shabd-logo

टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022

16 बार देखा गया 16

अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो कभी सीधे रास्ते पर न चलता। उसे बाग़ का वो कोना बहुत पसंद था। जहां लहराती हुई रविशें बनी हुई थीं।

एक बार उस ने अपनी टांगों को सीने के साथ जोड़ कर बड़े दिलकश अंदाज़ में मुझ से कहा था। “अब्बास अगर मुझे और कोई काम न हो। तो बख़ुदा मैं अपनी सारी ज़िंदगी कश्मीर की पहाड़ी सड़कों पर चढ़ने उतरने में गुज़ार दूँ........ क्या पेच हैं....... अभी तुम मुझे नज़र आ रहे हो और एक मोड़ मुड़ने के बाद मेरी नज़रों से ओझल हो जाते हो........ कितनी पुर-इसरार चीज़ है....... सीधे रास्ते पर तुम हर आने वाली चीज़ देख सकते हो, मगर यहां आने वाली चीज़ें तुम्हारी आँखों के सामने बिलकुल अचानक आजाऐंगी........ मौत की तरह अचानक....... इस में कितना मज़ा है!”

वो एक दुबला पतला नौजवान था। बेहद दुबला। उस को एक नज़र देखने से अक्सर औक़ात मालूम होता कि हस्पताल के किसी बिस्तर से कोई ज़र्द-रू बीमार उठ कर चला आया है। उस की उम्र बमुश्किल बाईस बरस के क़रीब होगी। मगर बाअज़ औक़ात वो इस से बहुत ज़्यादा उम्र का मालूम होता था। और अजीब बात है कि कभी कभी उस को देख कर मैं ये ख़याल करने लगता कि वो बच्चा बन गया है। इस में इका इकी इस क़दर तबदीली हो जाया करती थी कि मुझे अपनी निगाहों की सेहत पर शुबा होने लग जाता था।

आख़िरी मुलाक़ात से दस रोज़ पहले जब वो मुझे बाज़ार में मिला तो में उसे देख कर हैरान रह गया। वो हाथ में एक बड़ा सेब लिए उसे दाँतों से काट कर खा रहा था। उस का चेहरा बच्चों की मानिंद एक नाक़ाबिल-ए-बयान ख़ुशी के बाइस तिमतिमाया हुआ था। उस का चेहरा गवाही दे रहा था कि सेब बहुत लज़ीज़ है।

सेब के रस से भरे हुए हाथों को बच्चों की मानिंद अपनी पतलून से साफ़ कर के उस ने मेरा हाथ बड़े जोश से दबाया और कहा....... “अब्बास वो दो आने मांगता था, मगर मैंने भी एक ही आने में ख़रीदा।”

उस के होंट ज़फ़र मंदाना हंसी के बाइस थरथराने लगते, फिर इस ने जेब से एक चीज़ निकाली। और मेरे हाथ में दे कर कहा। “तुम ने लट्टू तो बहुत देखे होंगे। पर ऐसा लट्टू कभी देखने में न आया होगा..... ऊपर का बटन दबाओ....... दबाओ......... अरे दबाओ!”

मैं सख़्त मतहय्यर हो रहा था। लेकिन उस ने मेरी तरफ़ देखे बग़ैर लट्टू का बटन दबा दिया जो मेरी हथेली पर से उछल कर सड़क पर लंगड़ाने लगा..... इस पर ख़ुशी के मारे मेरे दोस्त ने उछलना शुरू कर दिया।

“देखो, अब्बास, देखो, इस का नाच।”

मैंने लट्टू की तरफ़ देखा। जो मेरे सर के मानिंद घूम रहा था। हमारे इर्दगिर्द बहुत से आदमी जमा हो गए थे। शायद वो ये समझ रहे थे। कि मेरा दोस्त दवाईयां बेचेगा।

“लट्टू उठाओ और चलें....... लोग हमारा तमाशा देखने के लिए जमा हो रहे हैं!”

मेरे लहजे में शायद थोड़ी सी तेज़ी थी। क्योंकि उस की सारी ख़ुशी मांद पड़ गई। और उस के चेहरे की तिमतिमाहट ग़ायब हो गई। वो उठा और उस ने मेरी तरफ़ कुछ इस अंदाज़ से देखा कि मुझे ऐसा मालूम हुआ। जैसे एक नन्हा सा बच्चा रूनी सूरत बना कर कह रहा है। मैंने तो कोई बुरी बात नहीं की फिर मुझे क्यों झिड़का गया है?

उस ने लट्टू वहीं सड़क पर छोड़ दिया। और मेरे साथ चल पड़ा, घर तक मैंने और उस ने कोई बात न की। गली के नुक्कड़ पर पहुंच कर मैंने उस की तरफ़ देखा..... इस क़लील अर्से में उस के चेहरे पर इन्क़िलाब पैदा हो गया था। वो मुझे एक तफ़क्कुर ज़दा बूढ़ा नज़र आया।

मैंने पूछा। “क्या सोच रहे हो?”

उस ने जवाब दिया। “मैं ये सोच रहा हूँ। अगर ख़ुदा को इंसान की ज़िंदगी बसर करनी पड़ जाये तो क्या हो?”

वो इसी क़िस्म की बेढंगी बातें सोचा करता था। बाअज़ लोग ये समझते थे कि वो अपने आप को निराला ज़ाहिर करने के लिए ऐसे ख़यालात का इज़हार करता है। मगर ये बात ग़लत थी। दरअसल उस की तबीयत का रुजहान ही ऐसी चीज़ों की तरफ़ रहता था जो किसी और दिमाग़ में नहीं आती थीं।

आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर उस को अपने जिस्म पर रस्ता हुआ ज़ख़्म बहुत पसंद था। वो कहा करता था। अगर मेरे जिस्म पर हमेशा के लिए कोई ज़ख़्म बन जाये तो कितना अच्छा हो...... मुझे दर्द में बड़ा मज़ा आता है।

मुझे अच्छी तरह याद है कि स्कूल में एक रोज़ उस ने मेरे सामने अपने बाज़ू को उसतुरे के तेज़ ब्लेड से ज़ख़्मी किया। सिर्फ़ इस लिए कि कुछ रोज़ इस में दर्द होता रहे टीका उस ने कभी........ इस ख़याल से नहीं लगवाया था। कि इस से हैज़े, प्लेग या मलेरिया का ख़ौफ़ नहीं रहता। उस की हमेशा ये ख़्वाहिश होती थी। कि दो तीन रोज़ इस का बदन बुख़ार के बाइस तप्ता रहे। चुनांचे जब कभी वो बुख़ार को दावत दिया करता था। तो मुझ से कहा करता था। “अब्बास, मेरे घर में एक मेहमान आने वाला है। इस लिए तीन रोज़ तक मुझे फ़ुर्सत नहीं मिलेगी।”

एक रोज़ मैंने उस से पूछा कि “तुम आए दिन टीका क्यों लगवाते हो।” उस ने जवाब दिया। “अब्बास, मैं तुम्हें बता नहीं सकता कि टीका लगवाने से जो बुख़ार चढ़ता है उस में कितनी शायरी होती है। जब जोड़ जोड़ में दर्द होता है। और आज़ा शिकनी होती है तो बख़ुदा ऐसा मालूम होता है। कि तुम किसी निहायत ही ज़िद्दी आदमी को समझाने की कोशिश कर रहे हो...... और फिर बुख़ार बढ़ जाने से जो ख़्वाब आते हैं। अल्लाह किस क़दर बेरबत होते हैं...... बिलकुल हमारी ज़िंदगी की मानिंद!...... अभी तुम ये देखते हो कि तुम्हारी शादी किसी निहायत हसीन औरत से हो रही है। दूसरे लम्हे यही औरत तुम्हारी आग़ोश में एक क़वी हैकल पहलवान बन जाती है।”

मैं उस की इन अजीब-ओ-ग़रीब बातों का आदी हो गया था, लेकिन इस के बावजूद एक रोज़ मुझे उस के दिमाग़ी तवाज़ुन पर शुबा होने लगा। गुज़श्ता मई में मैंने उस से अपने उस्ताद का तआरुफ़ कराया जिस की मैं बेहद इज़्ज़त करता था। डाक्टर शाकिर ने उस का हाथ बड़ी गर्मजोशी से दबाया और कहा। “मैं आप से मिल कर बहुत ख़ुश हुआ हूँ।”

“इस के बरअक्स, मुझे आप से मिल कर कोई ख़ुशी नहीं हुई।” ये मेरे दोस्त का जवाब था। जिस ने मुझे बेहद शर्मिंदा क्या, आप क़ियास फ़रमाईए की उस वक़्त मेरी क्या हालत हुई होगी। शर्म के मारे मैं अपने उस्ताद के सामने गढ़ा जा रहा था। और वो बड़े इत्मिनान से सिगरेट के कश लगा कर हाल में एक तस्वीर की तरफ़ देख रहा था।

डाक्टर शाकिर ने मेरे दोस्त की इस हरकत को बुरा समझा और तख़लिए में मुझ से बड़े तेज़ लहजे में कहा। “मालूम होता है। तुम्हारे दोस्त का दिमाग़ ठिकाने नहीं।”

मैंने उस की तरफ़ से माज़रत तलब की और मुआमला रफ़ा दफ़ा हो गया, मैं वाक़ई बेहद शर्मिंदा था कि डाक्टर शाकिर को मेरी वजह से ऐसा सख़्त फ़िक़रा सुनना पड़ा।

शाम को मैं अपने दोस्त के पास गया। इस इरादे के साथ कि उस से अच्छी तरह बाज़पुर्स करूंगा। और अपने दिल की भड़ास निकालूंगा। वो मुझे लाइब्रेरी के बाहर मिला। मैंने छूटते ही उस से कहा। “तुम ने आज डाक्टर शाकिर की बहुत बेइज़्ज़ती की....... मालूम होता है तुम ने मजलिसी आदाब को ख़ैरबाद कह दिया है।”

वो मुस्कुराया “अरे छोड़ो इस क़िस्से को...... आओ कोई और काम की बात करें।”

ये सुन कर मैं उस पर बरस पड़ा। ख़ामोशी से मेरी तमाम बातें सुन कर उस ने साफ़ साफ़ कह दिया..... “अगर मुझ से मिल कर किसी शख़्स को ख़ुशी हासिल होती है तो ज़रूरी नहीं कि उस से मिल कर मुझे भी ख़ुशी हासिल हो...... और फिर पहली मुलाक़ात पर सिर्फ़ हाथ मिलाने से मैंने उस के दिल में ख़ुशी पैदा कर दी...... मेरी समझ में नहीं आता.......तुम्हारे डाक्टर साहब ने उस रोज़ पच्चीस आदमियों से तआरुफ़ किया। और हर शख़्स से उन्हों ने यही कहा, कि आप से मिल कर मुझे बड़ी मुसर्रत हासिल हुई है। क्या ये मुम्किन है कि हर शख़्स एक ही क़िस्म के तास्सुरात पैदा करे....... तुम मुझ से फ़ुज़ूल बातें न करो..... आओ अंदर चलें!”

मैं एक सहर ज़दा आदमी की तरह उस के साथ हो लिया। और लाइब्रेरी के अंदर जा कर अपना सब ग़ुस्सा भूल गया। बल्कि ये सोचने लगा। कि मेरे दोस्त ने जो कुछ कहा था। सही है लेकिन फ़ौरन ही मेरे दिल में एक हसद सा पैदा हुआ कि इस शख़्स में इतनी क़ुव्वत क्यों है। कि वो अपने ख़यालात का इज़हार बेधड़क कर देता है। पिछले दिनों मेरे एक अफ़्सर की दादी मर गई थी। और मुझे उस के सामने मजबूरन अपने ऊपर ग़म की कैफ़ीयत तारी करनी पड़ी थी। और उस से अपनी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ दस पंद्रह मिनट तक अफ़सोस ज़ाहिर करना पड़ा था। उस की दादी से मुझे कोई दिलचस्पी न थी। उस की मौत की ख़बर ने मेरे दिल पर कोई असर न किया था। लेकिन इस के बावजूद मुझे नक़ली जज़्बात तैय्यार करने पड़े थे। इस का साफ़ मतलब ये था कि मेरा करेक्टर अपने दोस्त के मुक़ाबले में बहुत कमज़ोर है, इस ख़्याल ही ने मेरे दिल में हसद की चिंगारी पैदा की थी। और मैं अपने हलक़ में एक नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त तल्ख़ी महसूस करने लगा था। लेकिन ये एक वक़्ती और हंगामी जज़्बा था जो हवा के एक तेज़ झोंके के मानिंद आया और गुज़र गया। मैं बाद में इस पर भी नादिम हुआ।

मुझे उस से बेहद मुहब्बत थी। लेकिन इस मुहब्बत में ग़ैर इरादी तौर पर कभी कभी नफ़रत की झलक भी नज़र आती थी। एक रोज़ मैंने उस की साफगोई से मुतअस्सिर हो कर कहा था। “ये क्या बात है कि बाअज़ औक़ात मैं तुम से नफ़रत करने लगता हूँ।” और उस ने मुझे ये जवाब दे कर मुतमइन कर दिया था। “तुम्हारा दिल जो मेरी मुहब्बत से भरा हुआ है एक ही चीज़ को बार बार देख कर कभी कभी तंग आ जाता है। और किसी दूसरी शैय की ख़्वाहिश करने लग जाता है....... और फिर अगर तुम मुझ से कभी कभी नफ़रत न करो। तो मुझ से हमेशा मुहब्बत भी नहीं कर सकते....... इंसान इसी क़िस्म की उलझनों का मजमूआ है।”

मैं और वो अपने वतन से बहुत दूर थे। एक ऐसे बड़े शहर में जहां ज़िंदगी तारीक क़ब्र सी मालूम होती है। मगर उसे कभी उन गलियों की याद न सताती थी। जहां उस ने अपना बचपन और अपने शबाब का ज़माना-ए-आग़ाज़ गुज़ारा था। ऐसा मालूम होता था। कि वो इसी शहर में पैदा हुआ है। मेरे चेहरे से हर शख़्स ये मालूम कर सकता है कि मैं ग़रीब-उल-वतन हूँ। मगर मेरा दोस्त इन जज़्बात से यकसर आरी है। वो कहा करता है। वतन की याद बहुत बड़ी कमज़ोरी है एक जगह से ख़ुद को चिपका देना ऐसा ही है जैसे एक आज़ादी पसंद सांड को खूंटे से बांध दिया जाये।

इस क़िस्म के ख़यालात के मालिक की जो हर शैय को टेढ़ी ऐनक से देखता हो। और मुरव्वजा रूसूम के ख़िलाफ़ चलता हो बाक़ायदा निकाह ख़्वानी हो, यानी पुरानी रूसूम के मुताबिक़। उस का अक़्द अमल में आए। तो क्या आप को तअज्जुब न होगा?...... मुझे यक़ीन है कि ज़रूर होगा।

एक रोज़ शाम को जब वो मेरे पास आया। और बड़े संजीदा अंदाज़ में उस ने मुझे अपने निकाह की ख़बर सुनाई। तो आप यक़ीन करें मेरी हैरत की कोई इंतिहा न रही इस हैरत का बाइस ये चीज़ थी कि वो शादी कर रहा है नहीं, मुझे तअज्जुब इस बात पर था। कि उस ने लड़की बग़ैर देखे, पुराने ख़ुतूत के मुताबिक़ निकाह की रस्म में शामिल होना क़बूल कैसे कर लिया। जब कि वो हमेशा उन मौलवियों का मज़हका उड़ाया करता था। जो लड़की और लड़के को रिश्ता-ए-अज़दवाज में बांधते हैं? वो कहा करता था। “ये मौलवी मुझे बुड्ढे और गनठिया के मारे पहलवान मालूम होते हैं। जो अपने अखाड़े में छोटे छोटे लड़कों की कश्तियां देख कर अपनी हिर्स पूरी करते हैं।”

और फिर वो शादी या निकाह पर लोगों के जमघटे का भी तो क़ाइल न था मगर...... इस का निकाह पढ़ा गया। मेरी आँखों के सामने मौलवी ने...... उस मौलवी ने जिस से उस को सख़्त चिड़ थी। और जिस को वो बूढ़ा तोता कहा करता था। उस का निकाह पढ़ा। छोहारे बांटे गए। और मैं सारी कार्रवाई यूं देख रहा था गोया सोते में कोई सपना देख रहा हूँ।

निकाह हो गया। दूसरे लफ़्ज़ों में अन-होनी बात हो गई। और जो तअज्जुब मुझे पहले पैदा हुआ था। बाद में भी बरक़रार रहा। मगर मैंने इस के मुतअल्लिक़ अपने दोस्त से ज़िक्र न किया। इस ख़याल से कि शायद उसे नागवार गुज़रे। लेकिन दिल ही दिल में इस बात पर ख़ुश था। कि आख़िर कार उसे इस दायरे में लौटना पड़ा। जिस में दूसरे ज़िंदगी बसर कर रहे हैं।

निकाह करके मेरा दोस्त अपने उसूलों के टेढ़े मिनार से बहुत बुरह तरह फिसला था। और उस गढ़े में सर के बल आ गिरा था। जिस को वो बेहद ग़लीज़ कहा करता था। जब मैंने ये सोचा तो मेरे जी में आई। कि अपने कज-रफ़्तार दोस्त के पास जाऊं। और इतना हंसूं इतना हंसूं कि पेट में बल पड़ जाएं। मगर जिस रोज़ मेरे दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई। इसी रोज़ वो दोपहर को मेरे घर आया।

निकाह को तीन महीने गुज़र गए थे और इस दौरान में वो हमेशा उदास उदास रहता था। उस का चेहरा चमक रहा था। और नाक जो चंद रोज़ पहले भद्दी नियाम के अंदर छुपी हुई तलवार का नक़्शा पेश करती थी। उस पर सब से नुमायां नज़र आ रही थी।

वो मेरे कमरे में दाख़िल हुआ। और सिगरेट सुलगा कर मेरे पास बैठ गया। उस के होंटों के इख़्तितामी कोने कपकपा रहे थे। ज़ाहिर था कि वो मुझे कोई बड़ी अहम बात सुनाने वाला है। मैं हमातन-गोश हो गया।

उस ने सिगरेट के धोएँ से छल्ला बनाया। और उस में अपनी उंगली गाड़ते हुए मुझ से कहा। “अब्बास! मैं कल यहां से जा रहा हूँ।”

“जा रहे हो?” मेरी हैरत की कोई इंतिहा न रही।

“मैं कल यहां से जा रहा हूँ। शायद हमेशा के लिए। मैं इस ख़बर से तुम्हें मत्तला करने के लिए न आता। मगर मुझे तुम से कुछ रुपय लेना हैं। जो तुम ने मुझ से क़र्ज़ ले रख्खे हैं..... क्या तुम्हें याद है?”

मैंने जवाब दिया। “याद है, पर तुम जा कहाँ रहे हो?...... और फिर हमेशा के लिए..... ?”

“बात ये है कि मुझे अपनी बीवी से इश्क़ हो गया है। और कल रात में उसे भगा कर अपने साथ लिए जा रहा हूँ...... वो तैय्यार हो गई है!”

ये सुन कर मुझे इस क़दर हैरत हुई कि मैं बेवक़ूफ़ों की मानिंद हँसने लगा। और देर तक हँसता रहा। वो अपनी मनकूहा बीवी को जिसे वो जब चाहता उंगली पकड़ कर अपने साथ ला सकता था, अग़वा करके ले जा रहा था......भगा कर ले जा रहा था। जैसे जैसे......... मैं क्या कहूं कि उस वक़्त मैंने क्या सोचा....... दरअसल मैं कुछ सोचने के काबिल ही न रहा था।

मुझे हँसता देख कर उस ने मलामत भरी नज़रों से मेरी तरफ़ देखा। “अब्बास! ये हँसने का मौक़ा नहीं। कल रात वो अपने मकान के साथ वाले बाग़ में मेरा इंतिज़ार करेगी, और मुझे सफ़र के लिए कुछ रुपया फ़राहम करके उस के पास ज़रूर पहुंचना चाहिए। वो क्या कहेगी। अगर मैं अपने वाअदे पर क़ायम न रहा........ तुम्हें क्या मालूम, मैंने किन किन मुश्किलों के बाद रसाई हासिल करके उस को इस बात पर आमादा किया है!”

मैंने फिर हंसना चाहा। मगर उस को ग़ायत दर्जा संजीदा ओ मतीन देख कर मेरी हंसी दब गई और मुझे क़तई तौर पर मालूम हो गया। कि वो वाक़ई अपनी मनकूहा बीवी को भगा कर ले जा रहा है। कहाँ?........ ये मुझे मालूम न था।

मैं ज़्यादा तफ़सील में न गया। और उसे वो रुपय अदा कर दिए। जो मैंने अर्सा हुआ उस से क़र्ज़ लिए थे। और ये समझ कर अभी तक न दिए थे कि वो न लेगा। मगर उस ने ख़ामोशी से नोट गिन कर अपनी जेब में डाले और बग़ैर हाथ मिलाए रुख़स्त होने ही वाला था कि मैंने आगे बढ़ कर उस से कहा। “तुम जा रहे हो........ लेकिन मुझे भुला न देना!”

मेरी आँखों में आँसू आ गए। मगर उस की आँखें बिलकुल ख़ुश्क थीं।

“मैं कोशिश करूंगा।” ये कह कर वो चला गया। मैं बहुत देर तक जहां खड़ा था बुत बना रहा।

जब इधर उस के सुसराल वालों को पता चला। कि उन की लड़की रात रात में कहीं ग़ायब हो गई है। तो एक हैजान बरपा हो गया। एक हफ़्ते तक उन्हों ने उसे इधर उधर तलाश किया। और किसी को इस वाक़िया की ख़बर तक न होने दी। मगर बाद में लड़की के भाई को मेरे पास आना पड़ा। और मुझे अपना हमराज़ बना कर उसे सारी राम कहानी सुनानी पड़ी।

वो बेचारे ये ख़याल कर रहे थे कि लड़की किसी और आदमी के साथ भाग गई है और लड़की का भाई मेरे पास इस ग़र्ज़ से आया था कि उन की तरफ़ से मैं अपने दोस्त को इस तल्ख़ वाक़े से आगाह करूं वो बेचारा शर्म के मारे ज़मीन में गढ़ा जा रहा था।

जब मैंने उस को असल वाक़िया से आगाह किया तो हैरत के बाइस उस की आँखें खुली की खुली रह गईं। इस बात से तो उसे बहुत ढारस हुई कि उस की बहन किसी ग़ैर मर्द के साथ नहीं गई। बल्कि अपने शौहर के पास है। लेकिन उस की समझ में नहीं आता था कि मेरे दोस्त ने ये फ़ुज़ूल और नाज़ेबा हरकत क्यों की?

बीवी उसी की थी जब चाहता ले जाता। मगर इस हरकत से तो ये मालूम होता है जैसे...... जैसे......

वो कोई मिसाल पेश न कर सका और मैं भी उसे कोई इत्मिनान-देह जवाब न दे सका

कल सुबह की डाक से मुझे उस का ख़त मिला जिस को मैंने काँपते हुए हाथों से खोला। लिफाफे में एक काग़ज़ था जिस पर एक टेढ़ी लकीर खींची हुई थी........ ख़ाली लिफ़ाफ़ा एक तरफ़ रख कर मैं उस उमूद की तरफ़ देखने लगा....... जो मैंने बोर्ड पर चिपके हुए काग़ज़ पर गिराया था ।

40
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
0.0
मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
1

पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
7
0
0

पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

2

निगरानी में

7 अप्रैल 2022
4
0
0

'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

3

सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
2
0
0

गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

4

करामात

7 अप्रैल 2022
1
0
0

लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

5

आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
1
0
0

“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

6

इस्लाह

7 अप्रैल 2022
1
0
0

“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

7

हैवानियत

7 अप्रैल 2022
2
0
0

बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

8

जेली

7 अप्रैल 2022
1
0
0

सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

9

सॉरी

7 अप्रैल 2022
1
0
0

छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

10

तआवुन

7 अप्रैल 2022
1
0
0

चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

11

पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
1
0
0

“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

12

इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
1
0
0

वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

13

मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
2
0
0

लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

14

सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
1
0
0

मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

15

एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
1
0
0

अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

16

अगर

7 अप्रैल 2022
1
0
0

’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

17

मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
0
0
0

मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

18

मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

19

तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
1
0
0

तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

20

सुरमा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

21

हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
1
0
0

कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

22

एक ख़त

8 अप्रैल 2022
1
0
0

तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

23

क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
1
0
0

ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

24

किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

25

खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
0
0
0

हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

26

कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
1
0
0

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

27

गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

28

चोर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

29

टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

30

डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

31

ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

32

दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
0
0
0

स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

33

नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022
0
0
0

आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

34

बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
0
0
0

दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

35

भंगन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

36

शेर आया शेर आया दौड़ना

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

37

शलजम

9 अप्रैल 2022
0
0
0

“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

38

बदसूरती

20 अप्रैल 2022
0
0
0

साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

39

तमाशा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

40

आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
3
1
0

ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए