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सुरमा

8 अप्रैल 2022

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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी माँ से कहा कि वो सुर्मा जो खासतौर पर उन के यहां आता है, चांदी की सुर्मे-दानी में डाल कर उसे ज़रूर दें। साथ ही चांदी का सुर्मचो भी।

फ़हमीदा की ये ख़ाहिश फ़ौरन पूरी होगई। आज़म अली की दुकान से सुर्मा मंगवाया। बरकत की दुकान से सुर्मे-दानी और सुर्मचो लिया और इस के जहेज़ में रख दिया।

फ़हमीदा को सुर्मा बहुत पसंद था। वो उस को मालूम नहीं, क्यों इतना पसंद था। शायद इस लिए कि उस का रंग बहुत ज़्यादा गोरा था। वो चाहती थी कि थोड़ी सी स्याही भी उस में शामिल हो जाये। होश सँभालते ही उस ने सुर्मे का इस्तिमाल शुरू कर दिया था।

उस की माँ उस से अक्सर कहती। “फ़हमी ये तुम्हें क्या ख़बत होगया है जब न तब आँखों में सुर्मा लगाती रहती हो ”

फ़हमीदा मुस्कुराती। “अम्मी जान इस से नज़र कमज़ोर नहीं होती आप ने ऐनक कब लगवाई थी?”

“बारह बरस की उम्र में ”

फ़हमीदा हंसी। “अगर आप ने सुर्मे का इस्तिमाल क्या होता, तो आप को कभी ऐनक की ज़रूरत महसूस न होती अस्ल में हम लोग कुछ ज़्यादा ही रोशन ख़याल होगए हैं लेकिन रोशनी के बदले हमें अंधेरा ही अंधेरा मिलता है।”

उस की माँ कहती। “जाने क्या बक रही हो।”

“मैं जो कुछ बक रही हूँ सही है आजकल लड़कियां नक़ली भवें लगाती हैं काली पैंसिल से ख़ुदा मालूम अपने चेहरे पर क्या कुछ करती हैं लेकिन नतीजा क्या निकलता है चुड़ैल बन जाती हैं।”

उस की माँ की समझ में कुछ भी न आया। “जाने क्या कह रही हो। मेरी समझ में तो ख़ाक भी नहीं आया।”

फ़हमीदा कहती। “अम्मी जान! आप को इतना समझना चाहिए कि दुनिया में सिर्फ़ ख़ाक ही ख़ाक नहीं कुछ और भी है।”

उस की माँ उस से पूछती। “और क्या है?”

फ़हमीदा जवाब देती। “बहुत कुछ है ख़ाक में भी सोने के ज़र्रे हो सकते हैं।”

ख़ैर फ़हमीदा की शादी होगई पहली मुलाक़ात मियां बीवी की बड़ी दिलचस्प थी। जब फ़हमीदा का ख़ाविंद उस से हम-कलाम हुआ, तो उस ने देखा कि उस की आँखों में सियाहियाँ तैर रही हैं।

उस के ख़ाविंद ने पूछा। “ये तुम इतना सुर्मा क्यों लगाती हो?”

फ़हमीदा झेंप गई और जवाब में कुछ न कह सकी।

उस के ख़ावंद को ये अदा पसंद आई और वो उस से लिपट गया लेकिन फ़हमीदा की सुर्मा भरी आँखों से टप टप काले काले आँसू बहने लगे।

उस का ख़ाविंद बहुत परेशान होगया, “तुम रो क्यों रही हो?”

फ़हमीदा ख़ामोश रही।

उस के ख़ाविंद ने एक बार फिर पूछा “क्या बात है आख़िर रोने की वजह क्या है मैंने तुम्हें कोई दुख पहुंचाया?”

“जी नहीं।”

“तो फिर रोने की वजह क्या हो सकती है?”

“कोई भी नहीं।”

उस के ख़ाविंद ने उस के गाल पर हौले हौले थपकी दी और कहा “जान-ए-मन जो बात है मुझे बता दो अगर मैंने कोई ज़्यादती की है तो उस की माफ़ी चाहता हूँ देखो तुम इस घर की मल्का हो मैं तुम्हारा ग़ुलाम हूँ लेकिन मुझे ये रोना धोना अच्छा नहीं लगता मैं चाहता हूँ कि तुम सदा हंसती रहो।”

फ़हमीदा रोती रही।

उस के ख़ाविंद ने उस से एक बार फिर पूछा “आख़िर इस रोने की वजह क्या है?”

फ़हमीदा ने जवाब दिया। “कोई वजह नहीं है, आप पानी का एक गिलास दीजिए मुझे”

उस का ख़ाविंद फ़ौरन पानी का एक गिलास ले आया फ़हमीदा ने अपनी आँखों में लगा हुआ सुर्मा धोया तोलीए से अच्छी तरह साफ़ किया आँसू ख़ुद-बख़ुद ख़ुश्क होगए इस के बाद वो अपने ख़ाविंद से हम-कलाम हुई।

“मैं माज़रत चाहती हूँ कि आप को मैंने इतना परेशान क्या अब देखिए मेरी आँखों में सुर्मे की एक लकीर भी बाक़ी नहीं रही।”

