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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022

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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था कि नूर जहां की तस्वीर जो उस ज़माने के मुसव्विरों ने बनाई थी, उस में जान पड़ गई है।

कॉलिज के लड़के उसे शहज़ादी कहते थे, लेकिन उस के सामने नहीं, पर उस को मालूम हो गया था कि उसे ये लक़ब दिया गया है। वो और भी मग़रूर हो गई।

कॉलिज में मख़्लूत तालीम थी। लड़के ज़्यादा थे और लड़कियां कम। आपस में मिलते जुलते, लेकिन बड़े तकल्लुफ़ के साथ। शाहिदा अलग अलग रहती। इस लिए कि उस को अपने हुस्न पर बड़ा नाज़ था। वो अपनी हम-जमाअत लड़कियों से भी बहुत हम गुफ़्तुगू करती थी। क्लास में आती तो एक कोने में बैठ जाती और बुत सी बनी रहती। बड़ा हसीन बुत....... उस की बड़ी बड़ी स्याह आँखें जिन पर घनी पलकों की छाओं रहती थी, साकित-ओ-सामत रहतीं। लड़के उसे देखते और जी ही जी में बहुत कुढ़ते कि ये हुस्न ख़ामोश क्यों है, इस क़दर मुंजमिद किस लिए है उसे तो मुतहर्रिक होना चाहिए।

उस का रंग गोरा था....... बहुत गोरा जिस में थोड़ी सी ग़लत रवी भी घुली हुई थी। अगर ये न होती तो शक्र की बनी हुई पतली थी जो दीवाली के त्यौहार पर बिका करती हैं।

उस में मिठास थी, लेकिन वो ज़ाहिर ये करना चाहती थी कि बड़ी कड़वीली कसैली है....... कॉलिज में उस का रवैय्या ही कुछ इस क़िस्म का था कि हर-वक़्त नीम की निबोली बनी रहती थी।

एक दिन उस के एक हम-जमाअत लड़के ने जुर्रत से काम ले कर उस से कहा। “हुज़ूर.......ख़ाकसारी में अपनी जगह दे कर कभी किसी को सरफ़राज़ तो करें!”

इस ने कोई जवाब न दिया। दूसरे दिन उस तालिब-ए-इल्म को प्रिंसिपल ने बुलाया और उसे निकाल बाहर किया।

इस हादिसे के बाद तमाम लड़के मुहतात हो गए। उन्हों ने शाहिदा को देखना ही छोड़ दिया कि मबादा इन का वही हश्र हो, जो उस तालिब-ए-इल्म का हुआ।

शाहिदा अब बी.ए में थी। ख़ूबसूरत होने के इलावा काफ़ी ज़हीन थी। उस के प्रोफ़ैसर उस की ज़हानत और ख़ूबसूरत से बड़े मरऊब थे। प्रिंसिपल की चहेती थी। इस लिए कि वो उस की बड़ी बहन के बड़े लड़के की बेटी थी।

कॉलिज में चेह-मीगोईयां होती ही रहती हैं। शाहिदा के मुतअल्लिक़ क़रीब क़रीब हर रोज़ तालिब-ए-इल्मों में बातें होती थीं। वो उस के मुतअल्लिक़ कोई बुरी राय क़ायम नहीं कर पाते थे, इस लिए कि उस का करेक्टर बड़ा मज़बूत था।

टुक शाप में बातें होतीं और शाहिदा का हुस्न ज़ेर-ए-बहस होता। सब सोचते कि ये हसीन क़िला कौन सर करेगा।

शाहिदा को, जैसा कि सब को मालूम था, सिर्फ़ ख़ूबसूरत चीज़ें पसंद थीं। वो किसी बद-सूरत चीज़ को बर्दाश्त नहीं कर सकती थी।

एक दिन क्लास में एक लड़के की रेंठ बह रही थी। शाहिदा ने जब उस की तरफ़ देखा तो फ़ौरन उठ कर चली गई।

