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बदसूरती

20 अप्रैल 2022

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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी।

उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्ल थी मगर उसके साथ उसे बनना सँवरना भी आता था।

उसके मुक़ाबले में हामिदा बहुत सीधी साधी थी। उसके ख़द्द-ओ-ख़ाल भी पुरकशिश न थे। साजिदा बड़ी चंचल थी। दोनों जब कॉलेज में पढ़ती थीं तो साजिदा ड्रामों में हिस्सा लेती। उसकी आवाज़ भी अच्छी थी, सुर में गा सकती थी। हामिदा को कोई पूछता भी नहीं था।

कॉलेज की तालीम से फ़राग़त हुई तो उनके वालिदैन ने उनकी शादी के मुतअल्लिक़ सोचना शुरू किया। साजिदा के लिए कई रिश्ते तो आ चुके थे, मगर हामिदा बड़ी थी इसलिए वो चाहते थे कि पहले उसकी शादी हो।

उसी दौरान में साजिदा की एक ख़ूबसूरत लड़के से ख़त-ओ-किताबत शुरू होगई जो उस पर बहुत दिनों से मरता था। ये लड़का अमीर घराने का था। एम.ए. कर चुका था और आला तालीम हासिल करने के लिए अमरीका जाने की तैयारियां कर रहा था। उसके माँ-बाप चाहते थे कि उसकी शादी हो जाए ताकि वो बीवी को अपने साथ ले जाए।

हामिदा को मालूम था कि उसकी छोटी बहन से वो लड़का बेपनाह मोहब्बत करता है। एक दिन जब साजिदा ने उसे उस लड़के का इश्क़िया जज़्बात से लबरेज़ ख़त दिखाया तो वो दिल ही दिल में बहुत कुढ़ी, इसलिए कि उसका चाहने वाला कोई भी नहीं था।

उसने उस ख़त का हर लफ़्ज़ बार-बार पढ़ा और उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसके दिल में सूईयां चुभ रही हैं, मगर उसने उस दर्द-ओ-कर्ब में भी एक अजीब क़िस्म की लज़्ज़त महसूस की, लेकिन वो अपनी छोटी बहन पर बरस पड़ी,“तुम्हें शर्म नहीं आती कि ग़ैर मर्दों से ख़त-ओ-किताबत करती हो!

साजिदा ने कहा, “बाजी, इसमें क्या ऐब है?”

“ऐब!... सरासर ऐब है। शरीफ़ घरानों की लड़कियां कभी ऐसी बेहूदा हरकतें नहीं करतीं... तुम उस लड़के हामिद से मोहब्बत करती हो?”

“हाँ!”

“लानत है तुम पर!”

साजिदा भन्ना गई, “देखो बाजी, मुझ पर लानतें न भेजो... मोहब्बत करना कोई जुर्म नहीं।”

हामिदा चिल्लाई, “मोहब्बत मोहब्बत... आख़िर ये क्या बकवास है?”

साजिदा ने बड़े तंज़िया अंदाज़ में कहा, “जो आपको नसीब नहीं।”

हामिदा की समझ में न आया कि वो क्या कहे। चुनांचे खोखले ग़ुस्से में आकर उसने छोटी बहन के मुँह पर ज़ोर का थप्पड़ मार दिया... इसके बाद दोनों एक दूसरे से उलझ गईं।

देर तक उन में हाथापाई होती रही। हामिदा उसको ये कोसने देती रही कि वो एक नामहरम मर्द से इश्क़ लड़ा रही है और साजिदा उससे ये कहती रही कि वो जलती है इसलिए कि उसकी तरफ़ कोई मर्द आँख उठा कर भी नहीं देखता।

हामिदा डीलडौल के लिहाज़ से अपनी छोटी बहन के मुक़ाबले में काफ़ी तगड़ी थी, इसके अलावा उसे ख़ार भी थी जिसने उसके अंदर और भी क़ुव्वत पैदा करदी थी... उसने साजिदा को ख़ूब पीटा। उसके घने बालों की कई ख़ूबसूरत लटें नोच डालीं और ख़ुद हांपती-हांपती अपने कमरे में जा कर ज़ार-ओ-क़तार रोने लगी।

साजिदा ने घर में इस हादिसे के बारे में कुछ न कहा... हामिदा शाम तक रोती रही। बेशुमार ख़यालात उसके दिमाग़ में आए। वो नादिम थी कि उसने महज़ इसलिए कि उससे कोई मोहब्बत नहीं करता अपनी बहन को, जो बड़ी नाज़ुक है, पीट डाला।

वो साजिदा के कमरे में गई। दरवाज़े पर दस्तक दी और कहा, “साजिदा!

