shabd-logo

खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022

25 बार देखा गया 25

हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन काट रहा था उस के कान बड़े ग़ौर से ग़यास की बातें सुन रहे थे वो टेलीफ़ोन पर किसी से कह रहा था।

“तुम झूट बोलती हो....... अच्छा ख़ैर आज देख लेंगे....... तो ये क्या कहा, तुम्हारे लिए तो हमारी जान हाज़िर है....... अच्छा तो ठीक पाँच बजे....... ख़ुदा हाफ़िज़....... क्या कहा?....... भई कह तो दिया कि तुम्हें मिल जाएगी....... ”

जलील ने मेरी तरफ़ देखा। “मंटो साहब ऐश करता है ये ग़यास!”

मैं जवाब में मुस्कुरा दिया।

जलील उंगलीयों के नाख़ुन अब तेज़ी से काटने लगा। “कई लड़कियों के साथ उस का टांका मिला हुआ है....... मैं तो सोचता हूँ एक स्टोर खोल लूं....... लेडीज़ स्टोर....... ख़्वाह-मख़्वाह प्रैस के चक्कर में पड़ा हूँ....... औरत का साया तक भी वहां नहीं आता। सारा दिन गड़गड़ाहटें सुनो। उल्लो के पट्ठे क़िस्म के ग्राहकों से मग़्ज़ मारी करो....... ये ज़िंदगी है?”

मैं फिर मुस्कुरा दिया। इतने में ग़यास आगया। जलील ने ज़ोर से उस के चूतड़ों पर धप्पा मारा और कहा। “सुनाईए, कौन थी ये जिस के लिए तू अपनी जान हाज़िर कर रहा था।”

ग़यास बैठ गया और कहने लगा। “मंटो साहब के सामने ऐसी बातें न किया करो।”

जलील ने अपनी ऐनक के मोटे शीशों में से घूर कर ग़यास की तरफ़ देखा और कहा। “मंटो साहब को सब मालूम है....... तुम बताओ कौन थी?”

ग़यास ने अपनी नीले शीशे वाली ऐनक उतार कर उस की कमानी ठीक करनी शुरू की। “एक नई है....... परसों आई थी, टेलीफ़ोन करने....... किसी से हंस हंस के बातें कर रही थी। फ़ोन कर चुकी तो मैं ने उस से कहा, जनाब फ़ीस अदा कीजीए। ये सुन कर मुस्किरने लगी। पर्स में हाथ डालकर उस ने दस रुपय का नोट निकाला और कहा। “हाज़िर है....... ” मैंने कहा “शुक्रिया....... आप का मुस्कुरा देना ही काफ़ी है....... बस दोस्ती होगई। एक घंटे तक यहां बैठी रही, जाते हुए दस रूमाल ले गई।”

मसऊद जो बिलकुल ख़ामोश था ग़ालिबन अपनी बेकारी के मुतअल्लिक़ सोच रहा था। उठा। “बकवास है....... महज़ ख़ुद फ़रेबी है” ये कह कर उस ने मुझे सलाम किया और चला गया।

ग़यास अपनी बातों से बहुत ख़ुश था। मसऊद जब यक-लख़्त बोला तो उस का चेहरा किसी क़दर मुरझा गया। जलील थोड़ी देर के बाद ग़यास से मुख़ातब हुआ। “क्या मांग रही थी?”

ग़यास चौंका “क्या कहा?”

जलील ने फिर पूछा। “क्या मांग रही थी?”

ग़यास ने कुछ तवक्कुफ़ के बाद कहा “मैडन फ़ोर्म बिरिसटर”

जलील की आँखें ऐनक के मोटे शीशों के अक़ब से चमकीं।

“साइज़ क्या है।”

ग़यास ने जवाब दिया “थर्टी फ़ौर!”

जलील मुझ से मुख़ातब हुआ “मंटो साहब ये क्या बात है अंगया देखते ही मेरे अंदर हैजान सा पैदा हो जाता है।”

मैंने मुस्कुरा कर उस से कहा “आप की क़ुव्वत-ए-मुतख़य्यला बहुत तेज़ है।”

जलील कुछ न समझा और न वो समझना चाहता था। उस के दिमाग़ में खुदबुद हो रही थी वो उस लड़की के मुतअल्लिक़ बातें करना चाहता था जिस के साथ ग़यास ने टेलीफ़ोन पर बातें की थीं। चुनांचे मेरा जवाब सुन कर उस ने ग़यास से कहा। “यार हम से भी तो मिलाओ उसे”

