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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022

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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने के लिए आते थे।

कहा जाता है कि मेरठ के एक ताजिर अबदुल्लाह से जो लाखों में खेलता था, उसे मुहब्बत हो गई, उस ने चुनांचे इसी जज़्बे के मातहत अपना पेशा छोड़ दिया। अबदुल्लाह बहुत मुतअस्सिर हुआ और उस की माहवार तनख़्वाह मुक़र्रर कर दी कोई तीन सौ के क़रीब। हफ़्ते में तीन मर्तबा उस के पास आता, रात ठहरता। सुबह सवेरे वहाँ से रवाना हो जाता।

जो शख़्स ज़ुहरा जान को जानते हैं और आगरे के रहने वाले हैं उन का ये बयान है कि उस का चाहने वाला एक बढ़ई था मगर वो उसे मुँह नहीं लगाती थी। वो बेचारा ज़रूरत से ज़्यादा मेहनत-ओ-मशक़्क़त करता और तीन चार महीने के बाद रुपये जमा कर के ज़ुहरा जान के पास जाता मगर वो उसे धुतकार देती।

आख़िर एक रोज़ उस बढ़ई को ज़ुहरा जान से मुफ़स्सल गुफ़्तुगू करने का मौक़ा मिल ही गया पहले तो वो कोई बात ना कर सका। इस लिए कि उस पर अपनी महबूबा के हुस्न का रोब तारी था लेकिन उस ने थोड़ी देर के बाद जुर्अत से काम लिया और उस से कहा: “ज़ुहरा जान मैं ग़रीब आदमी हूँ, मुझे मालूम है कि बड़े बड़े धन वाले तुम्हारे पास आते हैं और तुम्हारी हर अदा पर सैंकड़ों रुपये निछावर करते हैं लेकिन तुम्हें शायद ये बात मालूम नहीं कि ग़रीब की मुहब्बत धन दौलत वालों के लाखों रूपयों से बड़ी होती है मैं तुम से मुहब्बत करता हूँ मालूम नहीं क्यूँ”

ज़ुहरा जान हँसी इस हँसी से बढ़ई का दिल मजरूह हो गया “तुम हँसती हो मेरी मुहब्बत का मज़ाक़ उड़ाती हो इस लिए कि ये कंगले की मुहब्बत है जो लकड़ियाँ चीर कर अपनी रोज़ी कमाता है याद रख्खो ये तुम्हारे लाखों में खेलने वाले तुम्हें वो मुहब्बत और प्यार नहीं दे सकते जो मेरे दिल में तुम्हारे लिए मौजूद है”

ज़ुहरा जान उकता गई, उस ने अपने एक मीरासी को बुलाया और उस से कहा कि बढ़ई को बाहर निकाल दो लेकिन वो इस से पहले ही चला गया।

एक बरस के बाद ईदन पैदा हुई उस का बाप अबदुल्लाह था या कोई और उस के मुतअल्लिक़ कोई भी वसूक़ से कुछ नहीं कह सकता बअज़ का ख़याल है कि वो ग़ाज़िआबाद के एक हिंदू सेठ के नुतफ़े से है किसी के नुतफ़े से भी हो मगर बला की ख़ूबसूरत थी।

इधर ज़ुहरा जान की उम्र ढलती गई, उधर ईदन जवान होती गई, उस की माँ ने उस को मौसीक़ी की बड़ी अच्छी तालीम दी, लड़की ज़हीन थी कई उसतादों से उस ने सबक़ लिए और उन से दाद वसूल की।

ज़ुहरा जान की उम्र अब चालीस बरस के क़रीब हो गई, वो अब उस मंज़िल से गुज़र चुकी थी जब किसी तवाइफ़ में कशिश बाक़ी रहती है, वो अपनी इकलौती लड़की ईदन के सहारे जी रही थी, अभी तक उस ने उस से मुजरा नहीं किराया था। वो चाहती थी कि बहुत बड़ी तक़रीब हो जिस का इफ़्तिताह कोई राजा नवाब करे।

