नदी की लय और गति
अभी उतनी गंभीर नहीं हुई है
कि हमारे आंकने की शक्ति
वहीं जाकर सीमित हो जाए
और सभी अर्थों के ऊपर
एक मूल्यांकन का रेशा भी
अभी कहां उघड़ रहा है
नदी की लय
अभी जीवन के विसंगति में
ताल ठोकने को मजबुर है
और गति की सीमा
अभी जीवन के झंझावत में
सभी सीमा तोड़ने को आतुर है
ऐसे में जहां
न होने की संभावना बनती है
वहीं हमारे समय की गति
मुन्ने को खिलौने देती है
तो मुन्नी को चुनरी
खेतो को खाद देती है
तो आंगन को रवानगी
हम यह जरूर देखते हैं
कि हरियाली के पक्ष में
कितने ही घर
तिनकों की खोज में है
और सवालों के आईने में
कितने ही सपने
मंजिल की खोज में हैं.
हम नहीं जान पाते
कि कैसे जीवन के एक क्षण में
गति की सीमा
हमारे जीवन को तय करती है
और लय की आवारगी में
सभी गंभीर प्रश्न
एक द्वीप में
तब्दील होने लगते हैं.