ग़यास ने कमानी ठीक करके ऐनक लगाई “कभी यहां आएगी तो मिल लेना” “कुछ नहीं यार तुम हमेशा यही गच्चा देते रहते हो....... पिछले दिनों जब वो यहां आई थी....... क्या नाम था उस का?....... जमीला....... मैंने आगे बढ़ कर उस से बात करनी चाही तो तुम ने हाथ जोड़ कर मुझे मना कर दिया....... मैं उसे खा तो न जाता” ये कह कर जमील ने ऐनक के मोटे शीशों के पीछे अपनी आँखें सिकोड़ लीं।

जलील और ग़यास दोनों में बचपना था। दोनों हरवक़्त लड़कियों के मुतअल्लिक़ सोचते रहते थे, ख़ूबसूरत, मोटी, दुबली, भद्दी लड़कियों के मुताल्लिक़....... टांगे में बैठी हुई लड़कियों के मुताल्लिक़। पैदल चलती और साईकल सवार लड़कियों के मुतअल्लिक़। जलील इस मुआमले में ग़यास से बाज़ी ले गया था। दफ़्तर से किसी ज़रूरी काम पर मोटर में निकलता, रास्ते में कोई टांगे में बैठी या मोटर में सवार लड़की नज़र आजाती तो उस के पीछे अपनी मोटर लगा देता। ये उस का महबूब तरीन शगल था लेकिन उस ने कभी बदतमीज़ी न की थी। छेड़छाड़ से उसे डर लगता था। जहां तक गुफ़तार का तअल्लुक़ है उसे ग़ाज़ी कहना चाहिए। बड़े बड़े मज़बूत क़िले सर कर चुका था।

प्राईवेट कमरे में जब बाहर स्टोर से कोई निसवानी आवाज़ आती तो ग़यास उछल पड़ता और पर्दा हटा कर एक दम बाहर निकल जाता। मर्द ग्राहकों से उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी इन से उस का मुलाज़िम निबटता था।

दोनों अपने काम में होशयार थे। स्टोर किस तरह चलाये जाता है उस को क्यों कर मक़बूल बनाया जाता है, इस का ग़यास को बड़ा अच्छा सलीक़ा था इसी तरह जलील को प्रैस के तमाम शोबों पर कामिल उबूर था लेकिन फ़ुर्सत के औक़ात में वो सिर्फ़ लड़कियों के मुतअल्लिक़ सोचते थे। ख़्याली और असली लड़कियों के मुतअल्लिक़।

स्टोर में किसी दिन जब कोई भी लड़की न आती तो ग़यास उदास हो जाता। ये उदासी वो जलील से टेलीफ़ोन पर उन लड़कियों के मुतअल्लिक़ बातें करके दूर करता जो बक़ौल उसके जाल में फंसी हुई थीं। जलील उसे अपने मार्के सुनाता। दोनों कुछ देर बातें करते। स्टोर में कोई गाहक आता या उधर प्रैस में किसी को जलील की ज़रूरत होती तो ये दिलचस्प सिलसिल-ए-गुफ़्तुगू मुनक़ते हो जाता।

इस लिहाज़ से न्यू पैरिस स्टोर बड़ी दिलचस्प जगह थी। जलील दिन में दो तीन मर्तबा ज़रूर आता। प्रैस से किसी काम के लिए निकलता तो चंद मिनटों ही के लिए स्टोर से हो जाता। ग़यास से किसी लड़की के बारे में छेड़छाड़ करता और उंगली में मोटर की चाबी घुमाता चला जाता।

जलील को ग़यास से ये गिला था कि वो अपनी लड़कीयों के मुतअल्लिक़ इंतिहाई राज़दारी से काम लेता है उन का नाम तक नहीं बताता। छुपछुप कर उन से मिलता है उन को तोहफ़े तहाइफ़ देता है और अकेले अकेले ऐश करता है यही गिला ग़यास को जलील से था। लेकिन दोनों के दोस्ताना तअल्लुक़ात वैसे के वैसे क़ायम थे।

एक रोज़ स्टोर में एक स्याह बुर्के वाली औरत आई। नक़ाब उल्टा हुआ था। चेहरा पसीने से शराबोर था आते ही स्टूल पर बैठ गई। ग़यास जब उसकी तरफ़ बढ़ा तो उस ने बुर्क़ा से पसीना पोंछ कर इस से कहा। “पानी पिलाईए एक गिलास”

ग़यास ने फ़ौरन नौकर को भेजा एक ठंडा लेमन ले आए। औरत ने छत के साकन पंखों को देखा और ग़यास से पूछा “पंखा क्यों नहीं चलाते आप?”

