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नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022

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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ।

करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअद्दिद हिंदूओं और मुस्लमानों की जानें ज़ाए हो चुकी हैं।

मेरी बीवी अपनी बहन की शादी के सिलसिले में लाहौर जा चुकी थी। घर बिलकुल सूना सूना था उसे घर तो नहीं कहना चाहिए। क्योंकि सिर्फ़ दो कमरे थे एक गुसल-ख़ाना जिस में सफ़ैद चमकीली टायलें लगी थीं उस से कुछ और हट कर एक अंधेरा सा बावर्ची-ख़ाना और बस।

जब मेरी बीवी घर में थी तो दो नोकर थे। दोनों भाई कम-उम्र थे। इन में से जो छोटा था वो मुझे क़तअन पसंद नहीं था इस लिए कि वो अपनी उम्र से कहीं ज़्यादा चालाक और मक्कार था चुनांचे मैंने मौक़ा से फ़ायदा उठाते हुए उसे निकाल बाहर किया और उस की जगह एक और लड़का मुलाज़िम रख लिया जिस का नाम इफ़्तिख़ार था।

रखने को तो मैंने उसे रख लिया लेकिन बाद में बड़ा अफ़सोस हुआ कि वो ज़रूरत से ज़्यादा फुर्तीला था। मैं कुर्सी पर बैठा हूँ और कोई अफ़साना सोच रहा हूँ कि वो बावर्ची-ख़ाना से भागा आया और मुझ से मुख़ातब हुआ।

“साहब आप ने बुलाया मुझे।”

“मैं हैरान कि इस ख़रज़ात को मैंने कब बुलाया था चुनांचे मैंने शुरू शुरू तो इतनी हैरत का इज़हार किया और उस से कहा। “इफ़्तिख़ार तुम्हारे कान बजते हैं मैं जब आवाज़ दिया करूं उसी वक़्त आया करो।”

इफ़्तिख़ार ने मुझ से कहा। “लेकिन साहब आप की आवाज़ ही सुनाई दी थी।”

मैंने उस से बड़े नरम लहजे में कहा। “नहीं मैंने तुम्हें नहीं बुलाया था जाओ अपना काम करो।”

वो चला गया लेकिन जब हर रोज़ छः छः मर्तबा आकर यही पूछता साहब आप ने बुलाया है मुझे तो तंग आकर इस से कहना पड़ता “तुम बकवास करते हो तुम ज़रूरत से ज़्यादा चालाक हो भाग जाओ यहां से” और वो भाग जाता।

घर में चूँकि और कोई नहीं था इस लिए मेरा दोस्त राजा मह्दी अली ख़ान मेरे साथ ही रहता था उस को इफ़्तिख़ार की मुस्तइद्दी बहुत पसंद थी। वो उस से बहुत मुतअस्सिर था। उस ने कई बार मुझ से कहा “मंटो। तुम्हारा ये मुलाज़िम कितना अच्छा है। हर काम कितनी मुस्तइद्दी से करता है।”

मैंने उस से हर बार यही कहा। “राजा मेरी जान तुम मुझ पर बहुत बड़ा एहसान करोगे। अगर उसे यहां अपने यहां ले जाओ मुझे ऐसे मुस्तइद नौकर की ज़रूरत नहीं” मालूम नहीं कि राजा को इफ़्तिख़ार पसंद था तो उस ने उसे मुलाज़िम क्यों न रख लिया मैंने राजा से कहा।

“देखो भाई ये लड़का बड़ा ख़तरनाक है मुझे यक़ीन है कि चोर है कभी ना कभी मेरे चूना ज़रूर लगाएगा।

राजा मेरा तम्सख़र उड़ाता। तुम फ्राइड बिन रहे हो। ऐसा नौकर ज़िंदगी में मुश्किल से मिलता है तुम ने उसे समझा ही नहीं।

