shabd-logo

बचपन का आंगन

29 अगस्त 2024

3 बार देखा गया 3

मेरे बचपन का वो आंगन,
कहीं खो सा गया है।
जैसे मुझे ना पाकर,
वो उदास हो सा गया है।
लौटना तो चाहा था,
बचपन की उन राहों पे।
पर बचपन का हर पहलू,
जैसे गुमनाम हो सा गया है।

34
रचनाएँ
कुछ एहसास
5.0
"कुछ एहसास" मेरी कविताओं का संग्रह है। जिसमें मन के भिन-भिन एहसासों का कविता रूपी वर्णन है। ये एहसास हमारे मन के झरोखों से झांकते हुए कागज़ पर उतर आते हैं।
1

वो पेड़

20 अगस्त 2024
6
6
0

अकसर वो पेड़ जैसे, मुझको देखा करता है। मेरी खामोशी को, सुनके भी चुप रहता है। अकारण ही मेरे साथ, होने का सुख देता है। उसकी छाया में भूल जाती हूँ, अपने जीवन के संघर्ष। उसके साथ होने से

2

नियति

20 अगस्त 2024
4
5
0

नियति की साज़िश है, या नियति की ख्वाहिश। नियति की जिद्द है, या नियति की अजमाइश। नियति ही जाने, नियति के खेल। हम तो बस मुसाफिर है, आते जाते महमान। हमे तो बस देना है, नियति का इम्तिहान।

3

क्यों खुद को कम आंके

20 अगस्त 2024
4
5
0

क्यों खुद को कम आंके, खुद का करे सम्मान। दूसरों के लिए हैं जीते आए, अब खुद के लिए जिए एक बार। जीवन है इक बार मिलता, क्यों करे इसे बेकार।

4

मैं जब भी चांद को देखती हूं

20 अगस्त 2024
3
4
0

मैं जब भी चांद को देखती हूं, वो मुझसे बातें करता है। अपनी शीतल छाया से, मेरे दिल में ठंडक भरता है। रोशन करके मेरे जहां को, उसमें खुशियाँ भरता है। मैं जब भी चांद को देखती हूं, वो मुझसे बातें करत

5

थक नहीं सकती मैं

20 अगस्त 2024
3
4
0

थक नहीं सकती मैं, नियति ने मेरी किस्मत में, थकना नहीं लिखा। थक गई मैं, तो सब ठहर जाएगा, सब बिखर जायेगा। मुझे निरंतर चलते रहना है, घड़ी के कांटो की तरह।

6

वो मेरी सहेली

20 अगस्त 2024
3
4
0

वो मेरी सहेली, वो तो है एक पहेली, उससे जब भी बात करो, वो है बहुत अकेली। जिसपे एतबार किया, उसने धोखा दिया, जिससे प्यार किया, उसने हाथ छोड़ दिया। फिर भी हार ना मानी उसने, चल पड़ी अकेली,

7

मन की आवाज़

20 अगस्त 2024
3
4
0

मन की आवाज़, मन की गहराईं से। आपकी अपनी भाषा में, जैसे सोचे वैसे बयां करे। विचारो को उड़ने दे, हवा में घुलने दे। रोशनी को आने दे, मन में समा जाने दे। चिड़िया को चहचहाने दे, कोयल को गाने दे।

8

ख़त्म नहीं होती

20 अगस्त 2024
3
4
0

समय ख़त्म हो जाता है, ख्वाहिशे ख़त्म नहीं होती। जिंदगी ख़त्म हो जाती है, अजमाइशे ख़त्म नहीं होती। रिश्तो की इस भीड़ में, फरमाइशें ख़त्म नहीं होती। हम भी चलें कुछ करने के लिए, पर जिंदगी की रियाय

9

आईना क्या सच बताता है

20 अगस्त 2024
3
4
0

आईना क्या सच बताता है, कभी कहता, तुम हो खुश, कभी उदास, बाहरी रूप दिखाता है, आईना क्या सच बताता है। अंदर-अंदर घुटता मानव, ऊपर से खुश नज़र आता है, जिसे देखो, वो है पागल, बस दौड़ लगाता जाता है,

10

चांद आया मेरे अंगना

20 अगस्त 2024
3
4
0

चांद आया मेरे अंगना, फैला के बांहे ये बोला, उदास हो क्यो, चुप हो क्यों, चांदनी रात मे गुमसुम हो क्यों, तारों की तरह टिमटिमाते क्यों नहीं, हर पल मुस्कुराते क्यों नहीं, ख्वाबों की रोशनी प्यारी हैं

11

जब मैंने खुद को देखा

20 अगस्त 2024
3
4
0

एक दिन आईने के सामने, जब मैंने खुद को देखा, क्या है वजूद मेरा, खुद से मैंने पूछा। हंसता खेलता वो चेहरा, क्या हो गया है, जीवन की उलझन में, जैसे सो गया है। कहि खिलखिलाती हंसी थी जहां, आज

12

बहुत थक गया हूँ

20 अगस्त 2024
3
4
0

बहुत थक गया हूँ, बस थोड़ा आराम चाहता हूँ । जिंदगी की इस भीड़ में, बस एक मुकाम चाहता हूँ। जीने है सपने फिर से अपने, बस कुछ देर का विराम चाहता हूँ। कह दो बढ़ेगा हाथ तुम्हारा मेरी तरफ, बस अपने होन

13

आंसू

21 अगस्त 2024
4
3
2

आंख बंद थी, फिर भी आंसू बह गए। जैसे चुपके से कुछ, कह गए। वो ज़ख्म तो सबको दिख गए, जो बाहरी थे। पर अंदर के जख्मों को, कौन सहलाए। आंखो ने चुपके से दर्द सहा, पर ये आंसू फिर भी निकल आए।

14

कुंदन

22 अगस्त 2024
3
4
0

मेरी मजबूरियों को, अपना हथियार ना समझो। मेरी खामोशियों को, अपनी जीत न समझो। टूट के भी, संभलना आता है मुझे। बिखर के भी, जुड़ना आता है मुझे। मैं वो नही, जो हार के गिर जाऊंगी। में तो वो हूं, जो जल क

15

मैं चली, मैं चली

26 अगस्त 2024
1
2
0

मैं चली, मैं चली। सबने कहा, तू थक जाएगी, गिर जाएगी, ऐसे ही मर जाएगी। फिर भी मैं चली, मैं चली। उम्मीदों के पंख लगाए, आशाओं की आस जगाए। मैं चली, मैं चली। सबने कहा, पंख तो एक दिन कट जाएंगे, आशाएं

16

चांद

26 अगस्त 2024
1
2
0

चांद कितना दूर है हमसे, फिर भी पास है लगता। छू नहीं सकते, फ़िर भी एहसास है देता। सारी दुनिया को देखता, फिर भी चुप है रहता। सब मे एक समान, फिर भी है प्यारा। रात में जो करता है, सारे जग में उजि

17

डायरी

26 अगस्त 2024
1
2
0

डायरी के पन्नो में, इतिहास छिपा रहता है। कोई नही जानता, वो राज़ छिपा रहता है। सिमट जाते है, सब दर्द, आंसू, खुशियां उसमे, हर एक पल का हिसाब लिखा रहता है कभी सहेली, कभी हमराज़, कभी राजदार बन जा

18

मैं चिड़ियां

26 अगस्त 2024
1
2
1

उड़ते उड़ते मस्त गगन में, जा बैठी एक बगिया में। पूछे मुझसे मैना प्यारी, क्या है तेरे आंचल में। मैने बोला हसके उसको, प्यार भरा है, आंचल में। तुम भी चाहे जितना ले लो, ले को झोली भर भर के।

19

मेरी मईया

27 अगस्त 2024
1
2
0

मेरी मईया तू क्यों बिछड़ी, मैं तेरे बाग की कली थी। मेरी मईया तू क्यों रूठी, मैं तुझको देख के खिली थी। तेरे आंगन में बीता बचपन, तू ही मेरी सखी सहेली थी। हवाओं के गर्म झोंके, मैं तेरे आंचल में छु

20

मेरी बेटी

27 अगस्त 2024
1
2
1

उसके छोटे से हाथों ने, जब छुआ मुझे। ममता से भर गया, मेरा आंचल। बचपन की गहराइयों में, खो गया ये मेरा मन। उसकी तिरछी सी मुस्कान से, खिल गया मेरा तन मन। सुकून की राहत मिली, मेरे इस बेचैन दिल को।

21

तू खुश है

31 अगस्त 2024
1
2
1

तू खुश है, क्योंकि मैं उदास हूं। तू जीत गया है, और मैं हताश हूं। तेरी झोली भरी है, और मेरी अभी भी खाली है। तू ये न भूल, तेरे दिए जख्मों को, भरने का दम रखती हूं। मैं आज भी उठकर, तूझसे लड़ने

22

बचपन का आंगन

29 अगस्त 2024
1
2
0

मेरे बचपन का वो आंगन, कहीं खो सा गया है। जैसे मुझे ना पाकर, वो उदास हो सा गया है। लौटना तो चाहा था, बचपन की उन राहों पे। पर बचपन का हर पहलू, जैसे गुमनाम हो सा गया है।