साजिदा ने कोई जवाब न दिया।

हामिदा ने फिर ज़ोर से दस्तक दी और रोनी आवाज़ में पुकारी, “साजी! मैं माफ़ी मांगने आई हूँ... ख़ुदा के लिए दरवाज़ा खोलो।”

हामिदा दस-पंद्रह मिनट तक दहलीज़ के पास आँखों में डबडबाए आँसू लिए खड़ी रही, उसे यक़ीन नहीं था कि उसकी बहन दरवाज़ा खोलेगी, मगर वो खुल गया।

साजिदा बाहर निकली और अपनी बड़ी बहन से हमआग़ोश होगई, “क्यूँ बाजी... आप रो क्यूँ रही हैं?”

हामिदा की आँखों में से टप-टप आँसू गिरने लगे, “मुझे अफ़सोस है कि तुमसे आज बेकार लड़ाई होगई।”

“बाजी... मैं बहुत नादिम हूँ कि मैंने आपके मुतअल्लिक़ ऐसी बात कह दी जो मुझे नहीं कहनी चाहिए थी।”

“तुमने अच्छा किया साजिदा... मैं जानती हूँ कि मेरी शक्ल-ओ-सूरत में कोई कशिश नहीं... ख़ुदा करे तुम्हारा हुस्न क़ायम रहे।”

“बाजी!.. मैं क़तअन हसीन नहीं हूँ। अगर मुझ में कोई ख़ूबसूरती है तो मैं दुआ करती हूँ कि ख़ुदा उसे मिटा दे... मैं आपकी बहन हूँ... अगर आप मुझे हुक्म दें तो मैं अपने चेहरे पर तेज़ाब डालने के लिए तैयार हूँ।”

“कैसी फ़ुज़ूल बातें करती हो... क्या बिगड़े हुए चेहरे के साथ तुम्हें हामिद क़ुबूल कर लेगा?”

“मुझे यक़ीन है।”

“किस बात का?”

“वो मुझसे इतनी मोहब्बत करता है कि अगर मैं मर जाऊं तो वो मेरी लाश से शादी करने के लिए तैयार होगा।”

“ये महज़ बकवास है।”

“होगी... लेकिन मुझे उसका यक़ीन है... आप उसके सारे ख़त पढ़ती रही हैं... क्या उनसे आपको ये पता नहीं चला कि वो मुझसे क्या क्या पैमान कर चुका है।”

“साजी...” ये कह कर हामिदा रुक गई। थोड़े वक़्फ़े के बाद उसने लर्ज़ां आवाज़ में कहा, “मैं अह्द-ओ-पैमान के मुतअल्लिक़ कुछ नहीं जानती, और रोना शुरू कर दिया।

उसकी छोटी बहन ने उसे गले से लगाया। उसको प्यार किया और कहा, “बाजी, आप अगर चाहें तो मेरी ज़िंदगी सँवर सकती है।”

“कैसे?”

“मुझे हामिद से मोहब्बत है... मैं उससे वादा कर चुकी हूँ कि अगर मेरी कहीं शादी होगी तो तुम्हीं से होगी।”

“तुम मुझसे क्या चाहती हो?”