मैं सोच में पड़ जाता कि मेरा क़ियाफ़ा या अंदाज़ा कहीं ग़लत तो नहीं। शायद राजा ठीक ही कह रहा हो। हो सकता है इफ़्तिख़ार ईमानदार हो और जो मैंने उस की ज़रूरत से ज़्यादा फुर्ती और चालाकी के मुतअल्लिक़ फ़ैसला किया है बहुत मुम्किन है ग़लत हो मगर सोच बिचार के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचता कि मैंने जो फ़ैसला किया है वही दरुस्त है मुझे अपने मुतअल्लिक़ ये हुस्न-ए-ज़न है कि इंसानी नफ़्सियात का माहिर हूँ। आप यक़ीन मानिए इफ़्तिख़ार के मुतअल्लिक़ जो राय मैंने क़ायम की थी दुरसत निकली लेकिन।

ये लेकिन ही सारा क़िस्सा है

और क़िस्सा यूँ है कि मैं जब बंबई टॉकीज़ से वापस आया करता था तो आदतन रेलगाड़ी का माहाना टिकट जो एक कार्ड की सूरत में होता था जो सिलो लॉईड के कवर में बंद रहता था, अपने मेज़ के ट्रे में रख्खा करता था जितने रुपय पैसे और आने जेब में होते वो भी उस ट्रे में रख देता। अगर कुछ नोट हों तो में वो टिकट के सिलो लॉईड के कवर में उड़स दिया करता।

एक दिन जब में बंबई टॉकीज़ से वापस आया तो मेरी जेब में साठ रुपय की मालियत के छः नोट दस दस के थे मैंने हस्ब-ए-आदत जेब में से ट्रेन का पास निकाला और सिलो लाईड कवर में छः नोट अड़से और ब्रांडी पीने लगा। खाना खाने के बाद मैं सो गया।

सुबह जल्दी बे-दार होता हूँ यानी यही कोई ५ बजे साढ़े पाँच के क़रीब अख़बार आ जाते थे उन का जल्दी जल्दी मुताला करते करते छः बजे में उठ कर ग़ुसल करता उस के बाद फिर ब्रांडी पीता और खाना खा कर सौ जाता।

इस शाम भी ऐसा ही हुआ इफ़्तिख़ार ने बड़ी फुर्ती से मेज़ पर खाना लगाया जब मैं खा कर फ़ारिग़ हुआ तो उस ने बड़ी फुर्ती से बर्तन उठाए। मेज़ साफ़ की और मुझ से कहा “साहब आप को सिगरेट चाहिऐं।”

मैंने उस से बड़े दुरुश्त लहजे में कहा। कि “सिगरेट तो मुझे चाहिऐं। लेकिन तुम लाओगे कहाँ से जानते नहीं हो आज कर्फ़ियू है नौ बजे से सुबह छः बजे तक।”

इफ़्तिख़ार ख़ामोश होगया।

मैं हस्ब-ए-मामूल सुबह पाँच बजे उठा लेकिन समझ में न आया कि क्या करूं नौकर सौ रहे थे। कर्फ़ियू का वक़्त छः बजे तक था। उस वक़्त कोई अख़बार नहीं आया था। सोफे पर बैठा ऊँघता रहा।

थोड़ी देर के बाद उकता कर मैंने खिड़की से बाहर झांका तो बाज़ार सुनसान था वो बाज़ार जो सुबह तीन बजे ही ट्रालों की खड़खड़ाहट और मिल में काम करने वाली औरतों और मर्दों की तेज़ रफ़्तारी से ज़िंदा होता था।

खिड़की एक ही थी। उस के पास ही मेरी मेज़ पर जो ट्रे पड़ी थी मेरी नज़र इत्तिफ़ाक़िया उस पर पड़ी शाम को हर रोज़ में उस में अपना रेल का पास और रुपय पैसे रख्खा करता था इस लिए कि ये मुआमला आदत बन कर तबीयत बन गया था।

जब मैंने ट्रे को इत्तिफ़ाक़िया देखा तो मुझे वो पास नज़र न आया जिस के कवर में मैंने दस दस के छः करंसी नोट रखे थे पहले तो मैंने समझा कि शायद मैंने काग़ज़ों के नीचे रख दिया होगा लेकिन जब काग़ज़ उठाए तो कुछ भी न था।

