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भंगन

8 अप्रैल 2022

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“परे हटिए.......”

“क्यों?”

“मुझे आप से बू आती है।”

“हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?”

“बीस बरस.......अल्लाह ही जानता है कि मैं ने इतना तवील अर्सा कैसे बसर किया है।”

“मैं ने कभी आप को इस अर्से में तकलीफ़ पहुंचाई?”

“जी कभी नहीं।”

“तो फिर आज अचानक आप को मुझ से ऐसी बू क्यों आने लगी जिस से आप की नाक जो माशा-अल्लाह काफ़ी बड़ी है, उतनी ग़ज़ब-नाक हो रही है?”

“आप अपनी नाक तो देखिए....... पकोड़ा सी है।”

“मैं इस से इनकार नहीं करता....... पकौड़े, तुम जानती हो, मुझे बहुत पसंद हैं।”

“आप को तो हर वाहियात चीज़ पसंद होती है....... कूड़े करकट में भी आप दिलचस्पी लेते हैं।”

“कूड़ा करकट हमारा ही तो फैला या हुआ होता है....... इस से आदमी दिलचस्पी क्यों न ले....... और तुम जानती हो, आज से दस साल पहले जब तुम्हारी हीरे की अँगूठी गुम हो गई थी तो इसी कूड़े के ढेर से मैं ने तुम्हें तलाश कर के दी थी।”

“बड़ा करम किया था आप ने मुझ पर।”

“भई करम का सवाल नहीं....... फ़ारसी का एक शेर है”

ख़ाक-सारां रा बह हक़ारत मंगर

त्वचा दानी कि दरीं गर्द सवारे बाशन्द

“मैं ख़ाक भी नहीं समझी।”

“यही वजह है कि तुम ने अभी तक मुझे नहीं समझा....... वर्ना बीस बरस एक आदमी को पहचानने के लिए काफ़ी होते हैं।”

“इन बीस बरसों में आप ने कौन सा सुख पहुंचाया है मुझे?”

“तुम दुख की बात करो....... बताओ मैं ने कौन सा दुख तुम्हें इस अर्से में पहुंचाया?”

“एक भी नहीं।”

“तो फिर ये कहने का क्या मतलब था....... इन बीस बरसों में आप ने कौन सा सुख पहुंचाया है मुझे?”

“आप मेरे क़रीब न आईए....... मैं सोना चाहती हूँ।”

“इस ग़ुस्से में नींद आ जाएगी तुम्हें?”

“ख़ाक आएगी....... बहर-हाल....... आँखें बंद कर के लेटी रहूंगी और....... ”

“और क्या करेंगी?”

“लेटी उस रोज़ पर आँसू बहाओगी जब मैं आप के पले बांधी गई।”

“तुम्हें याद है वो दिन क्या था.......सन क्या था.......वक़्त क्या था?”

“मैं कभी वो दिन भूल सकती हूँ....... ख़ुदा करे वो किसी लड़की पर न आए।”

“तुम बता तो दो....... मैं तुम्हारी याद-दाश्त का इम्तिहान लेना चाहता हूँ।”

“अब आप मेरा इम्तिहान क्या लेंगे....... परे हटिए....... मुझे आप से बू आ रही है।”

“भी हद हो गई है....... तुम्हारी इतनी लंबी नाक जो कहीं ख़त्म होने ही में नहीं आती, उस को आख़िर क्या हो गया है....... मुझ से तो उस को बड़ी भीनी भीनी ख़ुशबू आना चाहिए....... तुम ने मुझ से इन बीस बरसों में हज़ारों मर्तबा कहा कि आप जब किसी कमरे में दाख़िल हों और वहां से निकल जाएं तो मैं पहचान जाया करती हूँ कि आप वहां आए थे।”

“आप झूट बोल रहे हैं।”

“देखो....... मैं ने अपनी ज़िंदगी में आज तक झूट नहीं बोला....... तुम मुझ पर ये इल्ज़ाम ना धरो।”

“वाह जी वाह, बड़े आए आप कहीं के सच्चे....... मेरा सौ रुपय का नोट आप ने चुराया और साफ़ मुकर गए।”

“ये कब की बात है?”

“दो जून सन उन्नीस सौ बयालीस को....... जब सल्मा मेरे पेट में थी।”

“ये तारीख़ तुम्हें ख़ूब याद रही।”

“क्यों याद न रहती। जब आप से मेरी इतनी ज़बरदस्त लड़ाई हुई थी। मैं अंदर कमरे में पड़ी थी। आप ने चाबी बड़ी सफ़ाई से मेरे तकीए के नीचे से निकाली। दूसरे कमरे में जा कर अलमारी खोली और उस में जो सात सौ पड़े थे, इन में से एक नोट उड़ा कर ले गए। मैं ने जब दो ढाई घंटों के बाद उठ कर देखा तो आप से चख़ हुई, मगर आप थे कि परों पर पानी ही नहीं लेते थे। आख़िर मैं ख़ामोश हो गई।”

“ये दो जून सन उन्नीस सौ बयालीस की बात है....... आजकल सन चव्वन चल रहा है। अब इस के ज़िक्र का क्या फ़ायदा?”

“फ़ायदा तो हर हालत में आप ही का रहता है....... मेरी एक नीलम की अँगूठी भी आप ने ग़ायब कर दी थी, लेकिन मैं ने आप से कुछ नहीं कहा था।”

“देखो, मैं तुम्हारी जान की क़सम खा कर कहता हूँ। उस नीलम की अँगूठी के मुतअल्लिक़ मुझे कुछ मालूम नहीं....... ”

“और इस सौ रुपय के नोट के मुतअल्लिक़।”

“अब तुम्हारी जान की क़सम खाई तो सच्च बताना ही पड़ेगा....... मैं ने ....... मैं ने चुराया ज़रूर था, मगर सिर्फ़ इस लिए कि इस महीने मुझे तनख़्वाह देर से मिलने वाली थी और तुम्हारी सालगिरा थी। तुम्हें कोई तोहफ़ा तो देना था। इन बीस बरसों में तुम्हारी हर सालगिरा पर में अपनी इस्तिताअत के मुताबिक़ कोई न कोई तोहफ़ा पेश करता रहा हूँ।”

“बड़े तोहफ़े तहाइफ़ दिए हैं आप ने मुझे।”

“ना-शुक्री तो न बनो!”

“मैं कई दफ़ा कह चुकी हूँ, आप परे हट जाईए....... मुझे आप से बू आती है।”

“किस की?”

“ये आप को मालूम होना चाहिए।”

“मैं ने ख़ुद को कई मर्तबा सूँघा है, मगर मेरी पकैड़ा ऐसी नाक में ऐसी कोई बू नहीं घुसी जिस पर किसी बीवी को एतराज़ हो सके।”

“आप बातें बनाना ख़ूब जानते हैं।”

“और बातें बिगाड़ना तुम....... मेरी समझ में नहीं आता, आज तुम इस क़दर नाराज़ क्यों हो।”

“अपने गिरेबान में मुँह डाल कर देखिए!”

“मैं इस वक़्त क़मीज़ पहने नहीं हूँ।”

“क्यों?”

“सख़्त गर्मी है।”

“सख़्त गर्मी हो या नर्म....... आप को क़मीज़ तो नहीं उतारना चाहिए थी। ये कोई शराफ़त नहीं।”

“मोहतरमा! आप ने भी तो क़मीज़ उतार रखी है....... अपने नंगे बदन को मुलाहिज़ा फ़रमाईए।”

“ओह....... ये मैं ने क्या वाहियात पन किया है!”

“ये वाहियात पन तो आप गरमियों में बे-सब्र स से कर रही हैं।”

“आप झूट बोलते हैं।”

“ख़ैर, झूट तो हर मर्द की आदत होती है।”

“आप मुझ से दूर ही रहें।”

“क्यों?”

“तौबा....... लाख बार कह चुकी हूँ कि मुझे आप से बहुत गंदी बू आ रही है।”

“पहले सिर्फ़ बू थी....... अब गंदी हो गई।”

“ख़बरदार! जो आप ने मुझे हाथ लगाया!”

“इस क़दर बे-ज़ारी आख़िर क्यों?”

“मैं अब आप से क़तअन बे-ज़ार हो चुकी हूँ।”

“इन बीस बरसों में तुम ने कभी ऐसी बे-ज़ारी का इज़्हार नहीं किया था।”

“अब तो कर दिया है!”

“लेकिन मुझे मालूम तो हो कि इस की वजह क्या है?”

“मैं कहती हूँ, मुझे मत छूईए!”

“तुम्हें मुझ से इतनी कराहत क्यों हो रही है?”

“आप ना-पाक हैं....... बे-हद ज़लील हैं।”

“देखो, तुम बहुत ज़्यादती कर रही हो।”

“आप ने कम की है। कोई शरीफ़ आदमी आप की तरह ऐसी ज़लील हरकत नहीं कर सकता था।”

“कौन सी?”

“आज सुबह क्या हुआ था?”

“आज सुबह.......बारिश हुई थी।”

“बारिश हुई थी.......लेकिन इस बारिश में आप ने किस को अपनी आग़ोश में दबाया हुआ था?”

“ओह,”

“बस इस का जवाब अब ओह ही होगा....... मैं ने पकड़ जो लिया था आप को।”

“देखो मेरी जान.......”

“मुझे अपनी जान वान मत कहिए....... आप को शर्म आनी चाहिए।”

“किस बात पर.......किस गुनाह पर?”

“मैं कहती हूँ आदमी गुनाह करे....... लेकिन ऐसी गंदगी में न करे।”

“मैं किस गंदगी में गिरा हूँ?”

“आज सुबह आप ने उस.......उस....... ”

“क्या?”

“उस भंगन को....... जवान भंगन को जो मिठाई वाले के साथ भाग गई थी।”

“ला-हौल वला....... तुम भी अजीब औरत हो....... वो ग़रीब हामिला है। बारिश में झाड़ू देते हुए उस को ग़श आया और गिर पड़ी। मैं ने उस को उठाया और उस के क्वार्टर में ले गया।”

“फिर क्या हुआ?”

“तुम्हें मालूम नहीं कि वो मर गई?”

“हाय.......बे-चारी....... मैं तो ठंडी बर्फ़ हो गई हूँ।”

“मेरे क़रीब आ जाओ....... मैं क़मीज़ पहन लूं?”

“इस की क्या ज़रूरत है, तुम्हारी क़मीज़ मैं हूँ।”

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022
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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022
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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

8 अप्रैल 2022
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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

9 अप्रैल 2022
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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

9 अप्रैल 2022
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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

20 अप्रैल 2022
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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

20 अप्रैल 2022
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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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