मैं दरअसल हर चीज के प्रति
दिल की गहराईयों से उठती चीख की तरह
हमेशा से किनारा करता गया
इसलिए खुद ही अपनी दीवार को
अनदेखे क्षण के हर कोण से
पिंजरे में बंद उस तोते की तरह
अस्तित्व के गहरे रहस्य में
चट्टानों से भारी शब्दों से
ताजिंदगी उधेड़ता ही गया
निर्दिष्ट राह पर
अब मुझे किसी का इंतजार नहीं
अभिसार और मिलन के दायरों से
किसी एक तरफ बढ़ते हाथ
वक्त के गुम्बद में
निरपेक्ष अस्तित्व का साया
सुबह की रौशनी में धुंधला जाएगा
और कई दरवाजे होगें
जिन्हें दस्तक देने से पहले
एक सूखा हुआ पत्ता
देह की झाड़ियों से निकलकर
पांव से कुचला जाएगा
किसी भी नक्शे में
यथार्थ क्षितिज से घिरी
सात परतों का अंधकार
खाली हाथों में सिमट आया है
और मेरे प्रवेशद्वार में
कोई चट्टान
मेरी भीतरी सतह में
अनदेखे और बेआवाज़
तिलमिला रहा है शायद
कि बारिश की बौछार को सुनता
लहरों पर तैरती हुई एक कश्ती
उसी प्रवेशद्वार पर
कभी न खत्म होने वाली राह पर
आगे बढ़ने को विवश है
अभी मेरे आकाशगंगा को
उछाले गए सवालों से घिरना है
और जाल में फंसा हुआ
एक और जाल बुनना है
कि मेरे दीवार के साये में
कोई कुत्ता भले ही उसांस लेता रहे
पर बादलों के बीच से सूरज
अनदेखे क्षण के हर कोण से
चीजों को आश्वस्त करने से रहा
मैं दरअसल हर चीज के प्रति
दूर तक खुला हुआ बर्तन हूं.