ईदन बाई के हुस्न के चर्चे आम थे। दूर दूर तक अय्याश रईसों में इस के तज़किरे होते थे, वो अपने एजैंटों को ज़ुहरा जान के पास भेजते और ईदन की नथुनी उतारने के लिए अपनी अपनी पेशकश भेजते, मगर उस को इतनी जल्दी नहीं थी वो चाहती थी कि मिस्सी की रस्म बड़ी धूम धाम से हो और वो ज़्यादा से ज़्यादा क़ीमत वसूल करे उस की लड़की लाखों में एक थी सारे शहर में उस जैसी हसीन लड़की और कोई नहीं थी।

उस के हुस्न की नुमाइश करने के लिए वो हर जुमेरात की शाम को उस के साथ पैदल बाहर सैर को जाती, इश्क़ पेशा मर्द उस को देखते तो दिल थाम थाम लेते।

फँसी फँसी चोली में गदराया हुआ जोबन, सुडौल बांहें मख़रूती उंगलियाँ जिन के नाख़ुनों पर जीता जीता लहू, ऐसा रंग, ठुमका सा क़द, घुंगराले बाल क़दम क़दम पर क़ियामत ढाती थी।

आख़िर एक रोज़ ज़ुहरा जान की उमीद बर आई। एक नवाब ईदन पर ऐसा लट्टू हुआ कि वो मुंहमाँगे दाम देने पर रज़ामंद हो गया। ज़ुहरा जान ने अपनी बेटी की मिस्सी की रस्म के लिए बड़ा एहतिमाम किया, कई देगें पुलाव और मुतंजन की चढ़ाई गईं।

शाम को नवाब साहब अपनी बग्घी में आए, ज़ुहरा जान ने उन की बड़ी आओ भगत की नवाब साहब बहुत ख़ुश हुए, ईदन दूल्हन बनी हुई थी, नवाब साहब के इरशाद के मुताबिक़ उस का मुजरा शुरू हुआ फट पड़ने वाला शबाब था जो महव-ए-नग़्मा-सराई था।

ईदन उस शाम बला की ख़ूबसूरत दिखाई दे रही थी, उस की हर जुंबिश हर अदा उस के गाने की हर सुर ज़ुहद-ए-शिकन थी। नवाब साहब गाव तकिये का सहारा लिए बैठे थे। उन्हों ने सोचा कि आज रात वो जन्नत की सैर करेंगे जो किसी और को नसीब नहीं हुई।

वो ये सोच ही रहे थे कि अचानक एक बेहंगम सा आदमी अंदर दाख़िल हुआ और ज़ुहरा जान के पास बैठ गया, वो बहुत घबराई, ये वही बढ़ई था उस का आशिक़-ए-राज़, बहुत मैले और गंदे कपड़े पहने था। नवाब साहब को जो बहुत नफ़ासत-पसंद थे, उबकाईयाँ आने लगीं। उन्हों ने ज़ुहरा जान से कहा : “ये कौन बदतमीज़ है?”

बढ़ई मुस्कुराया “हुज़ूर! मैं इन का आशिक़ हूँ”

नवाब साहब की तबीयत और ज़्यादा मुक़द्दर हो गई, ज़ुहरा जान “निकालो इस हैवान को बाहर”

बढ़ई ने अपने थैले से आरी निकाली और बड़ी मज़बूती से ज़ुहरा जान को पकड़ कर उस की गर्दन पर तेज़ी से चलाने शुरू कर दी, नवाब साहब और मीरासी वहाँ से भाग गए, ईदन बेहोश हो गई।

बढ़ई ने अपना काम बड़े इतमिनान से ख़त्म किया और लहू भरी आरी अपने थैले में डाल कर सीधा थाने गया और इक़बाल-ए-जुर्म कर लिया। कहा जाता है कि उसे उम्र क़ैद हो गई थी।

ईदन को अपनी माँ के क़त्ल होने का इस क़दर सदमा हुआ कि वो दो अढ़ाई महीने तक बीमार रही। डाक्टरों का ख़याल था कि वो ज़िंदा नहीं रहेगी मगर आहिस्ता आहिस्ता उस की तबीयत सँभलने लगी और वो इस क़ाबिल हो गई कि चल फिर सके। हस्पताल में उस की तीमारदारी सिर्फ़ उस के उस्ताद और मीरासी ही करते थे। वो नवाब और रईस जो उस पर अपनी जान छिड़कते थे, भूले से भी उस को पूछने के लिए ना आए वो बहुत दिल बर्दाश्ता हो गई।

वो आगरा छोड़कर दिल्ली चली आई मगर उस की तबीयत इतनी उदास थी कि उस का जी क़तअन मुजरा करने को नहीं चाहता था। उस के पास बीस पच्चीस हज़ार रुपय के ज़ेवरात थे जिन में आधे उस की मक़्तूल माँ के थे वो उन्हें बेचती रही और गुज़ारा करती रही।

औरत को ज़ेवर बड़े अज़ीज़ होते हैं, उस को बड़ा दुख होता था जब वो कोई चूड़ी या निकलस औने पौने दामों बेचती थी अजब आलम था ख़ून पानी से भी अर्ज़ां हो रहा था।

मुस्लमान धड़ा धड़ पाकिस्तान जा रहे थे कि उन की जानें महफ़ूज़ रहें। ईदन ने भी फ़ैसला कर लिया कि वो दिल्ली में नहीं रहेगी। लाहौर चली आएगी। बड़ी मुश्किलों से अपने कई जे़वरात बेच कर वो लाहौर पहुँच गई लेकिन रास्ते में उस की तमाम बेश-क़ीमत पिशवाज़ें और बाक़ी-मांदा ज़ेवर इस के अपने भाई मुसलमानों ही ने ग़ायब कर दिए।

जब वो लाहौर पहुंची तो वो लुटी पिटी थी लेकिन उस का हुस्न वैसे का वैसा था। दिल्ली से लाहौर आते हुए हज़ारों ललचाई हुई आँखों ने उस की तरफ़ देखा मगर इस ने बे-एतिनाई बरती।

वो जब लाहौर पहुंची तो इस ने सोचा कि ज़िंदगी बसर कैसे होगी? उस के पास तो चने खाने के लिए भी चंद पैसे नहीं थे लेकिन लड़की ज़हीन थी सीधी उस जगह पहुंची जहाँ उन की हम-पेशा रहती थीं यहाँ उस की बड़ी आओ भगत की गई।

उन दिनों लाहौर में रुपया आम था, हिंदू जो कुछ यहाँ छोड़ गए थे, मुसलमानों की मिल्कियत बन गया था। हीरा मंडी के वारे न्यारे थे।

ईदन को जब लोगों ने देखा तो वो उस के आशिक़ हो गए। रात भर उस को सैंकड़ों गाने सुनने वालों की फरमाइशें पूरी करना पड़तीं। सुबह चार बजे के क़रीब जब कि उस की आवाज़ जवाब दे चुकी होती वो अपने सामईन से मआज़रत तलब करती और औंधे मुँह अपनी चारपाई पर लेट जाती।

ये सिलसिला क़रीब क़रीब डेढ़ बरस तक जारी रहा ईदन उस के बाद एक अलाहिदा कोठा कराए पर लेकर वहाँ उठ आई, चूँकि जहाँ वो मुक़ीम थी, उस नाइका को उसे अपनी आधी आमदन देना पड़ती थी।

जब उस ने अलाहिदा अपने कोठे पर मुजरा करना शुरू किया तो उस की आमदन में इज़ाफ़ा हो गया। अब उसे हर क़िस्म की फ़राग़त हासिल थी उस ने कई ज़ेवर बना लिए कपड़े भी अच्छे से अच्छे तैय्यार करा लिए।

उसी दौरान में उस की मुलाक़ात एक ऐसे शख़्स से हुई जो ब्लैक मार्कीट का बादशाह था, उस ने कम अज़ कम दो करोड़ रुपय कमाए थे, ख़ूबसूरत था इस के पास तीन कारें थीं, पहली ही मुलाक़ात पर वो ईदन के हुस्न से इस क़दर मुतअस्सिर हुआ कि उस ने अपनी खड़ी सफ़ैद पेकार्ड उस के हवाले कर दी।

इस के इलावा वो हर शाम आता और कम अज़ कम दो ढाई सौ रुपये उस की नज़र ज़रूर करता। एक शाम वो आया तो चाँदनी किसी क़दर मैली थी, उस ने ईदन से पूछा “क्या बात है आज तुम्हारी चाँदनी इतनी गंदी है”

ईदन ने एक अदा के साथ जवाब दिया “आज कल लट्ठा कहाँ मिलता है?”

दूसरे दिन इस ब्लैक मार्कीट बादशाह ने चालीस थान लट्ठे के भिजवा दिए, उस के तीसरे रोज़ बाद उस ने ढाई हज़ार रुपये दिए कि ईदन अपने घर की आराइश का सामान ख़रीद ले।

ईदन को अच्छा गोश्त खाने का बहुत शौक़ था, जब वो आगरे और दिल्ली में थी तो उसे उम्दा गोश्त नहीं मिलता था मगर लाहौर में उसे क़ादिरा कसाई बेहतरीन गोश्त मुहय्या करता था बगैर रेशे के हर बूटी ऐसी होती थी जैसे रेशम की बनी हो।

दुकान पर अपना शागिर्द बिठा कर क़ादिरा सुबह सवेरे आता और डेढ़ सेर गोश्त जिस की बोटी बोटी फड़क रही होती, ईदन के हवाले कर देता उस से देर तक बातें करता रहता जो आम तौर पर गोश्त ही के बारे में होतीं।

ब्लैक मार्कीट का बादशाह जिस का नाम ज़फ़र शाह था, ईदन के इश्क़ में बहुत बुरी तरह गिरफ़्तार हो चुका था, उस ने एक शाम ईदन से कहा कि वो अपनी सारी जायदाद, मनक़ूला और गैर मनक़ूला उस के नाम मुंतक़िल करने के लिए तैय्यार है अगर वो उस से शादी कर ले मगर ईदन ना मानी ज़फ़र शाह बहुत मायूस हुआ।

उस ने कई बार कोशिश की कि ईदन उस की हो जाये मगर हर बार उसे नाकामी का सामना करना पड़ा। वो मुजरे से फ़ारिग़ हो कर रात के दो तीन बजे के क़रीब बाहर निकल जाती थी, मालूम नहीं कहाँ।

एक रात जब ज़फ़र शाह अपना ग़म ग़लत कर के यानी शराब पी कर पैदल ही चला आ रहा था कि उस ने देखा कि साईं के तकिए के बाहर ईदन एक निहायत बदनुमा आदमी के पाँव पकड़े इल्तिजाएँ कर रही है कि “ख़ुदा के लिए मुझ पर नज़र-ए-करम करो मैं दिल-ओ-जान से तुम पर फ़िदा हूँ तुम इतने ज़ालिम क्यूँ हो” और वो शख़्स जिसे ग़ौर से देखने पर ज़फ़र शाह ने पहचान लिया कि क़ादिरा कसाई है उसे धुतकार रहा है। “जा हम ने आज तक किसी कनजरी को मुँह नहीं लगाया मुझे तंग ना क्या कर”

क़ादिरा उसे ठोकरें मारता रहा और ईदन इसी में लज़्ज़त महसूस करती रही।

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022
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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

8 अप्रैल 2022
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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

9 अप्रैल 2022
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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

9 अप्रैल 2022
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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

20 अप्रैल 2022
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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

20 अप्रैल 2022
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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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