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*इस संसार में बिना आधार के कुछ भी नहीं है ! जिस प्रकार एक वृक्ष का आधार उसकी जड़ होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का भी एक आधार होता है | सनातन धर्म के आधार हनारे धर्मग्रन्थ माने जाते हैं

मेरा  शहर ( कहानी दूसरी क़िश्त)( अब तक -यह देख मोहन डर जाता है । उसे लगता है कि एक अन्जान शहर में अन्जान सोसायटी में एक अन्जान बुजुर्ग के घर में बैठा हूं। और वह बुजुर्ग बेहोश है । ऐसे में मैं क्या

डायरी दिनांक २०/०४/२०२२   शाम के पांच बजकर पचास मिनट हो रहे हैं ।   कई बार मनुष्य कुछ कामों को करने में असहज महसूस करता है। स्थिति तब और ज्यादा भीषण बन जाती है जबकि वह कार्य अति आवश्यक हो। &

दूसरा अध्याय - सुख सागर की संक्षिप्त परिभाषा | जीने की राह | Writer- Sant Rampal Ji Maharaj सुख सागर अर्थात् अमर परमात्मा तथा उसकी राजधानी अमर लोक की संक्षिप्त परिभाषा बताई है:-शंखों लहर मेह

हैलो सखी कैसी हो।आज मेरा मन उदास है ।जब कोई लेखक मन से कोई काम करे और उसकी पेमेंट ना आये तो उसे बुरा लगता है हमारे साथ ऐसा हो रहा है एक मंच के लिए हम सहलेखन कर रहें है हमने इतनी मेहनत करके दस पार्ट लि

हरीश के दादा और दादी के शरीर में चलने फिरने के लिए बिल्कुल ऊर्जा नहीं बची थी। उसके दादा थोड़े बहुत चल-फिर लेते थे। लेकिन हरीश की दादी पैरों से लाचार हो गई थी उसकी दृष्टि भी कमजोर हो गई थी। उसे दिखाई द

       इस चमचमाती रात में,     उनकी हर बात में, मैं इस    तरह ग़ुम हो जाती हूँ, कि     रहता नहीं मुझे कुछ भी याद,    बस में उनकी या

दिन, महीने, साल बीत गए, उमर निकल गई टेंशन में। बचपन में पढ़ाई की और, बुढ़ापा गुजरा पेंशन में। गरीब को खाने की और, अमीर को खोने की टेंशन। आम आदमी को रहती, हमेशा महंगाई की टेंशन। शादीशुदा को बीवी की, कु

                              1. पथएक विशाल सा पहाड़ है खड़ा। अनेक पथ को खा गयाये दानव बड़ा.. कभी किसी पुराण काल मे

दहेज का दानव " उसने अद्वैत से पूछ ही लिया कि आखिर मुझमें क्या कमी है जो तुम मुझे ठुकराकर मोना से शादी कर रहे हो"?? " सच ममता मैं तो रमा के साहस को देखकर दंग रह गई रमा ने पूरी महफ़िल के सामने यह प्रश्न

लोगों की लाइफस्टाइल बदल रही है  सुनसान रातें चमचमाहट में बदल रही हैं  कानफोड़ू संगीत में पगलाते हुए लोग  डी जे की धुन पर हसीनाएं थिरक रही है  देर रात तक पार्टियां करने का चलन 

                           19 - apr - 2022क्या सचमुच मुझे ये डायरी लिखनी चाहिए पर मैं रोज - रोज लिखुंगा क्या इसमें। लिखने लायक कोई

मेरा शहर ( कहानी  प्रथम क़िश्त )मोहन यादव, मुकुंद वर्मा और युनूस पटेल तीनों छत्तीसगढ के एक शहर बिलासपुर के निवासी हैं । तीनों 8 वीं के छात्र हैं । और तीनों के मद्ध्य गहरी दोस्ती है । ये तीनों

डायरी दिनांक १९/०४/२०२२ शाम के छह बजकर पांच मिनट हो रहे हैं ।   जैसे जैसे गर्मी बढ रही है, ठंडी वस्तुओं की खपत बढ रही है। इस बार नीबू के दाम आसमान पर चढ़ रहे हैं। मजेदार बात है कि बाजार में हर व

हास्य रस में रहने दो बंता को बंता और संता को संता जाति धर्म न आए बीच में मज़ा ले सारी जनता☺️😄

"तुम बिन चैन कहाँ" कल तुम मुझसे रूठ गए, लगा कि दुनिया रूठ गई मुँह में नाम भगवान का और मन में उदासी मैं तुम्हारी खुशामद करती रही सब कुछ भूल तुम्हें मनाती रही तुम मान गए, दुनिया खिल उठी मैं बस ज

पाठकजनों ने अभी तक आपने भाग-03 पढ़ा, अब भाग- 04 पढ़िए:- भक्ति करने की प्रेरणा संत जन देते हैं। सत्संग से जीने की राह अच्छी बनती है।कबीर परमेश्वर जी ने फिर बताया है कि:-बिन उपदेश अचम्भ है, क्

मैं, मेरी माँ और मेरे पिताजी अपने घर के दूरवा( घर के बाहर ) उस गर्मी के दिनों में चांदनी रात की आनंद वहीं रेगिस्तान में पानी की अनुभूति थोड़ी थोड़ी चलने वाली हवाओं से हो रही थी, बिजली तो नई नई हमारे गाँ

      ये कहानी शुरु होती है, निशा से! निशा यू तो भरा पुरा परिवार रहा है उसका, पर उसी परिवार के बीच हर किसीसे जूडे हेने के बावजूद अपना अलग वजूद की तलाश में अकेले सबसे दूर रहती, निशा! निश

उस रात पूरी रात हरीश को चैन से नींद नहीं आ पाई थी। लेकिन वह सारी रात उल्टा ही पड़ा रहा। वह जैसे ही पीठ के बल लेटने की कोशिश करता उसकी नींद खराब हो जाती थी। उसके दादा सारी रात उसकी इस कराहट के लिए परेश

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