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ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022

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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं

उन से मैंने एक रोज़ कहा!

“शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब ने बड़े ज़ोर का क़हक़हा लगाया “मंटो साहब मेरी ज़िंदगी दिलचस्प वाक़ियात से भरी पड़ी है कौन सा वाक़िया आप को सुनाऊं ”

मैंने उन से कहा! “जो भी आप के ज़हन में आ जाये।” शाह साहब मुस्कुराए “आप मुझे बड़ा परहेज़गार आदमी समझते हुँगे आप को मालूम नहीं मैंने दस बरस तक दिन रात शराब पी है और ख़ूब खुल खेला हूँ। अब चूँकि दिल उचाट होगया है इस लिए मैंने शुग़ल छोड़ रखे हैं ”

मैंने पूछा “कहीं आप ने शादी तो नहीं कर ली?”

“हज़रत, मैं पाँच बरस से लाहौर में हूँ अगर मैंने शादी की होती तो आप को उस की इत्तिला मिल जाती ”

“तो क्या आप अभी तक कुंवारे हैं ”

“जी हाँ ”

“बड़े तअज्जुब की बात है!”

शाह साहब ने एक आह भरी

“चलिए आप को एक दास्तान सुना दूं आप उसे लिख कर अपने पैसे खरे कर लीजिएगा”

मुझे पैसे खरे करने तो थे, फिर भी मैंने उन से कहा : “नहीं शाह साहब आप अपनी दास्तान सनाईए, देखें इस का अफ़साना बनता भी है कि नहीं वैसे मैं आप से वाअदा करता हूँ कि अगर मैंने आप की दास्तान को अफ़साने में ढाल लिया तो मुझे जो मुआवज़ा मिलेगा, सब का सब आप का होगा।”

शाह साहब हंसे

“छोड़ो यार मैं अपनी बीती हुई ज़िंदगी के टुकड़ों की क़ीमत वसूल नहीं करना चाहता तुम अफ़्साना निगार लोग अजीब ज़हन के होते हो। दास्तान सुन लो बाक़ी तुम जानो मुझे मुआवज़े वग़ैरा से कोई सरोकार नहीं।” शाह साहब के लब-ओ-लहजा से ये साफ़ ज़ाहिर था कि उन्हें मेरी बात पसंद नहीं आई इस लिए मैंने उस के बारे में मज़ीद गुफ़्तुगू करना मुनासिब न समझी और उन से कहा:

“आप अपनी दास्तान बयान करना शुरू कर दें ”

शाह साहब ने मेरे सिगरेट केस से सिगरेट निकाल कर सुलगाया मुझे बड़ा तअज्जुब हुआ इस लिए कि मैंने उन्हें चार पाँच बरस के अर्से में कभी सिगरेट पीते नहीं देखा था मैंने अपनी हैरत का इज़हार करते हुए उन से कहा :

“शाह साहब आप सिगरेट पीते हैं!”

शाह साहब के होंटों पर जिन में सिगरेट अटका हुआ था, अजीब क़िस्म की मुस्कुराहट नुमूदार हुई

“मंटो साहब! आप ने अपनी ज़िंदगी में इतने सिगरेट नहीं पीए होंगे जितने में पी चुका हूँ आज आप ने ऐसी बात छेड़ दी कि ख़ुद-ब-ख़ुद मेरे हाथ आप के सिगरेट केस की तरफ़ उठ गए विस्की है आप के पास?”

मैंने जवाब दिया :

“जी हाँ है ”

“तो लाओ एक पटियाला पैग मैं दस बरस का रक्खा हुआ रोज़ा तोड़ूंगा तुम ने आज ऐसी बातें की हैं कि मेरा सारा जिस्म माज़ी में चला गया है ”

मैंने अपनी अलमारी से विस्की की बोतल निकाली और शाह साहब के लिए एक पटियाला पैग बना कर हाज़िर कर दिया। उन्हों ने एक ही जुरए में गिलास ख़ाली कर दिया। आसतीन से होंट साफ़ करने के बाद वो मुझ से मुख़ातब हुए “हाँ तो अब कहानी सुनो।”

लेकिन ये बोतल यहां से ग़ायब कर दो ”

मैंने विस्की की बोतल उठाई और अंदर जा कर अलमारी में रख दी। वापस आया तो देखा शाह साहब दूसरा सिगरेट सुलगा रहे हैं।

