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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022

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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के मिज़ाज से हम वाक़िफ़ थे, इस लिए हम ख़ामोशी से सुनते रहे। दरमयान में उन को कहीं भी न टोका।

आप ने वाक़िया यूं बयान करना शुरू किया। “गोल्डी मेरे पास पंद्रह बरस से था। जैसा कि नाम से ज़ाहिर है...... इस का रंग सुनहरी माइल भूसला था। बहुत ही हसीन कुत्ता था जब मैं सुबह उस के साथ बाग़ की सैर को निकलता तो लोग उसको देखने के लिए खड़े हो जाते थे। लारैंस गार्डन के बाहर में उसे खड़ा करदेता। “गोल्डी खड़े रहना यहां। मैं अभी आता हूँ।” ये कह कर मैं बाग़ के अन्दर चला जाता। घूम फिर कर आधे घंटे के बाद वापस आता तो गोल्डी वहीं अपने लंबे लंबे कान लटकाए खड़ा होता।

असपनील ज़ात के कुत्ते आम तौर पर बड़े इताअत गुज़ार और फ़रमांबर्दार होते हैं। मगर मेरे गोल्डी में ये सिफ़ात बहुत नुमायां थीं। जब तक उसको अपने हाथ से खाना न दूं नहीं खाता था। दोस्त यारों ने मेरा मान तोड़ने के लिए लाखों जतिन किए मगर गोल्डी ने उन के हाथ से एक दाना तक न खाया।

एक रोज़ इत्तिफ़ाक़ की बात है कि मैं लारैंस के बाहर उसे छोड़कर अंदर गया तो एक दोस्त मिल गया। घूमते घूमते काफ़ी देर होगई। इस के बाद वो मुझे अपनी कोठी ले गया। मुझे शतरंज खेलने का मर्ज़ था। बाज़ी शुरू हुई तो मैं दुनिया माफ़ीहा भूल गया। कई घंटे बीत गए। दफ़अतन मुझे गोल्डी का ख़्याल आया। बाज़ी छोड़कर लारैंस के गेट की तरफ़ भागा। गोल्डी वहीं अपने लंबे लंबे कान लटकाए खड़ा था। मुझे उस ने अजीब नज़रों से देखा जैसे कह रहा है “दोस्त, तुम ने आज अच्छा सुलूक क्या मुझ से”

मैं बेहद नादिम हुआ चुनांचे आप यक़ीन जानें मैंने शतरंज खेलना छोड़ दी...... माफ़ कीजीएगा। मैं असल वाक़े की तरफ़ अभी तक नहीं आया। दरअसल गोल्डी की बात शुरू हुई तो मैं चाहता हूँ कि उसके मुतअल्लिक़ मुझे जितनी बातें याद हैं आपको सुना दूं.... मुझे उस से बेहद मोहब्बत थी। मेरे मुजर्रद रहने का एक बाइस उसकी मोहब्बत भी थी जब मैंने शादी न करने का तहय्या किया तो उस को ख़स्सी करा दिया...... आप शायद कहें कि मैंने ज़ुल्म किया, लेकिन मैं समझता हूँ। मोहब्बत में हर चीज़ रवा है...... मैं उसकी ज़ात के सिवा और किसी को वाबस्ता देखना नहीं चाहता था।

कई बार मैंने सोचा अगर मैं मर गया तो ये किसी और के पास चला जाएगा। कुछ देर मेरी मौत का असर इस पर रहेगा। इस के बाद मुझे भूल कर अपने नए आक़ा से मोहब्बत करना शुरू करदेगा जब मैं ये सोचता तो मुझे बहुत दुख होता। लेकिन मैंने ये तहय्या कर लिया था कि अगर मुझे अपनी मौत की आमद का पूरा यक़ीन होगया तो मैं गोल्डी को हलाक कर दूँगा। आँखें बंद करके उसे गोली का निशाना बना दूंगा।

गोल्डी कभी एक लम्हे के लिए मुझ से जुदा नहीं हुआ था। रात को हमेशा मेरे साथ सोता। मेरी तन्हा ज़िंदगी में वो एक रोशनी थी। मेरी बेहद फीकी ज़िंदगी में उसका वजूद एक शीरीनी था। उस से मेरी ग़ैरमामूली मोहब्बत देख कर कई दोस्त मज़ाक़ उड़ाते थे। “शेख़ साहब गोल्डी कुतिया होती तो आप ने ज़रूर उस से शादी कर ली होती।”

