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तमाशा

20 अप्रैल 2022

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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान बाज़ारों में मुसल्लह पुलिस की गश्त एक अजीब हैबतनाक समां पेश कर रही थी। वो बाज़ार जो सुबह से कुछ अर्सा पहले लोगों के हुजूम से पुर हुआ करते थे। अब किसी नामालूम ख़ौफ़ की वजह से सूने पड़े थे। शहर की फ़िज़ा पर एक पुरअसरार ख़ामोशी मुसल्लत थी। भयानक ख़ौफ़ राज कर रहा था।

ख़ालिद घर की ख़ामोशी ओ पुरसुकून फ़िज़ा से सहमा हुआ अपने वालिद के क़रीब बैठा बातें कर रहा था।

“अब्बा, आप मुझे स्कूल क्यों नहीं जाने देते?”

“बेटा आज स्कूल में छुट्टी है।”

“मास्टर साहिब ने तो हमें बताया ही नहीं। वो तो कल कह रहे थे कि जो लड़का आज स्कूल का काम ख़त्म करके अपनी कापी न दिखाएगा, उसे सख़्त सज़ा दी जाएगी!”

“वो इत्तिला देनी भूल गए होंगे।”

“आपके दफ़्तर में भी छुट्टी होगी?”

“हाँ हमारा दफ़्तर भी आज बंद है।”

“चलो अच्छा हुआ। आज मैं आपसे कोई अच्छी सी कहानी सुनूंगा।”

ये बातें हो रही थीं कि तीन तय्यारे चीख़ते हुए उनके सर पर से गुज़र गए। ख़ालिद उनको देख कर बहुत ख़ौफ़ज़दा हुआ, वो तीन-चार रोज़ से इन तय्यारों को बग़ौर देख रहा था। मगर किसी नतीजे पर न पहुंच सका था। वो हैरान था कि ये जहाज़ सारा दिन धूप में क्यों चक्कर लगाते रहते हैं।

वो उनकी रोज़ाना नक़ल-ओ-हरकत से तंग आकर बोला, “अब्बा मुझे इन जहाज़ों से सख़्त ख़ौफ़ मालूम हो रहा है। आप इनके चलाने वालों से कह दें कि वो हमारे घर पर से न गुज़रा करें।”

“खौफ़...! कहीं पागल तो नहीं हो गए ख़ालिद!”

“अब्बा, ये जहाज़ बहुत ख़ौफ़नाक हैं। आप नहीं जानते, ये किसी न किसी रोज़ हमारे घर पर गोला फेंक देंगे... कल सुबह मामा अम्मी जान से कह रही थी कि इन जहाज़ वालों के पास बहुत से गोले हैं। अगर उन्होंने इस क़िस्म की कोई शरारत की, तो याद रखें मेरे पास भी एक बंदूक़ है, वही जो आप ने पिछली ईद पर मुझे दी थी।”

ख़ालिद का बाप अपने लड़के की ग़ैर-मामूली जसारत पर हंसा, “मामा तो पागल है, मैं उससे दरयाफ़्त करूंगा कि वो घर में ऐसी बातें क्यों क्या करती है। इत्मिनान रखो, वो ऐसी बात हरगिज़ नहीं करेंगे।”

अपने वालिद से रुख़सत हो कर ख़ालिद अपने कमरे में चला गया और हवाई बंदूक़ निकाल कर निशाना लगाने की मश्क़ करने लगा। ताकि उस रोज़ जब हवाई जहाज़ वाले गोले फेंकें तो उसका निशाना ख़ता न जाये और वो पूरी तरह इंतिक़ाम ले सके। काश! इंतिक़ाम का यही नन्हा जज़बा हर शख़्स में तक़सीम हो जाये।

उसी अर्से में जबकि एक नन्हा बच्चा अपने इंतिक़ाम लेने की फ़िक्र में डूबा हुआ तरह तरह के मंसूबे बांध रहा था, घर के दूसरे हिस्से में ख़ालिद का बाप अपनी बीवी के पास बैठा हुआ मामा को हिदायत कर रहा था कि वो आइन्दा घर में इस क़िस्म की कोई बात न करे जिससे ख़ालिद को दहश्त हो।

मामा और बीवी को इसी क़िस्म की मज़ीद हिदायात दे कर वो अभी बड़े दरवाज़े से बाहर जा रहा था कि ख़ादिम एक दहशतनाक ख़बर लाया कि शहर के लोग बादशाह के मना करने पर भी शाम के क़रीब एक आम जलसा करने वाले हैं और ये तवक़्क़ो की जाती है कि कोई न कोई वाक़िया ज़रूर पेश आकर रहेगा।

ख़ालिद का बाप ये ख़बर सुन कर बहुत ख़ौफ़ज़दा हुआ। अब उसे यक़ीन हो गया कि फ़िज़ा में ग़ैरमामूली सुकून तय्यारों की परवाज़, बाज़ारों में मुसल्लह पुलिस की गशत, लोगों के चेहरों पर उदासी का आलम और ख़ूनी आंधियों की आमद किसी ख़ौफ़नाक हादिसा का पेशख़ैमा थे।

वो हादिसा किस नौईयत का होगा? ये ख़ालिद के बाप की तरह किसी को भी मालूम न था। मगर फिर भी सारा शहर किसी नामालूम ख़ौफ़ में लिपटा हुआ था।

बाहर जाने के ख़याल को मुल्तवी करके ख़ालिद का बाप अभी कपड़े तबदील करने भी न पाया था। कि तय्यारों का शोर बुलंद हुआ। वो सहम गया, उसे ऐसा मालूम हुआ, जैसे सैंकड़ों इंसान हम-आहंग आवाज़ में दर्द की शिद्दत से कराह रहे हैं।

ख़ालिद तय्यारों का शोर-ओ-गुल सुन कर अपनी हवाई बंदूक़ सँभालता हुआ कमरे से बाहर दौड़ा आया। और उन्हें ग़ौर से देखने लगा। ताकि वो जिस वक़्त गोला फेंकने लगें। तो वो अपनी हवाई बंदूक़ की मदद से उन्हें नीचे गिरा दे। उस वक़्त छः साल के बच्चे के चेहरे पर आहनी इरादा-ओ-इस्तिक़लाल के आसार नुमायां थे। जो कम हक़ीक़त बंदूक़ का खिलौना हाथ में थामे एक जरी सिपाही को शर्मिंदा कर रहा था। मालूम होता था कि वो आज उस चीज़ को जो उसे अर्से से ख़ौफ़ज़दा कर रही थी। मिटाने पर तुला हुआ है।

ख़ालिद के देखते देखते एक जहाज़ से कुछ चीज़ गिरीं। जो काग़ज़ के छोटे छोटे टुकड़ों के मुशाबेह थी। गिरते ही ये टुकड़े हवा में पतंगों की तरह उड़ने लगे। इन में से चंद ख़ालिद के मकान की बालाई छत पर भी गिरे।

ख़ालिद भागा हुआ ऊपर गया और काग़ज़ उठा लाया।

“अब्बा जी, मामा सचमुच झूट बक रही थी। जहाज़ वालों ने तो गोलों के बजाय ये काग़ज़ फेंके हैं।”

ख़ालिद के बाप ने वो काग़ज़ लेकर पढ़ना शुरू किया तो रंग ज़र्द हो गया। होने वाले हादिसे की तस्वीर अब उसे अयाँ तौर पर नज़र आने लगी। इस इश्तिहार में साफ़ लिखा था कि बादशाह किसी जलसा करने की इजाज़त नहीं देता और अगर उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ कोई जलसा किया गया तो नताइज की ज़िम्मेदार ख़ुद रिआया होगी।

अपने वालिद को इश्तिहार पढ़ने के बाद इस क़दर हैरान-ओ-परेशान देख कर ख़ालिद ने घबराते हुए कहा, “इस काग़ज़ में ये तो नहीं लिखा कि वो हमारे घर पर गोले फेंकेंगे?”

“ख़ालिद, इस वक़्त तुम जाओ! जाओ अपनी बंदूक़ के साथ खेलो!”

“मगर इस पर लिखा क्या है?”

“लिखा है कि आज शाम को एक तमाशा होगा।” ख़ालिद के बाप ने गुफ़्तुगू को मज़ीद तूल देने के ख़ौफ़ से झूट बोलते हुए कहा, “तमाशा होगा! फिर तो हम भी चलेंगे ना!”

“क्या कहा?”

“क्या उस तमाशे में आप मुझे न ले चलेंगे?”

“ले चलेंगे! अब जाओ जा कर खेलो।”

“कहाँ खेलूं? बाज़ार में आप जाने नहीं देते। मामा मुझसे खेलती नहीं, मेरा हम-जमाअत तुफ़ैल भी तो आजकल यहां नहीं आता। अब मैं खेलूं तो किससे खेलूं? शाम के वक़्त तमाशा देखने तो ज़रूर चलेंगे ना?”

