मैं जब
घर से बाहर निकलता हूं
अपनी आंखों को दराज में
कानों को अलमारी में
और जुबान को
किताब के भीतर
बंद कर जाता हूं
मैं जब
घर वापस आता हूं
अपनी आंखो को दराज से
कानों को अलमारी से
और जुबान को किताब से
निकाल कर लगा लेता हूं
मैं इस तरह
आश्वस्त हो जाता हूं
कि मैं डर के भीतर जीता हूं
और बाहर के भीड़ से
अपने आंख, कान और जुबान को
बस बचा भर लेता हूं.