वो बड़ी नफ़ासत-पसंद थी। उस को वो हर चीज़ खुली थी जो बद-नुमा हो।

कॉलिज में एक लड़की जमीला थी....... बड़ी बद-सूरत, मगर शाहिदा के मुक़ाबले में कहीं ज़्यादा ज़हीन। उस को वो नफ़रत की निगाहों से देखती थी। वैसे वो उस की ज़हानत की क़ाइल थी और कोई रश्क महसूस नहीं करती थी।

कॉलिज के सब लड़के सोचते थे कि शाहिदा अगर हसीन ना होती तो कितना अच्छा होता....... वो उस से बातचीत तो कर सकते। मगर वो अपने हुस्न के ग़रूर में सरशार रहती और किसी को मुँह ही नहीं लगाती थी।

एक दिन कॉलिज में हंगामा सा बरपा हो गया....... एक लड़का जिस के वालिद की तबदीली हो गई थी, इस कॉलिज में दाख़िला लेने के लिए आया। लड़कों और लड़कियों ने उसे देखा और शशदर रह गए। वो शाहिदा से ज़्यादा ख़ूबसूरत था।

इस का नाम शाहिद था.......उस को दाख़िला मिल गया।

जिस क्लास में शाहिदा थी, उसी में शाहिद था.......इत्तिफ़ाक़ की बात है कि जब शाहिद पहले रोज़ क्लास-रूम में आया तो शाहिदा मौजूद नहीं थी। उस को ज़ुकाम हो गया था और इस के बाइस उस ने दो रोज़ के लिए छुट्टी ले ली थी।

दो दिन के बाद जब शाहिद कॉलिज के बाग़ में टहल रहा था तो उस ने देखा कि एक ख़ूबसूरत, मगर बेजान सी मूर्त आ रही है। इस ने अपनी किताबें बैंच पर रखीं और आगे बढ़ा।

शाहिदा ने उसे देखा। वो उस की ख़ूबसूरती से मुतअस्सिर हुई और थोड़ी देर के लिए इस के क़दम रुक गए। ज़मीन गीली थी, कीचड़ सी हो रही थी। शाहिद जब उस की तरफ़ बढ़ा तो वो घबरा सी गई। इस घबराहट में उस का पांव फिसला और वो औंधे मुँह ज़मीन पर गिर पड़ी।

शाहिद ने लपक कर उसे उठाया.......शाहिदा के टख़ने में मोच आ गई थी, मगर उस ने मुस्कुरा कर कहा। “शुक्रिया.......आप कौन हैं?”

शाहिद ने जवाब दिया। “ख़ादिम!”

“आप ख़ादिम तो दिखाई नहीं देते।”

“क्या दिखाई देता हूँ....... बाज़ औक़ात सही शक्लें ग़लत दिखाई दिया करती हैं।”

शाहिदा को ये बात पसंद आई। उस के टख़ने में दर्द हो रहा था मगर वो उसे चंद लम्हों के लिए भूल गई। आप का नाम?

“शाहिद!”

शाहिदा ने सोचा कि शायद वो उस का नाम सन चुका है और शरारत के तौर पर शाहिद बन रहा है।

“आप ग़लत कह रहे हैं।”

“आप कॉलिज के रजिस्टर से इस की तसदीक़ कर सकती हैं।”

“आप इस कॉलिज में पढ़ते हैं?”

“जी हाँ....... आप यहां कैसे चली आईं?”

“वाह....... मैं भी तो यहीं पढ़ती हूँ।”

“किस क्लास में?”

“बी ए में?”

“मैं भी तो बी ए मैं हूँ।”

“झूट.......आप तो माली मालूम होते हैं।”

“इस शक्ल के आदमी वाक़ई माली मालूम होते हैं....... लेकिन अफ़्सोस है कि मैं ने अभी तक कोई फूल नहीं तोड़ा।”

“फूल क्या तोड़ने के लिए होते हैं.......उन्हें तो सिर्फ़ सूँघना चाहिए।”

शाहिद एक लहज़ा के लिए ख़ामोश हो गया। फिर इस ने सँभल कर कहा। “मैं आप को सूंघ रहा हूँ।”

शाहिदा भुन्ना गई। “आप बड़े बद-तमीज़ हैं।”

शाहिद ने बैंच पर से किताबें उठाते हुए मुस्कुरा कर कहा। “मैं ने आप को तोड़ा तो नहीं....... सिर्फ़ सूंघ लिया है....... और मैं समझता हूँ कि आप की पंखुड़ियों में से ग़रूर की बू आती है। ओह, माफ़ कीजिएगा, ग़रूर मैं कर सकता हूँ लेकिन मर्दों के साथ....... मैं भी एक फूल हूँ, पर आप कली हैं। मैं आप से मुक़ाबला नहीं कर सकता।”

शाहिदा अपना टख़ना पकड़े बैठी थी। एक दम कराहने लगी। “हाय....... हाय, बड़ा दर्द हो रहा है।”

शाहिद ने इस से इजाज़त तलब की। “क्या में इसे दबा दूं?”

“दबाईए....... ख़ुदा के लिए दबाईए।”

शाहिद ने उस के मोच आए हुए टख़्ने पर इस तौर पर मसास किया कि पंद्रह मिनट के अंदर अंदर शाहिदा का दर्द दूर हो गया।

इस वाक़े के बाद कॉलिज में वो दोनों ख़ाली पीरियडों में इकट्ठे बाहर जाते और बाग़ में बैठ कर जाने क्या बातें करते रहते। शायद वो ये कोशिश कर रहे थे कि दोनों गीली ज़मीन पर फिसलें और उन के दल के टख़्नों में मोच आ जाए और वो सारी ज़िंदगी उन को सहलाते रहें।

दोनों ने बी ए पास कर लिया। बड़े अच्छे नंबरों पर। शाहिदा के नंबर शाहिद के मुक़ाबले में पाँच ज़्यादा थे। उस ने इस का बदला लेना चाहा। “शाहिदा! मैं ये पाँच नंबर अभी लिए लेता हूँ।”

“कैसे”

शाहिद ने उस को पहली मर्तबा अपनी गोद में उठाया और उस को पाँच मर्तबा चूम लिया।

शाहिदा ने कोई एतराज़ न क्या, वो बहुत ख़ुश हुई। लेकिन थोड़ी देर के बाद उस ने शाहिद से बड़ी संजीदगी से कहा। “हमारे नंबर पूरे हो गए। लेकिन आज के इस वाक़े के बाद मैं ने फ़ैसला कर लिया है कि आप की मेरी शादी हो जानी चाहिए....... मैं अपने होंट अब किसी और के होंटों से आलूदा नहीं करूंगी।”

शाहिद बहुत ख़ुश हुआ। उसे यक़ीन ही नहीं था कि उस की दिली आरज़ू कभी पूरी होगी। उस ने इसी ख़ुशी में पाँच नंबर और हासिल कर लिए और शाहिदा से कहा। “मेरी जान! मैं इसी उम्मीद में तो अब तक जीता रहा हूँ।”

शाहिदा के वालिदैन ने उस की शादी की एक जगह बातचीत की, मगर शाहिदा ने साफ़ साफ़ इनकार कर दिया कि वो किसी बद-सूरत मर्द से रिश्ता-ए-इज़दिवाज क़ायम करने के लिए तैय्यार नहीं।

बहुत झगड़े हुए। आख़िर शाहिदा ने बताया कि वो अपने हम-जमाअत शाहिद को, जो बहुत ख़ुश शक्ल है, पसंद करती है। इस के इलावा किसी और मर्द को अपनी रिफ़ाक़त में नहीं लेगी।