किसी जवाब का इंतिज़ार किए बग़ैर ख़ालिद कमरे से बाहर चला गया और मुख़्तलिफ़ कमरों में आवारा फिरता हुआ अपने वालिद की नशिस्त गाह में पहुंचा। जिसकी खिड़कियां बाज़ार की तरफ़ खुलती थीं। खिड़की के क़रीब बैठ कर वो बाज़ार की तरफ़ झांकने लगा।

क्या देखता है कि बाज़ार में दुकानें तो बंद हैं मगर आमद-ओ-रफ़्त जारी है। लोग जलसे में शरीक होने के लिए जा रहे थे। वो सख़्त हैरान था कि दो-तीन रोज़ से दुकानें क्यों बंद रहती हैं। इस मसला के हल के लिए उसने अपने नन्हे दिमाग़ पर बहतेरा ज़ोर दिया मगर कोई नतीजा बरामद न कर सका।

बहुत ग़ौर-ओ-फ़िक्र के बाद उसने ये सोचा कि लोगों ने इस तमाशा को देखने की ख़ातिर, जिसके इश्तिहार जहाज़ बांट रहे थे दुकानें बंद कर रखी हैं। अब उसने ख़याल किया कि वो कोई निहायत ही दिलचस्प तमाशा होगा। जिसके लिए तमाम बाज़ार बंद हैं।

इस ख़याल ने ख़ालिद को सख़्त बेचैन कर दिया और वो उस वक़्त का निहायत बेक़रारी से इंतिज़ार करने लगा। जब उसका अब्बा उसे तमाशा दिखलाने को ले चले।

वक़्त गुज़रता गया... वो ख़ूनी घड़ी क़रीबतर आती गई।

सहपहर का वक़्त था। ख़ालिद, उसका बाप और वालिदा सहन में ख़ामोश बैठे एक दूसरे की तरफ़ ख़ामोश निगाहों से तक रहे थे... हवा सिसकियां भरती हुई चल रही थी।

तड़ तड़ तड़ तड़...

ये आवाज़ सुनते ही ख़ालिद के बाप के चेहरे का रंग काग़ज़ की तरह सफ़ेद हो गया। ज़बान से बमुश्किल इस क़दर कह सका, “गोली?”

ख़ालिद की माँ फर्त-ए-ख़ौफ़ से एक लफ़्ज़ भी मुँह से न निकाल सकी। गोली का नाम सुनते ही उसे ऐसे मालूम हुआ जैसे ख़ुद उसकी छाती में गोली उतर रही है।

ख़ालिद उस आवाज़ को सुनते ही अपने वालिद की उंगली पकड़ कर कहने लगा,“अब्बा जी चलो चलें! तमाशा तो शुरू हो गया है!”

“कौन सा तमाशा?” ख़ालिद के बाप ने अपने ख़ौफ़ को छुपाते हुए कहा।

“वही तमाशा जिसके इश्तिहार आज सुबह बांट रहे थे... खेल शुरू हो गया तभी तो इतने पटाख़ों की आवाज़ सुनाई दे रही है।”

“अभी बहुत वक़्त बाक़ी है, तुम शोर मत करो। ख़ुदा के लिए अब जाओ, मामा के पास जा कर खेलो!”

ख़ालिद ये सुनते ही बावर्चीख़ाने की तरफ़ गया। मगर वहां मामा को न पा कर अपने वालिद की नशिस्तगाह में चला गया और खिड़की से बाज़ार की तरफ़ देखने लगा।

बाज़ार आमद-ओ-रफ़्त बंद हो जाने की वजह से सांय-सांय कर रहा था। दूर फ़ासले से कुतों की दर्दनाक चीख़ें सुनाई दे रही थीं। चंद लम्हात के बाद उन चीख़ों में इंसान की दर्दनाक आवाज़ भी शामिल हो गई।

ख़ालिद किसी को कराहते सुन कर बहुत हैरान हुआ। अभी वो इस आवाज़ की जुस्तुजू के लिए कोशिश ही कर रहा था कि चौक में उसे एक लड़का दिखाई दिया जो चीख़ता, चिल्लाता, भागता चला आ रहा था।

ख़ालिद के घर के ऐन मुक़ाबिल वो लड़का लड़खड़ा कर गिरा और गिरते ही बेहोश हो गया। उसकी पिंडली पर एक ज़ख़्म था जिससे फव्वारों ख़ून निकल रहा था।

