सुबह के हल्के उजाले में, जब कार एक सुनसान सड़क पर दौड़ रही थी, चारों तरफ सन्नाटा और ठंडक थी। अनुज, जो पिछली सीट पर गहरी नींद में था, हल्के से करवट बदलता रहा। प्रभात ड्राइविंग सीट पर था, अपने चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए, और अरुणिमा पास की सीट पर बैठी, चुपचाप उसकी ओर देख रही थी।
"तुम इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो?" अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"सोच रहा हूँ कि कितनी जल्दी ये पल बदल गया। कल तक हम शादी की तैयारियों में थे, और आज... ये सफर साथ में शुरू हो गया।" प्रभात ने कहा, उसकी आवाज में सुकून और गहराई थी।
अरुणिमा हल्की सी हंसी के साथ बोली, "लेकिन ये सफर इतना आसान नहीं होगा। तुम्हें वादे निभाने पड़ेंगे, मेरी हर बात माननी पड़ेगी।"
"जो भी कहो, मेरी मंज़िल अब तुम ही हो," प्रभात ने धीमे स्वर में कहा।
उनकी बातचीत चल ही रही थी कि अचानक सड़क के दूसरी तरफ से एक भारी ट्रक लहराता हुआ उनकी ओर तेजी से बढ़ने लगा। प्रभात ने दूर से ट्रक को देखा और एक पल के लिए उसका दिल सहम गया।
"अरुणिमा, पीछे मुड़कर अनुज को संभालो।" प्रभात की आवाज में घबराहट थी। अरुणिमा ने तुरंत अनुज को जगाने की कोशिश की, लेकिन वह गहरी नींद में था।
ट्रक तेजी से पास आ रहा था। प्रभात ने ब्रेक पर पांव रखा, लेकिन सड़क पर ओस की हल्की परत थी, जिससे टायर फिसलने लगे। कार बेकाबू हो गई। अरुणिमा चिल्लाई, "प्रभात, ध्यान से!"
"पकड़ो कुछ! अरुणिमा!" प्रभात चिल्लाया।
ट्रक की हेडलाइट्स अब उनकी कार के शीशों में चमक रही थीं। प्रभात ने कार को घुमाने की कोशिश की, लेकिन ट्रक बेकाबू होकर सीधे कार के साइड में आकर टकरा गया।
टक्कर इतनी भयानक थी कि पूरी कार एक तरफ से चपटी हो गई। शीशे के टुकड़े चारों ओर बिखर गए। अरुणिमा की चीख सुनाई दी, और अनुज, जो सीट पर सोया हुआ था, जोर से सीट पर उछलकर गिर पड़ा। प्रभात का सिर स्टियरिंग व्हील से टकराया, और सबकुछ अंधेरे में डूब गया।
टक्कर के बाद सब कुछ ठहर-सा गया। सड़क पर सन्नाटा था, लेकिन कार के अंदर मंजर भयानक था। अनुज सीट से नीचे गिरा हुआ था, उसके सिर से खून बह रहा था। वह दर्द में कराहते हुए मुश्किल से होश में आ पाया। कार के अगले हिस्से में प्रभात स्टियरिंग व्हील पर गिरा हुआ था, उसकी साँसें धीमी चल रही थीं। उसके माथे से खून बहकर उसकी शर्ट को भिगो रहा था। अरुणिमा, जो बुरी तरह से सदमे में थी, प्रभात के पास बैठकर पागलों की तरह उसे हिलाने लगी।
"प्रभात, आँखें खोलो! प्लीज, कुछ तो बोलो!" अरुणिमा की आवाज़ में बेबसी और घबराहट थी। उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे।
अनुज ने जैसे-तैसे अपनी चोटों को नजरअंदाज करते हुए अपने फोन को ढूँढा। उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन उसने हिम्मत जुटाकर 108 पर कॉल किया। "जल्दी से एक एंबुलेंस भेजिए... एक्सीडेंट हो गया है... दिल्ली हाईवे पर..." उसकी आवाज धीमी और दर्द से भरी हुई थी।
अरुणिमा बार-बार प्रभात को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही थी। "तुमने वादा किया था, मुझे छोड़कर नहीं जाओगे। ऐसे कैसे सो सकते हो? उठो, प्रभात!" उसने प्रभात के हाथों को थाम लिया, जो ठंडे हो रहे थे।
कुछ मिनटों में सड़क पर गाड़ियों की रौशनी दिखने लगी। कुछ राहगीर रुके और मदद के लिए कार के पास आए। "हटिए, हम कार का दरवाज़ा खोलने की कोशिश करते हैं," उनमें से एक ने कहा।
अरुणिमा को किसी की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। उसकी नजरें सिर्फ प्रभात पर टिकी थीं। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, और आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। "तुम्हें ठीक होना होगा, प्रभात। मुझे ज़रूरत है तुम्हारी।"
अनुज ने सिर पकड़े हुए दर्द से कराहते हुए कहा, "भाभी... अरुणिमा भाभी... एंबुलेंस बस आने वाली है।"
तभी सड़क पर एंबुलेंस की आवाज़ गूँजने लगी। अरुणिमा ने एक पल के लिए राहत की साँस ली, लेकिन प्रभात की हालत देखकर उसका दिल बैठा जा रहा था। एंबुलेंस से पैरामेडिक्स बाहर आए।
"इन्हें जल्दी स्ट्रेचर पर डालो। इनकी नब्ज़ बहुत धीमी है," एक पैरामेडिक ने कहा।
प्रभात को संभालकर स्ट्रेचर पर लेटाया गया। "ये मेरे साथ रहेगा, प्लीज!" अरुणिमा ने ज़िद की।
"मैडम, आपकी हालत भी ठीक नहीं लग रही। आपको भी चेक करना होगा," पैरामेडिक ने कहा।
"नहीं! पहले प्रभात... मुझे उसकी परवाह है।" अरुणिमा की आवाज़ कड़क थी, और उसकी आँखों में आँसू छलक रहे थे।
अनुज को भी स्ट्रेचर पर लिटाया गया। उसके सिर से लगातार खून बह रहा था, लेकिन उसने अपने होश में रहते हुए अपने रिश्तेदारों को फोन कर दिया था। "हॉस्पिटल में जल्दी आओ... एक्सीडेंट हो गया है।"
हॉस्पिटल की ओर भागती एंबुलेंस में, अरुणिमा प्रभात का हाथ पकड़े बैठी थी। वह धीरे-धीरे उसकी उँगलियों को सहला रही थी। "तुमने मुझसे कहा था कि हमेशा मेरे साथ रहोगे। तुम झूठ नहीं बोल सकते, प्रभात। प्लीज, मेरे लिए उठो।"
प्रभात की धीमी साँसें अरुणिमा के दिल को चीर रही थीं। उसकी आँखों में वह हर पल घूम रहा था जो उन्होंने साथ बिताया था।
अस्पताल पहुँचते ही डॉक्टर और नर्स प्रभात और अनुज को इमरजेंसी रूम में ले गए। अरुणिमा को वहाँ रुकने को कहा गया। उसने डॉक्टर की बाँह पकड़ ली। "प्लीज, उसे बचा लीजिए। कुछ भी कर लीजिए, बस उसे बचा लीजिए।"
अस्पताल में परिवार के लोग पहुँचने लगे थे। प्रभात की माँ और पिता और बहन रिया अंदर भागते हुए आए। माँ की आँखें लाल थीं और उसकी चाल लड़खड़ा रही थी। "मेरा बेटा... कहाँ है मेरा बेटा?" उन्होंने अरुणिमा को कसकर पकड़ लिया।
"माँ, डॉक्टर अभी अंदर हैं। वो उसे बचा लेंगे। हमें यकीन रखना होगा," अरुणिमा ने खुद को संभालते हुए कहा। लेकिन उसके अंदर एक तूफान उमड़ रहा था।
अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में एक गहरा सन्नाटा पसरा था। अरुणिमा, जो खुद एक डॉक्टर थी, वहाँ खड़ी प्रभात के इलाज के लिए डॉक्टरों से मदद की गुहार कर रही थी। उसकी आँखें लाल थीं और हाथ काँप रहे थे। वह जानती थी कि प्रभात की हालत नाज़ुक है, लेकिन अपने प्यार को बचाने की उम्मीद अभी भी उसके दिल में जिंदा थी।
डॉक्टर ने इमरजेंसी वार्ड से बाहर आकर कहा, "अरुणिमा, हमें खून की भारी मात्रा में कमी है। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उसकी हालत बहुत गंभीर है।"
अरुणिमा ने डॉक्टर की बाँह पकड़ ली। "डॉक्टर साहब, मुझे अंदर जाने दीजिए। मैं खुद डॉक्टर हूँ। मुझे कोशिश करने दीजिए। मैं उसे बचा लूंगी।"
डॉक्टर कुछ देर तक उसकी आँखों में देखता रहा, फिर सहमति में सिर हिलाया। "ठीक है, लेकिन समय बहुत कम है।"
अरुणिमा ऑपरेशन थिएटर में घुसी। प्रभात स्ट्रेचर पर निढाल पड़ा था। उसकी धड़कनें धीमी हो रही थीं। मॉनिटर पर उसकी नब्ज़ की गिरती हुई रेखा अरुणिमा के दिल को चीर रही थी। उसने ग्लव्स पहने और ऑक्सीजन मास्क प्रभात के चेहरे पर ठीक से लगाया।
"प्रभात, मैं यहाँ हूँ। तुमने कहा था कि मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ोगे। मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी। लड़ो, प्रभात, प्लीज लड़ो!" उसने अपने आँसुओं को रोकते हुए CPR शुरू कर दी।
वह अपनी सारी ताकत लगा रही थी। इंजेक्शन, डिफिब्रिलेटर, हर कोशिश कर रही थी। प्रभात की धड़कनें कभी-कभी तेज होतीं, लेकिन फिर धीमी हो जातीं।
"नहीं! यह नहीं हो सकता!" उसने जोर से कहा। उसकी हर कोशिश के बावजूद, मॉनिटर की लाइन सीधी हो गई। एक बीप की आवाज़ ने सब कुछ खत्म होने का ऐलान कर दिया।
अरुणिमा वहीं गिर पड़ी। उसने प्रभात का चेहरा अपने हाथों में लिया। "तुमने कहा था कि हम हमेशा साथ रहेंगे। प्रभात, उठो! तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते।" उसका दिल चीत्कार कर रहा था। उसकी आँखों से आँसू बहते रहे, लेकिन प्रभात वापस नहीं आया।
डॉक्टर ने अंदर आकर अरुणिमा के कंधे पर हाथ रखा। "अरुणिमा, वह चला गया। हमने सब कुछ किया।"
बाकी की कहानी अगले भाग में.....