उस के माँ बाप शाहिद के वालिदैन से मिले। बड़े शरीफ़ और मुतमव्विल आदमी थे....... रौशन ख़्याल भी।

शाहिद को जब उन्हों ने देखा तो बहुत ख़ुश हुए। आला तालीम के लिए विलाएत जा रहा था, लेकिन उस की ख़्वाहिश थी कि पहले शादी करे और अपनी बीवी को साथ ले कर जाये ताकि वो भी बाहर की दुनिया देखे।

जब वालिदैन रज़ामंद हो गए तो उन की शादी हो गई। वो बहुत ख़ुश था। पहली रात शाहिद ने अपनी बीवी से कहा। “हमारा बच्चा....... लड़की हो या लड़का....... जब पैदा होगा तो उसे दुनिया देखने आएगी।”

शाहिदा ने पूछा। “क्यों?”

शाहिद हंसा। “मेरी जान! तुम इतनी हसीन हो। मैं भी कुछ बद-शकल नहीं। हमारा बच्चा यक़ीनन हम दोनों से कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत होगा।”

हनीमून मनाने के लिए वो स्विटज़रलैंड चले गए। वो यहां चार महीने रहे। इस के बाद लंदन चले गए। जहां शाहिद को पी,ऐच,डी की डिग्री लेनी थी।

शाहिद के बाप मियां हिदायतुल्लाह की वहां एक कोठी थी जो उन की आमद से पहले ही ख़ाली करा ली गई.......शाहिदा बहुत ख़ुश थी और शाहिद भी, इस लिए कि वो एक बच्चे की आमद का इंतिज़ार कर रहे थे।

शाहिद कहता था। “हमारा बच्चा इतना हसीन और ख़ूबसूरत होगा कि उस का जवाब न होगा।”

शाहिदा कहती। “ख़ुदा नज़र-ए-बद से बचाए....... ज़रूर गुल गोथना सा होगा।”

पूरे दिन हुए तो बच्चा होने के आसार पैदा हुए। शाहिद ने अपनी बीवी को मैटरनिटी होम में दाख़िल करा दिया।

लेबर वार्ड के बाहर शाहिद बड़े इज़्तिराब में इधर से उधर टहल रहा था....... उस की नज़रों के सामने एक ऐसे बच्चे की तस्वीर थी जिस के ख़द्द-ओ-ख़ाल उस के और उस की बीवी के आपस में बड़े हसीन तौर पर मुदग़म हो गए हों।

लेबर वार्ड से नर्स बाहर आई। शाहिद ने लपक कर उस से पूछा। “ख़ैरियत है?”

“जी हाँ!”

“लड़का हुआ या लड़की?”

नर्स परेशान सी थी। उस ने सिर्फ़ इतना कहा। “पता नहीं लड़का है या लड़की....... पर हम ने ऐसा बच्चा कभी नहीं देखा।”

शाहिद ने ख़ुश हो कर पूछा। “बहुत ख़ूबसूरत है ना?”

नर्स ने मुँह बना कर जवाब दिया। “बड़ी अगली है....... उस के सर पर ऐसा मालूम होता है सींग हैं। दाँत भी हैं....... नाक बड़ी टेढ़ी है.......दो आँखें हैं पर एक आँख ऐसा लगता है माथे पर भी है....... तुम लोग इतने ख़ूबसूरत हो कर कैसे बच्चे पैदा करता है?”

शाहिद अपने बच्चे को देखने के लिए न गया....... लेकिन दूसरे दिन मैटरनिटी होम में टिकट लगा दी गई कि जो आदमी चाहे, इस अजीब-उल-ख़िलक़त बच्चे को देख सकता है।

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022
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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

9 अप्रैल 2022
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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

9 अप्रैल 2022
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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

20 अप्रैल 2022
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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

20 अप्रैल 2022
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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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