शब्द.इन द्वारा दिये गये विषयों पर मेरे विचारों का संगम इस पुस्तक के माध्यम से रचित किया जायेगा जो समाज में घटित वर्तमान, भविष्य और अतीत की घटनाओं को संदर्भित करके किया जायेगा। आप मेरे विचारों को पढ़कर समीक्षा करें और मुझे भविष्य में प्रेरित करें।
मैंने अपने इस उपन्यास में औरत के अहंकार से होने वाली पारिवारिक तबाही को दर्शाने की कोशिश की है औरत अहंकार में आकर दूसरों के साथ साथ अपना भी जीवन बर्बाद कर लेती है पर इसका अहसास उसे बहुत बाद में होता है तब कुछ नहीं किया जा सकता सिवाय पश्चाताप के
माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं छायावाद का सर्वोच्च रूप लिए हुए हैं इसलिए उनकी कविताएं प्रकृति के अधिक निकट हैं। उनकी लेखन भाषा भी हिंदी के उस काल का प्रतिबिम्ब है।
श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापत
'अर्चना' में ऐसे गीत भी हैं, जो इस बात की सूचना देते हैं कि कवि अब महानगर और नगरों को छोड़कर अपने गाँव आ गया है ! उनका कालजयी और अपनी सरलता में बेमिसाल गीत 'बांधो न नाव इस ठांव, बंधू !/पूछेगा सारा गाँव, बंधु! ' 'अर्चना' की ही रचना हैं, जिसमें गाँव की
श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापत
श्रीमान सादर नमस्कार मुझे बचपन से लिखने का बहुत शौक था इसलिए मैंने हमेशा खाली समय को व्यर्थ नहीं जाने दिया कुछ ना कुछ अवश्य लिखता रहा जो कि आज एक बड़ी संख्या बन चुकी हैं मैं चाहता हूं आप से जुड़कर अपनी कविताएं पब्लिक प्लेटफॉर्म में प्रमोट कर सकूं ज
यह पुस्तक मूमल और महिंद्रा की अमर प्रेम कथा को प्रस्तुत करती है।मूमल लोद्रवा (जैसलमेर)की राजकुमारी थी और महिंद्रा अमरकोट(वर्तमान पाकिस्तान)का राजकुमार था। पुस्तक दोनों के मध्य पनपते प्रेम मिलन, विरह की कहानी कहती है। यह एक सत्याधृत ऐतिहासिक प्रेम क
डॉ॰ प्रेमशंकर की मान्यता है कि 'लहर' में कवि एक चिन्तनशील कलाकार के रूप में सम्मुख आता है, जिसने अतीत की घटनाओं से प्रेरणा ग्रहण की है। प्रसाद के गीतों की विशेषता यही है कि उनमें केवल भावोच्छ्वास ही नहीं रहते, जिनमें प्रणय के विभिन्न व्यापार हों, किन
मैं निर्मल गुप्ता, एक नवीन लेखक अपने जीवन के अनुभवों को शब्द रुपी मोतियों में निखार कर कुछ सुन्दर कविता रुपी मालाओं का सृजन कर ,अपने प्रिय पाठकों के ह्रदय पर विराजमान करना चाहता हूं,जहां उनकी धड़कनें बसती है । ताकि वे एक नयी चेतना को प्राप्त कर मानवी
मय, मयकश, मयकशीऔर मयखाना यह विषय बहुतो का पसंदीदा विषय है और बहुतो के लिए हमेशा से एक विचारणीय विषय भी रहा है। अनेक रचनाकारों ने इस विषय पर अपनी-अपनी शैली में रचनाओं का सृजन किया। आदरणीय सुप्रसिद्ध कवि श्री हरिवंश राय बच्चन की कलम से इस विषय पर कालजय
काव्य सुलेखा मेरी कविताओं का संग्रह है, जिसमें मैंने जीवन के भिन्न भिन्न पहलुओं को उजागर किया है। कहीं रिश्तों का मर्म, कभी मन शांत तो उठते सवाल, पारिवारिक जीवन, मान सम्मान, नारी का आत्म विश्वास, जिंदगी के भिन्न भिन्न रंगो को अपनी कलम से सजाया है।
किताब जीवन का सच ............ शब्दों के सच से कही गयी हैं हम सभी के समाज से जुड़ाव के साथ है । हमारे दिन प्रतिदिन में प्रेरणा या घटना के लिए अवाज बन कर हम देश या समाज के लिए जागरुक करने लचना माध्यम प्रयास है
अधखिला फूल "अधखिला फूला उपाध्याय जी का दूसरा सामाजिक उपन्यास है है देवहूती एक विवाहित स्वी है । उसका पति देवस्वरूप संसार से विरक्त रहते के कारण कहीं बाहर चला जाता है । कहने की आवश्यकता नहीं कि आज के पाठक को यह भाषा कुछ कृत्रिम-सी लगेगी । सिर भी ऐसा न
उस गांव के बारे में अजीब अफवाहें फैली थीं. लोग कहते थे कि वहां दिन में भी मौत का एक काला साया रोशनी पर पड़ा रहता है. शाम होते ही क़ब्रें जम्हाइयां लेने लगती हैं और भूखे कंकाल अंधेरे का लबादा ओढ़कर सड़कों, पगडंडियों और खेतों की मेंड़ों पर खाने की तलाश
मन की गठरी- ---------------- 'मन की गठरी'मेरी काव्य संग्रह की तीसरी कड़ी है।इस संग्रह में मन के कोने में पड़े विचारों को शब्दबद्ध कर उन्हें तर्कपूर्ण तथा संवेदनशील करके परोसने का प्रयास किया गया है।मन में विचार पैदा होते रहते हैं उनविचारों को लोगों क
नाटक के केन्द्र में एक बंगाली परिवार (शंकर और शीला) है, जो बिहार के एक बाढग़्रस्त इलाके में रहता है। यहां हर वर्ष नदी में बाढ़ आती है और यह बाढ़ तब तक नहीं उतरती जब तक की कोई इंसान इस नदी में कूदकर आत्महत्या ना कर ले। यह अन्धविश्वास अब बलि प्रथा बन ग
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।''
ख्यालों में ही गुजर कर ली हमने "ताउम्र" कुछ ही बची है । अब आ भी जाओ रूबरू कर दे , इक बार दिल को । रस्म ए दीदार अभी बाकी है । ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी 🙏मुझे आशा है की "दिल की आवाज़" आपको पसंद आयेगी ।
हर चेहरा कुछ कहता है और हर कोई अनेकों किरदार बखूबी निभाने की कला जानता है ।