ऐसे ही कई और फ़िक़रे किसे जाते लेकिन में मुस्कुरा देता। गोल्डी बड़ा ज़हीन था उस के मुताल्लिक़ जब कोई बात हुई तो फ़ौरन उस के कान खड़े हो जाते थे। मेरे हल्के से हल्के इशारे को भी वो समझ लेता था। मेरे मूड के सारे उतार चढ़ाओ उसे मालूम होते हैं। अगर किसी वजह से रंजीदा होता तो वो मेरे साथ चुहलें शुरू कर देता मुझे ख़ुश करने के लिए हर मुम्किन कोशिश करता।

अभी उस ने टांग उठा कर पेशाब करना नहीं सीखा था यानी अभी कमसिन था कि उस ने एक बर्तन को जो कि ख़ाली था। थूथनी बढ़ा कर सूँघा। मैंने उसे झिड़का तो दुम दबा कर वहीं बैठ गया...... पहले उस के चेहरे पर हैरत सी पैदा हुई थी कि हैं ये मुझ से किया होगया। देर तक गर्दन न्यौढ़ाये बैठा रहा। जैसे नदामत के समुंद्र में ग़र्क़ है। मैं उठा। उठ कर उसको गोद में लिया। प्यारा पचकारा। बड़ी देर के बाद जा कर उसकी दुम हिली.... मुझे बहुत तरस आया कि मैंने ख़्वाह-मख़्वाह उसे डाँटा क्यों कि उस रोज़ रात को ग़रीब ने खाने को मुँह न लगाया। वो बड़ा हस्सास कुत्ता था।

मैं बहुत बेपर्वा आदमी हूँ। मेरी ग़फ़लत से उस को एक बार निमोनिया होगया मेरे ओसतान ख़ता होगए। डाक्टरों के पास दौड़ा। ईलाज शुरू हुआ। मगर असर नदारद। मुतवातिर सात रातें जागता रहा। उसको बहुत तकलीफ़ थी। सांस बड़ी मुश्किल से आता था। जब सीने में दर्द उठता तो वो मेरी तरफ़ देखता जैसे ये कह रहा है। “फ़िक्र की कोई बात नहीं, मैं ठीक हो जाऊंगा।”

कई बार मैंने महसूस किया कि सिर्फ़ मेरे आराम की ख़ातिर उस ने ये ज़ाहिर करने की कोशिश की है कि उसकी तकलीफ़ कुछ कम है वो आँखें मीच लेता। ताकि मैं थोड़ी देर आँख लगालूं। आठवीं रोज़ ख़ुदा ख़ुदा करके उस का बुख़ार हल्का हुआ और आहिस्ता आहिस्ता उतर गया। मैंने प्यार से उस के सर पर हाथ फेरा तो मुझे एक थकी थकी सी मुस्कुराहट उसकी आँखों में तैरती नज़र आई।

नमोनीए के ज़ालिम हमले के बाद देर तक उस को नक़ाहत रही। लेकिन ताक़तवर दवाओं ने उसे ठीक ठाक कर दिया। एक लंबी ग़ैर हाज़िरी के बाद लोगों ने मुझे इसके साथ देखा तो तरह तरह के सवाल करने शुरू किए “आशिक़-ओ-माशूक़ कहाँ ग़ायब थे इतने दिनों?”

“आपस में कहीं लड़ाई तो नहीं हो गई थी”

“किसी और से तो नज़र नहीं लड़ गई थी गोल्डी की”

मैं ख़ामोश रहा। गोल्डी ये बातें सुनता तो एक नज़र मेरी तरफ़ देख कर ख़ामोश हो जाता कि भौंकने दो कुत्तों को।

वो मिस्ल मशहूर है। कुंद हमजिंस बाहम जिन्स परवाज़। कबूतर बह कबूतरबाज़ बह बाज़।

लेकिन गोल्डी को अपने हम जिंसों से कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसकी दुनिया सिर्फ़ मेरी ज़ात थी। इस से बाहर वो कभी निकलता ही नहीं था।

गोल्डी मेरे पास नहीं था। जब एक दोस्त ने मुझे अख़बार पढ़ कर सुनाया। इस में एक वाक़िया लिखा था। आप सुनीए बड़ा दिलचस्प है। अमरीका या इंग्लिस्तान मुझे याद नहीं कहाँ। एक शख़्स के पास कुत्ता था। मालूम नहीं किस ज़ात का। उस शख़्स का ऑप्रेशन होना था। उसको हस्पताल ले गए तो कुत्ता भी साथ हो लिया। इसटरीचर पर डाल कर उस को ऑप्रेशन रुम में ले जाने लगे तो कुत्ते ने अंदर जाना चाहा। मालिक ने उस को रोका और कहा, बाहर खड़े रहो। मैं अभी आता हूँ...... कुत्ता हुक्म सुन कर बाहर खड़ा होगया। अन्दर मालिक का ऑप्रेशन हुआ। जो नाकाम साबित हुआ...... उसकी लाश दूसरे दरवाज़े से बाहर निकाल दी गई...... कुत्ता बारह बरस तक वहीं खड़ा अपने मालिक का इंतिज़ार करता रहा। पेशाब। पाख़ाने के लिए कुछ वहां से हटता...... फिर वहीं खड़ा हो जाता...... आख़िर एक रोज़ मोटर की लपेट में आगया। और बुरी तरह ज़ख़मी होगा। मगर इस हालत में भी वो ख़ुद को घसीटता हुआ वहां पहुंचा। जहां इस के मालिक ने उसे इंतिज़ार करने के लिए कहा था। आख़िरी सांस उस ने उसी जगह लिया...... ये भी लिखा था...... कि हस्पताल वालों ने उस की लाश में भुस भर के उसको वहीं रख दिया है जैसे वो अब भी अपने आक़ा के इंतिज़ार में खड़ा है।

मैंने ये दास्तान सुनी तो मुझ पर कोई ख़ास असर न हुआ। अव्वल तो मुझे उसकी सेहत ही का यक़ीन न आया, लेकिन जब गोल्डी मेरे पास आया और मुझे उसकी सिफ़ात का इल्म हुआ तो बहुत बरसों के बाद मैंने ये दास्तान कई दोस्तों को सुनाई। सुनाते वक़्त मुझ पर एक रिक़्क़त तारी हो जाती थी और मैं सोचने लगता था “मेरे गोल्डी से भी कोई ऐसा कारनामा वाबस्ता होना चाहिए......गोल्डी मामूली हस्ती नहीं है।”

गोल्डी बहुत मतीन और संजीदा था। बचपन में उस ने थोड़ी शरारतें कीं मगर जब उस ने देखा कि मुझे पसंद नहीं तो उन को तर्क कर दिया। आहिस्ता आहिस्ता संजीदगी इख़्तियार करली जो तादम-ए-मर्ग क़ायम रही।

मैंने तादम-ए-मर्ग कहा है तो मेरी आँखों में आँसू आगए हैं।

शेख़ साहब रुक गए उनकी आँखें नमआलूद होगई थीं। हम ख़ामोश रहे थोड़े अर्से के बाद उन्हों ने रूमाल निकाल कर अपने आँसू पोंछे और कहना शुरू किया।

“यही मेरी ज़्यादती है कि मैं ज़िंदा हूँ...... लेकिन शायद इस लिए ज़िंदा हूँ कि इंसान हूँ...... मर जाता तो शायद गोल्डी की तौहीन होती...... जब वो मरा तो रो रो कर मेरा बुरा हाल था...... लेकिन वो मरा नहीं था। मैंने उस को मरवा दिया था। इस लिए नहीं कि मुझे अपनी मौत की आमद का यक़ीन होगया था...... वो पागल होगया था। ऐसा पागल नहीं जैसा कि आम पागल कुत्ते हुए हैं। उसके मर्ज़ का कुछ पता ही नहीं चलता था। उस को सख़्त तकलीफ़ थी। जांकनी का सा आलम उस पर तारी था। डाक्टरों ने कहा इस का वाहिद ईलाज यही है कि उसको मरवा दो। मैंने पहले सोचा नहीं। लेकिन वो जिस अज़ीयत में गिरफ़्तार था। मुझ से देखी नहीं जाती थी। मैं मान गया वो उसे एक कमरा में ले गए जहां बर्क़ी झटका पहुंचा कर हलाक करनेवाली मशीन थी। मैं अभी अपने नहीफ़ दिमाग़ में अच्छी तरह कुछ सोच भी न सका था कि वो उसकी लाश ले आए...... मेरी गोल्डी की लाश। जब मैंने उसे अपने बाज़ूओं में उठाया तो मेरे आँसू टप टप इस के सुनहरे बालों पर गिरने लगे। जो पहले कभी गर्द आलूद नहीं हुए थे...... टांगे में उसे घर लाया। देर तक उस को देखा क्या। पंद्रह साल की रिफ़ाक़त की लाश मेरे बिस्तर पर पड़ी थी...... क़ुर्बानी का मुजस्समा टूट गया था। मैंने उस को नहलाया...... कफ़न पहनाया। बहुत देर तक सोचता रहा कि अब क्या करूं...... ज़मीन में दफ़न करूं या जला दूं।