बड़ी हैरत हुई। एक एक काग़ज़ उलट पलट किया मगर वो पास न मिला। दोनों नौकर बावर्ची-ख़ाने में सौ रहे थे। मैं बड़ा मुतहय्यर था कि ये क़िस्सा किया है मैंने अगर घर आने से पहले शराब पी होती तो में समझता कि मेरा हाफ़िज़ा जवाब दे गया है या जेब से रूमाल निकालते वक़्त मुझ से वो छः नोट कहीं गिर गए। लेकिन मुआमला इस के बरअक्स था मैंने बंबई टॉकीज़ से वापिस घर आते हुए रास्ते में एक क़तरा भी नहीं पिया था इस लिए कि घर में ब्रांडी की पूरी बोतल मौजूद थी। मैंने इधर उधर तलाश शुरू की तो देखा मेरा रेलवे पास दस दस के छः नोटों समेत मेज़ के निचले दराज़ में फाइलों के नीचे पड़ा है में देर तक सोचता रहा लेकिन कुछ समझ में न आया इस लिए कि मैंने उसे छिपा कर नहीं रखा था।

मैंने सोचा कि ये इफ़्तिख़ार की हरकत है। जबकि में सौ रहा था बावर्ची-ख़ाने के काम से फ़ारिग़ हो कर ट्रे में वो पास देखा और उस को मेज़ के नीचे वाली दराज़ में फाइलों के अंदर छुपा दिया।

रात कर्फ़ियू था इस लिए वो बाहर नहीं जा सकता था। उस की ग़ालिबन ये स्कीम थी कि जब सुबह कर्फ़ियू उठे तो वो पास नोटों समेत लेकर छपत सौ जाएगा मगर मैं भी एक काईयां था मैंने पास फाइलों के नीचे से उठाया और फिर ट्रे में रख दिया ताकि में इफ़्तिख़ार की परेशानी देख सकूं।

मुझे मुक़र्ररा वक़्त पर बंबई टॉकीज़ जाना था चुनांचे हस्ब-ए-मामूल मैंने कुरता और पाजामा निकाला पाजामा में इज़ारबंद डाला और तौलिया लेकर ग़ुसलख़ाने में चला गया लेकिन मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में सिर्फ़ एक ही ख़याल था। और वो इफ़्तिख़ार को रंगे हाथों पकड़ने का मुझे यक़ीन था कि वो मेरी मेज़ के निचले दराज़ में छुपाया हुआ पास बड़े वसूक़ से निकालेगा फिर जब उसे नहीं मिलेगा तो वो इधर उधर देखेगा। जब उसे नाकामी होगी तो वो उठेगा उस की नज़र ट्रे पर पड़ेगी वो किस क़दर हैरान होगा लेकिन वो पास को उठाएगा और अपने क़ब्ज़े में उड़स कर चलता बनेगा।

मैंने अपने दिमाग़ में स्कीम बनाई थी कि ग़ुसलख़ाने का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला रखूंगा। गुसलखाना मेरे कमरे के बिलकुल सामने था ज़रा सा दरवाज़ा खुला रहता और मैं ताक में रहता तो इफ़्तिख़ार को रंगे हाथों पकड़ लेने में कोई शुबा ही नहीं हो सकता।

मैं जब ग़ुसलख़ाने में दाख़िल हुआ तो बहुत मसरूर था। बज़ाम-ए-ख़ुद नफ़्सियाती माहिर की वजह से और भी ज़्यादा ख़ुश था कि आज मेरी क़ाबिलियत मुसल्लम हो जाएगी।

इफ़्तिख़ार को पकड़ कर में राजा के सामने पेश करना चाहता था। मेरा ये इरादा नहीं था कि उसे पुलिस के हवाले करूं मुझे सिर्फ़ अपना दिली और ज़ेहनी इत्मिनान ही तो मतलूब था। चुनांचे मैंने ग़ुसल-ख़ाने में दाख़िल हो कर जब अपने कपड़े उतारे तो दरवाज़ा ज़रा सा खुला रखा।

