एक रात
जब आकाश
बैगर तारों के सूना था
और बिना चांद के
सन्नाटा पसरा था
बहुत चुपके से
वह आई थी
खेत खलिहान को लांघते हांफते हुए
और कांप रहे थे
उसकी कुछ आप्त स्वर
और मैं खोज रहा था
चेहरे की वे रेखाएं
जहां जख्म होने की संभावनाएं थी
हाथ में ग्लास थामे हुए
उसी रात
जब भोर आकाश
बैगर सूर्य के
कसमसा रहा था
और बिना चहचहाट के
अंगड़ाई तोड़ रहा था
वह सोई हुई थी
पलंग की नरम बिछावन में
बैगर उतावली के
सपनों की चादर ओढ़े हुए
उसी सुबह
जब मैं खड़ा था
आईने के सामने
बैगर कमीज़ के
वह चाय लेकर आई थी
चेहरा खिला था या नहीं
मैं भूल गया था
मेरे हाथ पर्स में चले गए थे
और वह
दरवाजे को ताक रही थी
उसी समय
मुझे लगा
इस डाक बंगले के पीछे से
सूर्य हंस रहा था
मुझे ठीक से नहीं मालूम
कि मेरे घृणित हृदय पर
या उस बेचारी की लाचारी पर
उस रात के बाद
आईने के सामने
मैं कभी भी खड़ा नहीं हो सका.