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समाज

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जब हरीश के पिता के समझाने पर माया ने यह स्वीकार नहीं किया कि वह हरीश को अपना बेटा समझकर उसे अपने साथ रखने के लिए तैयार हो जायेगी। तो हरीश के पिताजी ने उसे अपने माता पिता के साथ रखना ही उचित समझा। 

------ -----गनपत----- (--कहानी अंतिम क़िश्त)( वाली जगह पर काम करने की ज़िम्मे गैस चेम्बर में डालकर उनको मौत का तोहफ़ा देते थे )-- आगे--गारी के रुकते ही दो कर्मचारी गण नीचे उतरे । उनमें से एक कर्मचारी को

हैलो सखी।   कैसी हो। आज ही कुरियर वाला हमे हमारा ईनाम देकर गया है। हमारे छोटे सपूत दौड़ कर गये और कुरियर वाले से ईनाम लेकर सब को दिखाया कि हमारी ममा ने ईनाम जीता है ।सच मे सखी बड़ी खुशी हो र

नया साल मुबारक होखट्टी-मीठी यादों के पल, आज अलविदा कह गये।कहीं खुशियां मिली किसी को,कहीं गम किसी को दे गये।भूल जाओ सब अब वो यादें,जो यादें बनकर रह गई।अभिनन्दन करें नूतन पल का,अब नई सबेरे आ गई।मान

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गर्मियों के दिन थे। सुबह-सुबह सेठ जी अपने बगीचे में घूमते-घामते ताजी-ताजी हवा का आनन्द उठा रहा थे। फल-फूलों से भरा बगीचा माली की मेहनत की रंगत बयां कर रहा था। हवा में फूलों की भीनी-भीनी खुशबू बह र

सभी पात्र व घटनाएं काल्पनिक है इनका जीवन से कोई  संबंध नहीं हैलेखक डॉ आकाश कुमार का यह उपन्यास मोहब्बत का इंतजार पर आधारित हैमोहब्बत अंधी होती है जिसे हो जाए वह उसे पाने की बेपनाह कोशिश करता

वृंदा ने गहरी श्वासं लेकर कहाँ।...मै अपने काम में इतनी खो गई कि घर का ख्याल ही नहीं रहा। एक प्रयोग को आखरी सफ़लता तक पहुँचाने में एकाग्रता का कितना महत्व होता हैं।नये-नये प्रयोग को ,सफ़ल और समाज के कल्य

  उधर कृपा अपनी जीवन की गाड़ी को धीरे-धीरे आगे बड़ा रहा था।ईश्वर पर विश्वास, दृढ़-संकल्प लगन का ही परिणाम था कि छोटी सी दुकान बड़ी बन गई थीं।शादी,पार्टियों,उत्सवों समारोह में जूस सप्लाई का काम मिल जा

दरबाजे पर निशान्त ने घंटी बजाई।... सुनैना ने दरबाजा खोला तो सामने निशान्त था। निशान्त सुनैना को देखकर गले से लिपट गया एक मासूम बच्चे की तरह।....रोते-रोते कहने लगा।माँ,माँ मुझे बचालो। सुनैना की आँखे भर

------ -----गनपत----- ( कहानी  (इस बीच गनपत के गांव से खबर आई कि उनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया है । गनपत आनन फ़ानन में अपने गांव चला गया ) इससे आगे। वो धारावी वाले घर को झुमरू के भरोसे

(पहला भाग पढ़कर कुछ पाठकों की प्रतिक्रिया आई कि न्यायालय अक्सर अपराधियों और आतंकवादियों के मानवाधिकार ही देखते हैं और उसी के अनुसार अपना फैसला सुनाते हैं । न्यायालयों को आज तक पीड़ित पक्षकारों के मानवाध

प्रिय सखी।  कैसी हो ।आज गाना गाने का मन कर रहा है पूछोगी नही कौन सा ।यही "इंतजार है है है तेरा इंतज़ार है।अब तुम कहोगी सखी तो बोरा गयी है । नही सच मे मुझे इंतज़ार है अपने ईनाम आने का ।अब ये नही प

पाठकजनों ने अभी तक भाग-01 पढ़ा, अब भाग- 02 पढ़िए:- भविष्य के लिए कुछ नहीं किया। जिस कारण से उस व्यक्ति का मानव जीवन व्यर्थ गया। कबीर जी ने कहा है कि:- क्या मांगुँ कुछ थिर ना र

आज सुबह जल्दी उठने का मन नहीं हो रहा था क्योंकि कल देर रात तक मैं प्रतिलिपि पर एक लेख लिख रही थी लेख का शीर्षक है आधुनिक काल में वानप्रस्थाश्रम कितना प्रासंगिक हो सकता है। इसलिए सुबह उठने का मन नहीं

( राजस्थान में भीलवाड़ा जिले की सत्य घटना पर आधारित कहानी ) राजस्थान उच्च न्यायालय में आज एक अजीब सा केस लिस्टेड था । हत्या के अपराध में सजा काट रहे अपराधी की पैरौल का मामला राजस्थान उच्च न्यायालय

बेड टच.....आखिर होता क्या हैं ये टच.... जब हम छोटे थे तो हमारे बड़े हमें समझाते थे... आज हम बड़े हुए हैं तो हम अपने बच्चों को समझाते हैं...। जब कोई हमारे अंत: अंगों को हमारी इजाजत बिना छुए औ

कुनाल की मौत से कभी पर्दा नहीं उठ पाता.... उसकी मौत को सामान्य मृत्यु मान कर सभी अपने आप में व्यस्त हो जाते.... और ब्रजमोहन की दरीदंगी कभी सामने ना आतीं अगर उस संस्था में एक और किस्सा ना होता तो...।&n

जब तक यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान नहीं होता तो जन-साधारण की धारणा होती है कि:-1) बड़ा होकर पढ़-लिखकर अपने निर्वाह की खोज करके विवाह कराकर परिवार पोषण करेंगे। बच्चों को उच्च शिक्षा तक पढ़ाऐंगे। फिर उनको रोजगा

       वैसे कहते है की दो लडकिया कभी दोस्त नहीं होती, अगर हुवी तो भी ज्यादा दिनों तक दोस्त नहीं बनी रह सकती, हमारी कहानी है तीन दोस्तों की जूही, शामला और उनके दोस्ती का सबसे मजबूत

निशान्त ने घर तो पहले ही छोड़ दिया,श्रेया की सुनैना की चौक-झौक रहती थी।सुनैना और श्रेया में छत्तीस का आँकड़ा रहता था।निशान्त काले धंधे का  भाई(डॉन)था।निशान्त के नाम की साफ़-सुधरी छबि थी।अशान्त नाम स

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