23

मैं खुश थी

2 सितम्बर 2024
1
2
0

मैं खुश थी, अपने छोटे से घर में, पर तुमसे बर्दाश ना हुआ। तोड़ दिया घरौंदा मेरा, बिछड़ गए मेरे सारे अपने। रूह जैसे निकल गई है, अब लाश बने हैं सपने मेरे।

24

मेरी मां

2 सितम्बर 2024
1
2
0

मेरी मां छूट गई, जैसे जग छूट गया। मेरी मां रूठ गई, जैसे रब रूठ गया। कोई ना समझा, मेरी परेशानी। जैसे मेरे दिल का, एक टुकड़ा टूट गया। क्योंकि मरहम लगाने वाला, मुझसे रूठ गया।

25

कान्हा

2 सितम्बर 2024
1
2
0

टूटी मेरी निंद्रा, तो क्या देखा। सामने अपने कान्हा को देखा। बोले मुझसे क्यों दुखी हैं। जो छूट गए, वो बेगाने थे। जो पास है, वो अनजाने है। क्या रोना बेगाने, अनजानों के लिए। इस जग में, मैं ही हूं ब

26

मन के अन्दर मेरे

9 सितम्बर 2024
0
1
0

मन के अन्दर मेरे, कुछ ख़्वाब बसे थे, जो अब टूट गए हैं, ओर तुम कहते हो कि, अफ़सोस भी ना मनाए।

27

मेरी उमर ना पूछो मुझसे

9 सितम्बर 2024
2
3
2

मेरी उमर ना पूछो मुझसे, पूछो मुझसे ज्ञान। कितनी ठोकर खा के, बनी हूं मैं विद्वान। कितना मेरा अनुभव है, कितना है अनुमान। कितने संघर्ष के बाद मुझे, मिला है ये मुकाम।

28

सब कुछ खत्म हो गया मेरा

17 सितम्बर 2024
1
2
1

सब कुछ खत्म हो गया मेरा, बस नाम के लिए जी रही हूं। कुछ भी नही है पास मेरे, बस मुकाम के लिए जी रही हूं। तुमने तो आसानी से कह दिया, कि भूल जाओ सब। पर मैं अभी भी, इंतकाम के लिए जी रही हूं।

29

आप समझ पाते

24 सितम्बर 2024
0
1
0

आप समझ पाते, तो बात ही क्या थी। मेरे सपनो की, औकात ही क्या थी। क्यों अंदर चाहतों को दबाते हम। क्यों अपने आप में ही घुट जाते हम। अब तो सपने आना भी भूल गए। खुशी में गुनगुनाना भी भूल गए।

30

ख्वाहिशें है जगी-जगी

3 अक्टूबर 2024
0
1
0

ख्वाहिशें है जगी-जगी, दिल ने कहा, तू भी चल, उड़ चल कहीं। हर डगर, हर मोड़ की, तलाश है कहीं। जिंदगी में खुशियों की, आस है कहीं।

31

मेरे कन्हैया सुन ले पुकार

10 अक्टूबर 2024
0
1
0

मेरे कन्हैया सुन ले पुकार, तेरे सिवा न मुझे किसी पे एतबार। तेरे सहारे मेरे जीवन की डोर, तूने छोड़ा तो जाऊं किस ओर। ये दुनियां बड़ी ही जालिम, करती है मुझपे अन्याय घनघोर। तू संग हो तो, जीत लू जहां

32

वो कॉलेज के दिन

10 अक्टूबर 2024
0
1
0

वो कॉलेज के दिन, वो बेपरवाह सा मस्त स्वभाव। कभी बंक मारके सर्दी में बाहर धूप सेंकना, कभी सहेलियों संग इठलाना, बलखाना। कभी परिणाम आने पर रोना, कभी खुश हो जाना, कभी मस्ती में गुनगुनाना, कभी शांत ह

33

मैंने सफेद ही रखा अपनी चादर को

17 अक्टूबर 2024
1
1
0

मैंने सफेद ही रखा अपनी चादर को, दाग ना कभी लगने दिया। तेरी बेवफाई का दाग ऐसा लगा, की छूटता ही नहीं है। तेरे जुल्मों सितम का आलम, टूटता ही नहीं है। हम तो अपना सब कुछ हार गए, तेरे कारण। पर तेरे

34

कमबख्त जुबां

18 अक्टूबर 2024
0
1
0

कमबख्त जुबां ऐसी है, कि अपने लिए भी, लड़ ना पाए। कोई तुम्हे नोच खाए, फिर भी तुम्हारे मुंह से, उफ्फ तक ना आए। क्या करना ऐसी समझदारी का, कि सामने वाला तुम्हें, इस्तेमाल करके निकल जाए।

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए