हम यह भी नहीं बता सकते
कितने कंकड़ पत्थर
हर अफरा तफरी मे
महाद्वीप में तब्दील हो जाते हैं
और उस रेत को ही लो
जो आंखों में गड़ने से बची रही है
क्या अपनी लंबी बाहों को पसारते हुए
कभी भी उनिंदी सपनों में
किसी हवा से बेमानी की है
कब से मंच के पीछे खड़े
एक अदृश्य हाथ
समय के धागों को पकड़कर
हर उस रेत को पाटता रहा है
नदी के दोनों छोरों में
लगता है हमने इस विषय को
विस्मृत होते संस्कार के हदों में
अकेला भटकने को छोड़ दिया है
क्या वे जले हुए
जंग खाये हाथ
टाल मटोल करते सपनों को
किसी मंच पर धकेल पाएगा
या फिर अपनी गर्दन से फंदे उतारकर
यूं ही सड़ गल गए पर्दों को
रणमेल के किसी द्वीप में
अवांछित सा पहरा देता रहेगा
वे पृष्ठ जो सिर्फ
हमें इतिहास में ले जाते हैं
हम यह भी नहीं बता सकते
कि आखिर कितने आयामों में
कोई विस्फोट मौत में बदलता है
और बाज की नजर सा
खंडहरों की करुणा को
कामोंमाद की विकृत मुद्राओं में
हम कैसे टांक दें
किसी बटन की तरह
हम कंकड़ पत्थर तो हैं नहीं
कि हमें किसी चौराहे पर गाड़ दो
किसी शहीदी प्रतिमा के शक्ल में
और हर दिन कई कुत्ते
टांग उठाते रहे
आपने चुनौतियों से भरी
जरूर लाल आकाश को देखा होगा
देखा होगा कि
कैसे आंगन के धूप
हमारे सपनों में तैर जाते हैं
फिर हम कैसे बता दें
कि धरती सिकुड़ गई है
और हमारी देह के परे
रेत की आंधी उमड़ी है.