मैं कुर्सी उठा कर उन के पास बैठ गया वो मुस्कुराए लेकिन ये मुस्कुराहट कुछ ज़ख़्मी सी थी उन्हों ने इसी ज़ख़्मी मुस्कुराहट से कहना शुरू किया “जो वाक़िया मैं अब बयान करने वाला हूँ आज से क़रीब क़रीब दस बरस पहले का है हमारा हल्का-ए-अहबाब ज़्यादा तर खाते पीते और काफ़ी मालदार हिंदुओं का था बड़े अच्छे लोग थे हर रोज़ पीने पिलाने का शुग़ल रहता उस हल्क़े में मेरे इलावा कई और दोस्तों को शराब के इलावा औरतों की भी ज़रूरत महसूस हुआ करती वो किसी न किसी तरह अपनी ज़रूरत पूरी करते मुझ से कहते कि तुम भी आओ मगर में इनकार कर देता अपनी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मेरा दिल वैसे चाहता था कि किसी औरत की क़ुरबत नसीब हो ”

मैंने शाह साहब से कहा :

“आप ने शादी क्यों न कर ली ”

शाह साहब ने जवाब दिया :

“मैंने सच्च पूछो तो इस के मुतअल्लिक़ कभी सोचा ही नहीं था ”

“क्यों ”

“कभी ख़याल ही न आया ”

“ख़ैर आप अपनी दास्तान जारी रखीए!”

शाह साहब ने सिगरेट को एशट्रे में दबाया। “प्यारे मंटो! मैंने बहुत कोशिश की कि अपने दोस्तों के साथ शराबनोशी के सिवा किसी और शुगल में न फंसुँ लेकिन इन कमबख़्तों ने आख़िर एक दिन मुझे आमादा कर ही लिया और ये तै पाया कि किसी दलाल के ज़रीये ख़ुश शक्ल लौंडिया मंगवाई जाये। हम चार दोस्त फ़्लैट से बाहर निकले तो एक तांगे वाला जो कि मेरा वाक़िफ़ था मुझे देख कर पुकार उठा “शाह जी शाह जी आओ आओ:” हम चारों दोस्त उस के तांगे पर बैठ गए उस वक़्त मैं पूरा पूरा क़ाइल हो चुका था कि शराब के साथ औरत ज़रूर होनी चाहिए। चुनांचे मैंने अपनी सारी शराफ़त अपनी जेब में डाल के उस के कान में कहा कि वो किसी लौंडिया का बंद-ओ-बस्त कर दे।”

जब उस ने ये सुना तो वो भौंचक्का सा हो कर रह गया उस को यक़ीन नहीं आता था कि मैं कभी ऐसी वाहियात बात करूंगा लेकिन जब मैंने उस के कान में फिर कहा कि “मुझे वाक़ई एक लड़की की अशद ज़रूरत है” तो उस ने बड़े अदब से कहा:

“शाह जी : तुसीं जो हुक्म देव बंदा हाज़िर ए ऐसी तगड़ी कुड़ी ले के आवां गा कि सारी उम्र याद रखूगे ”

तांगे वाला चला गया और हम वापस अपने फ़्लैट में आ गए। शाम का वक़्त था जब वो ये मुहिम सर करने के लिए गया था हम देर तक इंतिज़ार करते रहे। तरह तरह के ख़यालात मेरे दिल में आते थे वो लड़की किस क़िस्म की होगी, कहीं कोई बाज़ारी औरत तो न निकल आएगी

हम जब इंतिज़ार करते करते थक गए तो ताश खेलना शुरू कर दी। रात के बारह बज गए हम मायूस हो कर बाहर निकले तो देखा कि तांगे वाला घोड़े के चाबुक लगाता चला आरहा है। पिछली नशिस्त पर एक बुरक़ापोश औरत बैठी थी मेरा दिल धक धक करने लगा।

तांगे वाले ने मुझ से कहा:

“शाह जी! जो माल मैं लेने गया था वो दिसावर चला गया है अब ये दूसरा माल बड़ी कोशिशों से ढूंढ कर लाया हूँ ”

मैंने उस को पाँच रुपय दिए। फिर हम चारों दोस्त सोचने लगे कि इस बुरक़ा-पोश औरत को कहाँ ले जाएं अपने फ़्लैट में ले जाना ठीक नहीं था इस लिए कि ज़िम्मेदारी थी लोग चेह मीगोईयां करते। बात का बतंगड़ बन जाता ख़्वाह-मख़्वाह एक फ़ज़ीहता हो जाता चुनांचे हम ने फ़ैसला किया कि अपने दोस्त रहमान के पास चलें।