पानी के दो डोंगे अपने बदन पर डाल कर मैंने साबुन मलना शुरू क्या इस के बाद कई मर्तबा झांक कर कमरे की तरफ़ देखा मगर इफ़्तिख़ार पास लेने न आया। लेकिन मुझे यक़ीन-ए-वासिक़ था कि वो ज़रूर आएगा इस लिए कि उस वक़्त कर्फ़ियू उठ चुका था।

मैं फव्वारे के नीचे बैठा और उस की तेज़ और ठंडी फ़ुवार में अपना काम भूल गया और सोचने लगा। अफ़्साना निगार होना भी बहुत बड़ी लानत है मैंने स्कीम को अफ़साने की शक्ल देना शुरू कर दी साथ साथ नहाता भी रहा इतना मज़ा आया कि अफ़साने और पानी में ग़र्क़ होगया।

मैंने पूरा अफ़साना साबुन और पानी से धो धा कर अपने दिमाग़ में साफ़ कर लिया। बहुत ख़ुश था। इस लिए कि इस अफ़साने का अंजाम ये था कि मैंने अपने नौकर को रंगे हाथों पकड़ लिया है और मेरी नफ़्सियात शनासी की चारों तरफ़ धूम मच गई है।

मैं बहुत ख़ुश था चुनांचे में खिलाफ-ए-मामूल अपने बदन पर ज़रूरत से ज़्यादा साबुन मला। ज़रूरत से ज़्यादा पानी इस्तिमाल किया लेकिन एक बात थी कि अफ़साना मेरे दिमाग़ में और ज़्यादा साफ़ और ज़्यादा उजला होता गया जब नहा कर बाहर निकला तो मैं और भी ज़्यादा ख़ुश था। अब सिर्फ़ ये करना था कि ये क़लम उठाऊँ और ये अफ़साना लिख कर किसी पर्चे को भेज दूँ।

मैं ख़ुश था कि चलो एक अफ़साना होगया। कपड़े तबदील करने के लिए दूसरे कमरे में गया मेरे फ़्लैट में सिर्फ़ दो कमरे थे। एक कमरे में तो वो मुआमला पड़ा था। यानी मेरा रेलवे का पास जिस में दस दस के छः नोट मलफ़ूफ़ थे मैं दूसरे कमरे में कपड़े पहन रहा था।

कपड़े पहन कर जब बाहर निकला तो यूं समझिए जैसे अफ़सानों की दुनिया से बाहर आया। फ़ौरन मुझे ख़याल आया कि मेरी स्कीम क्या थी। मेज़ पर पड़ी ट्रे को देखा .............

मेरा रेलवे पास दस दस के छः नोटों समेत ग़ायब था।

मैंने फ़ौरन अपने शरीफ़ नौकर को तलब किया और उस से पूछा।

“करीम इफ़्तिख़ार कहाँ है”

इस ने जवाब दिया। “साहब वो कोइले लेने गया है।”

मैंने सिर्फ़ इतना कहा “तो उस ने अपना मुँह काला कर लिया है।”

करीम ने उस की तलाश की मगर वो न मिला मैं ग़ुसलख़ाने में इंसानी नफ़्सियात को साबुन और पानी से धोता और साफ़ करता रहा। मगर इफ़्तिख़ार मुझे साफ़ कर गया। इस लिए कि उसी सुबह जब मैं बंबई टॉकीज़ की बर्क़ी ट्रेन में रवाना हुआ तो मेरे पास, पास नहीं था टिकट चैकर आया तो मैं पकड़ा गया मुझे काफ़ी जुर्माना अदा करना पड़ा।

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022
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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022
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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

8 अप्रैल 2022
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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

9 अप्रैल 2022
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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

9 अप्रैल 2022
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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

20 अप्रैल 2022
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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

20 अप्रैल 2022
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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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