ज़मीन में दफ़न करता तो उसकी मौत का एक निशान रह जाता। ये मुझे पसंद नहीं था। मालूम नहीं क्यों। ये भी मालूम नहीं कि मैंने क्यों उस को ग़र्क़-ए-दरिया करना चाहा। मैंने उस के मुतअल्लिक़ अब भी कई बार सोचा है। मगर मुझे कोई जवाब नहीं मिला...... ख़ैर मैंने एक नई बोरी में उसकी कफ़नाई हुई लाश डाली...... धो धा कर बट्टे उस में डाले और दरिया की तरफ़ रवाना हो गया।

जब बीड़ी दरिया के दरमयान में पहुंची। और मैंने बोरी की तरफ़ देखा तो गोल्डी से पंद्रह बरस की रिफ़ाक़त-ओ-मोहब्बत एक बहुत ही तेज़ तल्ख़ी बन कर मेरे हलक़ में अटक गई। मैंने अब ज़्यादा देर करना मुनासिब न समझा। काँपते हुए हाथों से बोरी उठाई और दरिया में फेंक दी। बहते हुए पानी की चादर पर कुछ बुलबुले उठे और हवा में हल हो गए।

बीड़ी वापस साहल पर आई। मैं उतर कर देर तक इस तरफ़ देखता रहा। जहां मैंने गोल्डी को ग़र्क़-ए-आब किया था...... शाम का धुंदलका छाया हुआ था। पानी बड़ी ख़ामोशी से बह रहा था जैसे वो गोल्डी को अपनी गोद में सुला रहा है।”

ये कह कर शेख़ साहब ख़ामोश होगए। चंद लम्हात के बाद हम में से एक ने उन से पूछा। “लेकिन शेख़ साहब आप तो ख़ास वाक़िया सुनाने वाले थे।”

शेख़ साहिब चोंके...... “ओह माफ़ कीजीएगा। मैं अपनी रो में जाने कहाँ से कहाँ पहुंच गया...... वाक़िया ये था कि...... मैं अभी अर्ज़ करता हूँ...... पंद्रह बरस होगए थे हमारी रिफ़ाक़त को। इस दौरान मैं कभी बीमार नहीं हुआ था। मेरी सेहत माशा अल्लाह बहुत अच्छी थी, लेकिन जिस दिन मैंने गोल्डी की पंद्रहवीं सालगिरा मनाई। उस के दूसरे दिन मैंने आज़ाशिकनी महसूस की। शाम को ये आज़ा शिकनी तेज़ बुख़ार में तबदील होगई। रात सख़्त बेचैन रहा। गोल्डी जागता रहा। एक आँख बंद करके दूसरी आँख से मुझे देखता रहा। पलंग पर से उतर कर नीचे जाता। फिर आकर बैठ जाता।

ज़्यादा उम्र हो जाने के बाइस उस की बीनाई और समाअत कमज़ोर होगई थी लेकिन ज़रा सी आहट होती तो वो चौंक पड़ता और अपनी धुँदली आँखों से मेरी तरफ़ देखता और जैसे ये पूछता...... “ये क्या हो गया है तुम्हें?”