“मैं ये चाहती हूँ कि आप इस मुआमले में मेरी मदद करें। अगर वहां से पैग़ाम आए तो आप उसके हक़ में गुफ़्तुगू कीजिए... अम्मी और अब्बा आपकी हर बात मानते हैं।”

“मैं इंशाअल्लाह तुम्हें नाउम्मीद नहीं करूंगी।”

साजिदा की शादी होगई, हालाँकि उसके वालिदैन पहले हामिदा की शादी करना चाहते थे... मजबूरी थी, क्या करते। साजिदा अपने घर में ख़ुश थी। उसने अपनी बड़ी बहन को शादी के दूसरे दिन ख़त लिखा जिसका मज़मून कुछ इस क़िस्म का था:

“मैं बहुत ख़ुश हूँ... हामिद मुझसे बेइंतिहा मोहब्बत करता है। बाजी... मोहब्बत अजीब-ओ-गरीब चीज़ है... मैं बेहद मसरूर हूँ। मुझे ऐसा महसूस होता है कि ज़िंदगी का सही मतलब अब मेरी समझ में आया है... ख़ुदा करे कि आप भी इस मसर्रत से महज़ूज़ हों।”

इसके अलावा और बहुत सी बातें उस ख़त में थीं जो एक बहन अपनी बहन को लिख सकती है।

हामिदा ने ये पहला ख़त पढ़ा और बहुत रोई। उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसका हर लफ़्ज़ एक हथौड़ा है जो उसके दिल पर ज़र्ब लगा रहा है

इसके बाद उसको और भी ख़त आए जिनको पढ़-पढ़ के उसके दिल पर छुरियां चलती रहीं। रो रो कर उसने अपना बुरा हाल कर लिया था।

उसने कई मर्तबा कोशिश की कि कोई राह चलता जवान लड़का उसकी तरफ़ मुतवज्जा हो, मगर नाकाम रही।

उसे इस अर्से में एक अधेड़ उम्र का मर्द मिला। बस में मुडभेड़ हुई। वो उससे मरासिम क़ायम करना चाहता था मगर हामिदा ने उसे पसंद न किया। वो बहुत बदसूरत था।

दो बरस के बाद उसकी बहन साजिदा का ख़त आया कि वो और उसका ख़ाविंद आर हे हैं।

वो आए। हामिदा ने मुनासिब ओ मौज़ूं तरीक़ पर उनका ख़ैर मक़दम किया। साजिदा के ख़ाविंद को अपने कारोबार के सिलसिले में एक हफ़्ते तक क़याम करना था।

साजिदा से मिल कर उसकी बड़ी बहन बहुत ख़ुश हुई... हामिद बड़ी ख़ुश अख़लाक़ी से पेश आया। वो उससे भी मुतास्सिर हुई।

वो घर में अकेली थी, इसलिए कि उसके वालिदैन किसी काम से सरगोधा चले गए थे। गर्मियों का मौसम था। हामिदा ने नौकरों से कहा कि वो बिस्तरों का इंतिज़ाम सहन में कर दे और बड़ा पंखा लगा दिया जाए।

ये सब कुछ होगया... लेकिन हुआ ये कि साजिदा किसी हाजत के तहत ऊपर कोठे पर गई और देर तक वहीं रही। हामिद कोई इरादा कर चुका था। आँखें नींद से बोझल थीं। उठ कर साजिदा के पास गया और उसके साथ लेट गया... लेकिन उसकी समझ में न आया कि वो ग़ैर सी क्यों लगती है। क्योंकि वो शुरू-शुरू में बेएतनाई बरतती रही... आख़िर में वो ठीक होगई।

साजिदा कोठे से उतर कर नीचे आई और उसने देखा...

सुबह को दोनों बहनों में सख़्त लड़ाई हुई... हामिद भी उसमें शामिल था। उसने गर्मा गर्मी में कहा, “तुम्हारी बहन, मेरी बहन है... तुम क्यों मुझ पर शक करती हो?

हामिद ने दूसरे रोज़ अपनी बीवी साजिदा को तलाक़ दे दी और दो-तीन महीनों के बाद हामिदा से शादी कर ली... उसने अपने एक दोस्त से जिसको उस पर एतराज़ था, सिर्फ़ इतना कहा, “ख़ूबसूरती में ख़ुलूस होना नामुम्किन है... बदसूरती हमेशा पुरख़ुलूस होती है।”
 

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022
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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

8 अप्रैल 2022
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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

20 अप्रैल 2022
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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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