तुम्हारे आने के बाद भी
किताब डूबने के इंतजार में
खड़ा रह सके कोई वियोग
खोए राहगीर की तरह
उतना दुःख नहीं दे सकता
जितना मकड़ी भर आकांक्षा
तुम्हारे एक सांस में बस जाती है
तुम्हारी आत्मा में कोई कांटा
खिड़की से कभी नहीं कूदा
जबकि मन के कोने का कुछ बादल
प्रतीक्षारत बिछावन की तरह
वसंत बनने को अकुला उठा था
और थोड़ा सा शरीर
चारों ओर बिछाकर भी
कभी वियोग कविता नहीं बन पायी थी
अहसास के कोटरों में
तुम कविता लिखने से बची रही
और थोड़ा थोड़ा गंध
तुम्हारे उस बोतल में समा गया
जिसे न तुम ठीक से समझ पायी
न मैं ही कभी
हमेशा याद रखने की स्मृति में
ठीक तुम्हारे नाक के नीचे
संबंधों के कई धूप
आंच और हाथों के बीच से
प्रतिक्रियाओं के सभी दरवाजों को
बिल्कुल खुला रखकर भी
तुम्हारे श्रृंगार बॉक्स में जा पहुंचा
और रोटी के शक्ल में
तुम्हारे अंतस के सभी आंच
राख बनने से बची रही
यही बातें मुझे
धूप सेकने नहीं देती
न नदी में तैरने
डूब के वे अंतिम बिंदू
अभी भी
उसी चौराहे पर
मिलने की आतुरता में है
जहां पहली बार हम मिले थे.