ग़यास ने सर-ता-पा माज़रत बन कर कहा “दोनों ख़राब होगए हैं। मालूम नहीं क्या हुआ मैं ने आदमी भेजा हुआ है”

औरत स्टूल पर से उठी “मैं तो यहां एक मिनट नहीं बैठ सकती” ये कह कर वो शोकेसों को देखने लगी “आदमी ख़ाक शोपिंग कर सकता है इस दोज़ख़ में।”

ग़यास ने अटक अटक कर कहा “मुझे अफ़सोस है....... आप उन्दर तशरीफ़ ले चलीए....... जिस चीज़ की आप को ज़रूरत होगी मैं ला कर दूंगा।”

औरत ने ग़यास की तरफ़ देखा “चलिए”

ग़यास तेज़ क़दमी से आगे बढ़ा। पर्दा हटाया और उस औरत से कहा “तशरीफ़ लाईए।”

औरत अंदर कमरे में दाख़िल हो गई और एक कुर्सी पर बैठ गई। ग़यास ने पर्दा छोड़ दिया। दोनों मेरी नज़रों से ओझल होगए। चंद लमहात के बाद ग़यास निकला। मेरे पास आकर उस ने हौले से कहा “मंटो साहब क्या ख़्याल है आप का इस लड़की के बारे में?”

मैं मुस्कुरा दिया।

ग़यास ने एक ख़ाने से मुख़्तलिफ़ अक़साम की लिप स्टिकें निकालीं और अन्दर कमरे में ले गया। इतने में जलील की मोटर का हॉर्न बजा और वो उंगली पर चाबी घुमाता नुमूदार हुआ। आते ही उस ने पुकारा “ग़यास....... ग़यास, आओ भई सुनो वो कल वाला मुआमला मैंने सब ठीक कर दिया है।” फिर उस ने मेरी तरफ़ देखा। “ओह मंटो साहब, आदाब अर्ज़....... ग़यास कहाँ है?”

मैंने जवाब दिया “अंदर कमरे में”

“वो मैंने सब ठीक कर दिया मंटो साहब....... अभी अभी पैट्रोल पंप के पास मिली। पैदल जा रही थी मैंने मोटर रोकी और कहा जनाब ये मोटर आख़िर किस मर्ज़ की दवा है उसे मज़नग छोड़कर आरहा हूँ....... ” फिर उइस ने कमरे के पर्दे की तरफ़ मुँह करके आवाज़ दी....... “ग़यास बाहर निकल बे!”

जलील ने उंगली पर ज़ोर से चाबी घुमाई “मसरूफ़ है....... अब उस ने अंदर मसरूफ़ होना शुरू कर दिया है” कह कर उस ने आगे बढ़ कर पर्दा उठाया। एक दम उस के जैसे ब्रेक सी लग गई। पर्दा उसके हाथ से छूट गया। “सोरी” कह कर वो उल्टे क़दम वापस आया और घबराए हुए लहजा में उस ने मुझ से पूछा “मंटो साहब कौन है?”

मैंने दरयाफ़्त क्या “कहाँ कौन?”

“ये....... ये जो अंदर बैठी लबों पर लिप स्टिक लगा रही है”

मैंने जवाब दिया “मालूम नहीं गाहक है!”

जलील ने ऐनक के मोटे शीशों के पीछे आँखें सुकेड़ीं और पर्दे की तरफ़ देखने लगा। ग़यास बाहर निकला। जलील से “हलो जलील” कहा और आईना उठा कर वापस कमरे में चला गया। दोनों दफ़ा जब पर्दा उठा तो जलील को उस औरत की हल्की सी झलक नज़र आई। मेरी तरफ़ मुड़ कर उस ने कहा। “ऐश करता है पट्ठा,” फिर इज़्तिराब की हालत में इधर उधर टहलने लगा। थोड़ी देर के बाद वो पर्दा उठा। औरत होंटों को चूसती हुई निकली। जलील की निगाहों ने उसको स्टोर के बाहर तक पहुंचाया फिर इस ने पलट कर कमरे का रुख़ किया। ग़यास बाहर निकला। रूमाल से होंट साफ़ करता। दोनों एक दूसरे से क़रीब क़रीब टकरा गए। जलील ने तेज़ लहजे में उस से पूछा “ये क्या क़िस्सा था भई”

ग़यास मुस्कुराया “कुछ नहीं” ये कह कर उस ने रूमाल से होंट साफ़ किए।

जलील ने ग़यास के चुटकी भरी “कौन थी?”

“यार तुम ऐसी बातें न पूछा करो” ग़यास ने अपना रूमाल हवा में लहराया। जलील ने छीन लिया ग़यास ने झपटा मार कर वापस लेना चाहा।

जलील पैंतरा बदल कर एक तरफ़ हट गया। रूमाल खोल कर उस ने ग़ौर से देखा जगह जगह सुर्ख़ निशान थे। ऐनक के मोटे शीशों के पीछे अपनी आँखें सुकेड़ कर उस ने ग़यास को घूरा। “ये बात है।”

ग़यास ऐसा चोर बन गया। जिस को किसी ने चोरी करते करते पकड़ लिया है “जाने दो यार.......इधर लाओ रूमाल।”

जलील ने रूमाल वापस कर दिया। “बताओ तो सही कौन थी”

इतने में नौकर लेमन लेकर आगया। ग़यास ने उसको इतनी देर लगाने पर झिड़का “कोई मेहमान आए तो तुम हमेशा ऐसा ही किया करते हो।”

ग़यास ने जलील से पूछा। “ये लेमन उसी के लिए मंगवाया गया था।”

“हाँ यार....... इतनी देर में आया है कमबख़्त....... दिल में कहती होगी प्यासा ही भेज दिया।”

ग़यास ने रूमाल जेब में रख लिया।

जलील ने शोकेस पर से लेमन का गिलास उठाया और गटागट पी गया। “हमारी प्यास तो बुझ गई....... लेकिन यार बताओना थी कौन?....... पहली ही मुलाक़ात में तुम ने हाथ साफ़ कर दिया।”

ग़यास ने रूमाल निकाल कर अपने होंट साफ़ किए और आँखें चमका कर कहा। “चिमट ही गई....... मैंने कहा देखो ठीक नहीं....... दुकान है....... ज़बरदस्ती मेरे होंटों का चुम्मा ले गई।”

एक दम मसऊद की आवाज़ आई “सब बकवास है....... महज़ ख़ुद फ़रेबी है।”

ग़यास चौंक पड़ा। मसऊद स्टोर के बाहर खड़ा था उस ने मुझे सलाम किया और चल दिया।

जलील फ़ौरन ही ग़यास से मुख़ातब हुआ। “छोड़ो यार तुम ये बताओ फिर क्या हुआ?....... यार चीज़ अच्छी थी....... क्या नाम है?”

ग़यास ने जवाब न दिया। मसऊद की आवाज़ के अचानक हमले से वो बौखला सा गया था। जलील को एक दम याद आया कि वो तो एक बहुत ही ज़रूरी काम पर निकला है। उंगली पर चाबी घुमा कर उस ने ग़यास से कहा “लड़की के मुतअल्लिक़ फिर पूछूंगा....... अच्छा मंटो साहब अस्सलामु अलैकुम” और चला गया।

मैंने मुस्कुरा कर ग़यास से पूछा “ग़यास साहब इतनी जल्दी पहली ही मुलाक़ात में आप ने....... ”

ग़यास झेंप गया मेरी बात काट कर उस ने कहा “छोड़िए मंटो साहब....... आप हमारे बुज़ुर्ग हैं....... चलिए अंदर बैठें। यहां गर्मी है।”

हम अंदर कमरे की तरफ़ चलने लगे तो स्टोर के बाहर जलील की मोटर रुकी। उस ने ज़ोर ज़ोर से हॉर्न बजाया। ग़यास न गया तो वो ख़ुद अंदर आया। “ग़यास अन्दर आओ....... बस स्टैंड के पास एक बड़ी ख़ूबसूरत लड़की खड़ी है....... ”

ग़यास उस के साथ चला गया। में मुस्कराने लगा।

इस दौरान में जलील ने बड़ी मुश्किलों से अपने बाप को राज़ी करके एक क्रिस्चियन लड़की मुलाज़िम रख ली। उस को वो अपनी स्टेनो कहता था। कई बार मोटर में उसको अपने साथ लाया, लेकिन उस को मोटर ही में बिठाए रखा। ग़यास को इस बात का बहुत ग़ुस्सा था। एक बार इस स्टेनो के सामने ग़यास ने जलील को मज़ाक़ किया तो वो बहुत सट पटाया, उस के कान की लवें सुर्ख़ होगईं। नज़रें झुका कर उस ने गाड़ी स्टार्ट की और ये जा वो जा।

बक़ौल जलील के ये स्टेनो शुरू शुरू में तो बड़ी रिज़र्व रही। लेकिन आख़िर उस से खुल ही गई। “बस अब चंद दिनों ही में मुआमला पट्टा समझो।”

ग़यास अब ज़्यादा तर जलील से इस स्टेनो की बातें करता। जलील उस से उस लड़की के मुतअल्लिक़ पूछता जिस ने चिमट कर उस को चूम लिया था तो ग़यास उमूमन ये कहता कल उस का टेलीफ़ोन आया। “पूछने लगी आऊं?....... मैंने कहा यहां नहीं। तुम वक़्त निकालो तो मैं किसी और जगह का इंतिज़ाम करलूंगा।”

जलील उस से पूछता “क्या कहा उस ने?”

ग़यास जवाब देता। “तुम अपनी स्टेनो की सुनाओ”

स्टेनो की बातें शुरू हो जातीं।

एक दिन मैं और ग़यास दोनों जलील के प्रैस गए मुझे अपनी किताब के गुर्द-ओ-पोश के डिज़ाइन के बारे में दरयाफ़्त करना था। दफ़्तर में स्टेनो एक कोने में बैठी थी लेकिन जलील नहीं था। स्टेनो से पूछा तो मालूम हुआ कि वो अभी अभी बाहर निकला है। मैंने नौकर को भेजा कि उस को हमारी आमद की इत्तिला दे। थोड़ी ही देर के बाद जलील आगया। चक उठा कर उस ने मुझे सलाम किया और ग़यास से कहा। “इधर आओ ग़यास”

हम दोनों बाहर निकले ग़यास को एक कोने में ले जा कर जलील ने उछल कर ग़यास से कहा “मैदान मार लिया....... अभी अभी तुम्हारे आने से थोड़ी देर पहले” ये कह कर वो रुक गया और मुझ से मुख़ातब हुआ “माफ़ कीजीएगा मंटो साहब” फिर उस ने ग़यास को ज़ोर से अपने साथ भींच लिया। “मैंने आज उस को पकड़ लिया....... बिलकुल इसी तरह....... और इसी जगह....... इस ट्रेडल के पास।”

ग़यास ने पूछा। “कैसे?”

जलील झुँझला गया “अबे अपनी स्टेनो को....... क़सम ख़ुदा की मज़ा आगया....... ये देखो”

उस ने अपना रूमाल पतलून की जेब से निकाल कर हवा में लहराया....... उस पर सुर्ख़ी के धब्बे थे। एक दम मसऊद की आवाज़ आई “बकवास है....... महज़ ख़ुद फ़रेबी है।”

जलील और ग़यास चौंक उठे....... मैं मुस्कुराया। ट्रेडल के तवे पर सुर्ख़ रोगन की पतली सी हमवार ता फैली हुई थी। एक जगह पोंछने के बाइस कुछ ख़राशें पड़ गई थीं।

(8 जून 1950-ई.)

40
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
0.0
मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
1

पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
7
0
0

पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

2

निगरानी में

7 अप्रैल 2022
4
0
0

'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

3

सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
2
0
0

गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

4

करामात

7 अप्रैल 2022
1
0
0

लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

5

आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
1
0
0

“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

6

इस्लाह

7 अप्रैल 2022
1
0
0

“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

7

हैवानियत

7 अप्रैल 2022
2
0
0

बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

8

जेली

7 अप्रैल 2022
1
0
0

सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

9

सॉरी

7 अप्रैल 2022
1
0
0

छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

10

तआवुन

7 अप्रैल 2022
1
0
0

चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

11

पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
1
0
0

“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

12

इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
1
0
0

वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

13

मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
2
0
0

लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

14

सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
1
0
0

मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

15

एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
1
0
0

अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

16

अगर

7 अप्रैल 2022
1
0
0

’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

17

मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
0
0
0

मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

18

मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

19

तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
1
0
0

तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

20

सुरमा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

21

हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
1
0
0

कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

22

एक ख़त

8 अप्रैल 2022
1
0
0

तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

23

क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
1
0
0

ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

24

किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

25

खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
0
0
0

हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

26

कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
1
0
0

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

27

गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

28

चोर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

29

टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

30

डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

31

ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

32

दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
0
0
0

स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

33

नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022
0
0
0

आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

34

बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
0
0
0

दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

35

भंगन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

36

शेर आया शेर आया दौड़ना

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

37

शलजम

9 अप्रैल 2022
0
0
0

“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

38

बदसूरती

20 अप्रैल 2022
0
0
0

साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

39

तमाशा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

40

आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
3
1
0

ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए