रोशनी का बुरा दिन
देखने योग्य बची कहां है
कि खिझा हुआ अंधकार
अपने लंबे नाखूनों वाले पंजे फैलाकर
चपेट ले सारी रौशनियों को
और कोई त्रासद संगीत
नेपथ्य में बज उठे
तब क्या
देखने योग्य चीजें
बाजार में उतारे जाएंगे
और क्या
सुनाएं जा सकेंगे
चीखते हुए बच्चों को
ख़ामोश पलों में
रोशनी का बुरा दिन
महानगर की चिकनी सड़कों में
और पंच सितारा के डांस फ्लोर में
मैंने कभी भी नहीं देखा
हां बस स्टैंड के पड़ाव में
जांघ उघारे लोगों को सोते जरूर देखे हैं
और हैसियत की टोपी में
कुछ स्कार्फ भी उड़े हैं
उस चांदनी रात में
जब पीली रोशनी को
मारुति में खदबदाते हुए देखा
उस समय मेरी समझ
गैस और रिश्तो के भटकाव में
कहीं भी भटकने को तैयार न था
और वही हुआ
कि वह बुरा दिन
रोशनी से चौंधियाता रहा
पर रोशनी का बुरा दिन
कभी भी प्रकट नहीं हुआ
यही मेरा सबसे बुरा दिन था.