रात के एक बजे के क़रीब हम इस बुरक़ा-पोश औरत के हम-राह रहमान के मकान पर पहुंचे। बहुत देर तक दस्तक देने के बाद उस ने दरवाज़ा खोला। कम्बल ओढ़े था उसे ग़ालिबन बुख़ार था।

मैंने सारी बात दबी ज़बान में बताई तो उस ने भी दबी ज़बान ही में कहा:

“शाह जी आप को क्या हो गया है मेरा मकान हाज़िर है, लेकिन आप को मालूम नहीं कि इस महीने की बीस तारीख़ को मेरी शादी होने वाली है मेरा साला अंदर है उस की मौजूदगी में ये सिलसिला जो आप चाहते हैं, कैसे हो सकता है ”

कुछ देर मेरी समझ में न आया उस से क्या कहूं लेकिन थोड़े से तवक्कुफ़ के बाद मैंने उस को डाँटा

“यार! तुम निरे खरे बेवक़ूफ़ हो अपने साले को चलता करो हम इतनी दूर से तुम्हारे पास आए हैं क्या तुम में इतनी मुरव्वत भी बाक़ी नहीं रही बीस तारीख़ को तुम्हारी शादी आ रही है, ठीक है लेकिन आज मेरी शादी है ये मेरी दुल्हन बुर्क़ा पहने तांगे में बैठी है तुम्हें अपने दोस्तों का कुछ तो ख़याल आना चाहिए ”

रहमान को मेरी हालत पर कुछ तरस आ गया चुनांचे इस ने अपने साले को जगाया और उस को अपने बुख़ार के लिए कोई ज़रूरी दवा लेने के लिए बाहर भेज दिया, शहर में क़रीब क़रीब केमिस्टों की सब दुकानें बंद थीं। लेकिन उस ने अपने साले से कहा :

“शहर की दुकानें देखो जहां से भी तुम्हें ये दवा मिले लेकर आओ!” लड़का बरखु़र्दार क़िस्म का था नुस्ख़ा लेकर आँखें मलता चला गया! उस ग़रीब को ताँगा भी शायद नज़र न आया जिस में बुरक़ा-पोश औरत बैठी थी

मैंने सोचा कि हुजूम ठीक नहीं होगा मालूम नहीं मेरे दोस्त क्या हरकतें करें चुनांचे मैंने उन को किसी न किसी तरह आमादा कर लिया कि वो तांगे में वापस चले जाएं। पाँच रुपय तांगे वाले को और दे दीए मगर उस ने बुरक़ा-पोश सवारी उतारी तो कहा:

“हुज़ूर: उस की फ़ीस तो देते जाईए ”

मैंने पूछा “कितनी है।”

“पच्चीस रुपय”

मैंने जेब से नोट निकाले और गिन कर पाँच पाँच के पाँच नोट उस के हवाले कर दीए और उस बुरक़ा-पोश औरत को अपने दोस्त के मकान में ले आया

रहमान को बुख़ार था वो अलाहिदा कमरे में जा कर लेट गया मैं बहुत देर तक इस बुरक़ापोश औरत से गुफ़्तुगू करता रहा

उस ने कोई जवाब न दिया और न अपने चेहरे से नक़ाब ही हटाया। मैं तंग आगया

उस को टटोला तो वो बिलकुल स्पाट थी आख़िर मैंने ज़बरदस्ती इस का बुर्क़ा उलट दिया ।

मेरी हैरत की इंतिहा न रही जब देखा कि वो औरत नहीं हिजड़ा था निहायत मकरूह क़िस्म का !

मुझे सख़्त गु़स्सा आया मैंने इस से पूछा

“ये क्या वाहियात पन है ”

उस हीजड़े ने जिस के चेहरे पर रूओं का नीला नीला गुबार मौजूद था, बड़े निस्वानी अंदाज़ में जवाब दिया “मैं तांगे वाले का भाई हूँ।”

शाह साहब ने इस के बाद मुझ से कहा “मंटो साहब ! उस दिन के बाद मुझे इस सिलसिले से कोई रग़बत नहीं रही।”

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022
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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

8 अप्रैल 2022
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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

9 अप्रैल 2022
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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

20 अप्रैल 2022
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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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