उस को हैरत थी कि मैं इतनी देर तक पलंग पर क्यों पड़ा हूँ, लेकिन वो जल्दी ही सारी बात समझ गया। जब मुझे बिस्तर पर लेटे कई दिन गुज़र गए तो उस के सालख़ोरदा चेहरे पर अफ़्सुर्दा छा गई। मैं उस को अपने हाथ से खिलाया करता था। बीमारी के आग़ाज़ में तो मैं उस को खाना देता रहा। जब नक़ाहत बढ़ गई तो मैंने एक दोस्त से कहा कि वो सुबह शाम गोल्डी को खाना खिलाने आ जाया करे। वो आता रहा। मगर गोल्डी ने उस की प्लेट की तरफ़ मुँह न किया। मैंने बहुत कहा। लेकिन वो न माना। एक मुझे अपने मर्ज़ की तकलीफ़ थी जो दूर होने ही में नहीं आता था। दूसरे मुझे गोल्डी की फ़िक्र थी जिस ने खाना पीना बिलकुल बंद कर दिया था।

अब उस ने पलंग पर बैठना भी छोड़ दिया। सामने दीवार के पास सारा दिन और सारी रात ख़ामोश बैठा अपनी धुँदली आँखों से मुझे देखता रहता। इस से मुझे और भी दुख हुआ। वो कभी नंगी ज़मीन पर नहीं बैठा था। मैंने उस से बहुत कहा। लेकिन वो न माना।

वो बहुत ज़्यादा ख़ामोश हो गया था। ऐसा मालूम होता था कि वो ग़म-ओ-अंदोह में ग़र्क़ है। कभी कभी उठ कर पलंग के पास आता। अजीब हसरत भरी नज़रों से मेरी तरफ़ देखता और गर्दन झुका कर वापस दीवार के पास चला जाता।

एक रात लैम्प की रोशनी में मैंने देखा। कि गोल्डी की धुँदली आँखों में आँसू चमक रहे हैं। उस के चेहरे से हुज़्न-ओ-मलाल बरस रहा था। मुझे बहुत दुख पहुंचा। मैंने उसे हाथ के इशारे से बुलाया। लंबे लंबे सुनहरे कान हिलाता वो मेरे पास आया। मैंने बड़े प्यार से कहा। “गोल्डी मैं अच्छा हो जाऊंगा। तुम दुआ मांगो...... तुम्हारी दुआ ज़रूर क़बूल होगी।”

ये सुन कर उस ने बड़ी उदास आँखों से मुझे देखा, फिर सर ऊपर उठा कर छत की तरफ़ देखने लगा। जैसे दुआ मांग रहा है...... कुछ देर वो इस तरह खड़ा रहा। मेरे जिस्म पर झुरझुरी सी तारी होगई। एक अजीब-ओ-ग़रीब तस्वीर मेरी आँखों के सामने थी। गोल्डी सचमुच दुआ मांग रहा था...... मैं सच्च अर्ज़ करता हूँ वो सर-ता-पा दुआ था। मैं कहना नहीं चाहता। लेकिन उस वक़्त मैंने महसूस किया कि उसकी रूह ख़ुदा के हुज़ूर पहुंच कर गिड़गिड़ा रही है।

मैं चंद ही दिनों में अच्छा होगया। लेकिन गोल्डी की हालत गेरा होगई। जब तक मैं बिस्तर पर था वो आँखें बंद किए दीवार के साथ ख़ामोश बैठा रहा। मैं हिलने जुलने के काबिल हुआ तो मैंने उसको खिलाने पिलाने की कोशिश की मगर बेसूद। उसको अब किसी शैय से दिलचस्पी नहीं थी। दुआ मांगने के बाद जैसे उसकी सारी ताक़त ज़ाइल हो गई थी।

मैं उस से कहता, “मेरी तरफ़ देखो गोल्डी...... मैं अच्छा होगया हूँ...... ख़ुदा ने तुम्हारी दुआ क़बूल करली है,” लेकिन वो आँखें न खोलता। मैंने दो तीन दफ़ा डाक्टर बुलाया। उस ने इंजैक्शन लगाए पर कुछ न हुआ। एक दिन मैं डाक्टर लेकर आया तो उस का दिमाग़ चल चुका था।

मैं उठा कर उसे बड़े डाक्टर के पास ले गया और उस को बर्क़ी ज़र्ब से हलाक करा दिया।

मुझे मालूम नहीं बाबर और हुमायूँ वाला क़िस्सा कहाँ तक सही है...... लेकिन ये वाक़िया हर्फ़-ब-हर्फ़ दुरुस्त है।

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022
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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022
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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

8 अप्रैल 2022
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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

9 अप्रैल 2022
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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

9 अप्रैल 2022
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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

20 अप्रैल 2022
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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

20 अप्रैल 2022
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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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