इस बार
न तुम्हें
न हमें
सुदूर क्षितिज तक जाना है
ना ही
पैबंद को छिपाना है
उस दीवार के पीछे
जहां असामयिक समय
कुछ ऊहापोह में
उसी जिद के पीछे भाग रही है
जहां हमारा समय ठहर गया है
इस बार
एक हरा पर्वत
मुस्कुराता सा सामने खड़ा है
और यौवन के भार से
कुछ सरका है
हमारे खाली समय में
जिसे न हमने
न तुमने
ठीक से कभी पहचाना है
इस बार
इक इठलाती नदी
मचलने को आतुर है
और मन के किसी कोने से
जो संगीत झनक उठी है
वह हमारे खाली हाथों में
न झुनझुना पकड़ा सका है
न ही कोई चाकू
कि रोका जाए समय को.