मैं
पौधे का वह फूल हूं
जिसे आजतक
किसी ने भी
सहजने की कोशिश नहीं की है
मैं
किताब की वह पंक्ति हूं
जिसे आजतक
किसी ने भी
पढ़ने की कोशिश नहीं की है
मैं
एक ऐसा कोरा कागज हूं
जिसमे आजतक
किसी ने भी
हस्ताक्षर तक नहीं किया है
मैं
चूल्हे की वह आंच हूं
जिसे आजतक
किसी ने भी
अंतस में उतारने की कोशिश नहीं की है
मैं
आकाश का वह पिंड हूं
जिसे आजतक
किसी ने भी
प्रयोगशाला में नहीं ला सका है
मैं
कचड़े में फेंका गया वह चित्र हूं
जिसे आजतक
किसी ने भी
ड्राईंगरूम में नहीं टांगा है
मैं
जंगल से बहती वह नदी हूं
जिसे आजतक
किसी ने भी
सही मंजिल नहीं दिखाई है
मैं
बच्चों का वह खिलौना हूं
जिसे आजतक
किसी ने भी ठीक से समझ ही नहीं पाया है
मैं
वह कविता हूं
जिसे आजतक
किसी ने भी
आंदोलन नहीं बना सका है
मैं
वह हूं
जिसे आजतक
किसी ने भी क्या
खुद मैं भी
ठीक से पहचान नहीं पायी हूं.