ये समां देख कर ख़ालिद बहुत ख़ौफ़ज़दा हुआ। भाग कर अपने वालिद के पास आया और कहने लगा, “अब्बा, अब्बा, बाज़ार में एक लड़का गिर पड़ा है, उसकी टांग से बहुत ख़ून निकल रहा है।”

ये सुनते ही ख़ालिद का बाप खिड़की की तरफ़ गया और देखा कि वाक़ई एक नौजवान लड़का बाज़ार में औंधे मुँह पड़ा है।

बादशाह के ख़ौफ़ से उसे जुर्रत न हुई कि उस लड़के को सड़क पर से उठा कर सामने वाली दुकान के पटरे पर लेटा दे... बे-साज़-ओ-बर्ग अफ़राद को उठाने के लिए हुकूमत के अरबाब-ए-हल-ओ-अक़्द ने आहनी गाड़ियां मुहय्या कर रखी हैं। मगर इस मासूम बच्चे की नाश जो उन्ही की तेग़-ए-सितम का शिकार थी।

वो नन्हा पौदा जो उन्ही के हाथों मसला गया था। वो कोंपल जो खिलने से पहले उन्ही की अता करदा बाद-ए-सुमूम से झुलस गई थी, किसी के दिल की राहत जो उन्ही के जोर-ओ-इस्तिबदाद ने छीन ली थी अब उन्ही की तैयार करदा सड़क पर... आह! मौत भयानक है, मगर ज़ुल्म इससे कहीं ज़्यादा ख़ौफ़नाक और भयानक है।

“अब्बा इस लड़के को किसी ने पीटा है?”

ख़ालिद का बाप इस्बात में सर हिलाता हुआ कमरे से बाहर चला गया।

जब ख़ालिद अकेला कमरे में रह गया तो सोचने लगा कि इस लड़के को इतने बड़े ज़ख़्म से कितनी तकलीफ़ हुई होगी। जबकि एक दफ़ा उसे क़लम तराश की नोक चुभने से तमाम रात नींद न आई थी और उसका बाप और माँ तमाम रात उसके सिरहाने बैठे रहे थे।

इस ख़याल के आते ही उसे ऐसा मालूम होने लगा कि वो ज़ख़्म ख़ुद उसकी पिंडली में है और उसमें शिद्दत का दर्द है। यकलख़्त वो रोने लग गया।

उसके रोने की आवाज़ सुन कर उसकी वालिदा दौड़ी आई और उसे गोद में लेकर पूछने लगी,“मेरे बच्चे रो क्यों रहे हो?”

“अम्मी, उस लड़के को किसी ने मारा है?”

“शरारत की होगी उसने?”

ख़ालिद की वालिदा अपने ख़ाविंद की ज़बानी ज़ख़्मी लड़के की दास्तान सुन चुकी थी।

“मगर स्कूल में तो शरारत करने पर छड़ी से सज़ा देते हैं। लहू तो नहीं निकालते।” ख़ालिद ने रोते हुए अपनी वालिदा से कहा।

“छड़ी ज़ोर से लग गई होगी!”

“तो फिर क्या इस लड़के का वालिद स्कूल में जा कर उस उस्ताद पर ख़फ़ा न होगा, जिसने इस लड़के को इस क़दर मारा है। एक रोज़ जब मास्टर साहिब ने मेरे कान खींच कर सुर्ख़ कर दिए थे तो अब्बा जी ने हेडमास्टर के पास जा कर शिकायत की थी ना?”

“इस लड़के का मास्टर बहुत बड़ा आदमी है।”

“अल्लाह मियां से भी बड़ा?”

“नहीं उनसे छोटा है।”

“तो फिर वो अल्लाह मियां के पास शिकायत करेगा।”

“ख़ालिद, अब देर हो गई है, चलो सोएँ।”

“अल्लाह मियां! मैं दुआ करता हूँ कि तू उस मास्टर को जिसने इस लड़के को पीटा है। अच्छी तरह सज़ा दे और इस छड़ी को छीन ले जिसके इस्तेमाल से ख़ून निकल आता है। मैंने पहाड़े याद नहीं किए। इसलिए मुझे डर है कि कहीं वही छड़ी मेरे उस्ताद के हाथ न आ जाये। अगर तुमने मेरी बातें न मानीं, तो फिर मैं भी तुम से न बोलूंगा।”

सोते वक़्त ख़ालिद दिल में दुआ मांग रहा था।
 

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022
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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022
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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

8 अप्रैल 2022
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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

9 अप्रैल 2022
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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

9 अप्रैल 2022
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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

20 अप्रैल 2022
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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

20 अप्रैल 2022
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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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