उस के ख़ाविंद ने कहा “मुझे सुर्मे पर कोई एतराज़ नहीं तुम शौक़ से उस को इस्तिमाल करो मगर इतना ज़्यादा नहीं कि आँखें उबलती नज़र आएं।”

फ़हमीदा ने आँखें झुका कर कहा। “मुझे आप का हर हुक्म बजा लाना है आइन्दा में कभी सुर्मा नहीं लगाऊंगी।”

“नहीं नहीं मैं तुम्हें इस के इस्तिमाल से मना नहीं करता मैं सिर्फ़ ये कहना चाहता था कि मेरा मतलब है कि उस चीज़ को बक़दर किफ़ायत इस्तिमाल किया जाये ज़रूरत से ज़्यादा जो भी चीज़ इस्तिमाल में आएगी, अपनी क़दर खो देगी।”

फ़हमीदा ने सुर्मा लगाना छोड़ दिया लेकिन फिर भी वो अपनी चांदी की सुर्मे-दानी और चांदी के सुर्मचो को हर रोज़ निकाल कर देखती थी और सोचती थी कि ये दोनों चीज़ें उस की ज़िंदगी से क्यों ख़ारिज होगई हैं, वो क्यों उन को अपनी आँखों में जगह नहीं दे सकती।

सिर्फ़ इस लिए कि उस की शादी हो गई है ?

सिर्फ़ इस लिए कि वो अब किसी की मिल्कियत हो गई है?

या हो सकता है कि उस की क़ुव्वत-ए-इरादी सल्ब हो गई हो।

वो कोई फ़ैसला नहीं कर सकती थी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी थी।

एक बरस के बाद उस के हाँ चांद सा बच्चा आ गया।

फ़हमीदा निढाल थी लेकिन उसे अपनी कमज़ोरी का कोई एहसास नहीं था इस लिए कि वो अपने लड़के की पैदाइश पर नाज़ां थी। उसे यूं महसूस होता था जैसे उस ने कोई बहुत बड़ी तख़लीक़ की है।

चालीस दिनों के बाद इस ने सुर्मा मंगवाया और अपने नोमोलूद लड़के की आँखों में लगाया लड़के की आँखें बड़ी बड़ी थीं उन में जब सुर्मा की तहरीर हुई तो वो और भी ज़्यादा बड़ी होगईं।

इस के ख़ाविंद ने कोई एतराज़ न किया कि वो बच्चे की आँखों में सुर्मा क्यों लगाती है इस लिए कि उसे बड़ी और ख़ूबसूरत आँखें पसंद थीं।

दिन अच्छी तरह गुज़र रहे थे। फ़हमीदा के ख़ाविंद शुजाअत अली को तरक़्क़ी मिल गई थी। अब उस की तनख़्वाह डेढ़ हज़ार रुपय के क़रीब थी। एक दिन उस ने अपने लड़के, जिस का नाम उस की बीवी ने आसिम रखा था, सुर्मा लगी आँखों के साथ देखा वो उस को बहुत प्यारा लगा, इस ने बे-इख़्तियार उस को उठाया चूमा चाटा और पलंगड़ी पर डाल दिया वो हंस रहा था, और अपने नन्हे मुन्ने हाथ पांव इधर उधर मार रहा था।

उस की सालगिरा की तैय्यारियां हो रही थीं। फ़हमीदा ने एक बहुत बड़े केक का आर्डर दे दिया था मुहल्ले के सब बच्चों को दावत दी गई थी। वो चाहती थी कि इस के लड़के की पहली सालगिरा बड़ी शान से मनाई जाये।

सालगिरा यक़ीनन शान से मनाई जाती, मगर दो दिन पहले आसिम की तबीयत ना-साज़ होगई और ऐसी हुई कि उसे तशन्नुज के दौरे पड़ने लगे !

उसे हस्पताल ले गए, वहां डाक्टरों ने उस का मुआइना किया। तशख़ीस के बाद मालूम हुआ कि इसे डबल निमोनिया होगया है।

फ़हमीदा रोने लगी बल्कि सर पीटने लगी “हाय मेरे लाल को ये क्या होगया है हम ने तो उसे फूलों की तरह पाला है।”

एक डाक्टर ने उस से कहा “मैडम ये बीमारियां इंसान के अहात-ए-इख़्तियार में नहीं। वैसे बहैसीयत डाक्टर मैं आप से ये कहता हूँ कि बच्चे के जीने की कोई उम्मीद नहीं।”

फ़हमीदा ने रोना शुरू कर दिया। “मैं तो ख़ुद मर जाऊंगी ख़ुदा के लिए, डाक्टर साहब ! उसे बचा लीजिए, आप ईलाज करना जानते हैं मुझे अल्लाह के घर से उमीद है कि मेरा बच्चा ठीक हो जाएगा।”

“आप इतने ना-उम्मीद क्यों हैं?”

“मैं ना-उम्मीद नहीं। लेकिन मैं आप को झूटी तसल्ली नहीं देना चाहता।”

“झूटी तसल्लियां, आप मुझ को क्यों देंगे मुझे यक़ीन है कि मेरा बच्चा ज़िंदा रहेगा।”

“ख़ुदा करे कि ऐसा ही हो”

मगर ख़ुदा ने ऐसा न किया और वो तीन रोज़ के बाद हस्पताल में मर गया।

फ़हमीदा पर देर तक पागलपन की कैफ़ियत तारी रही उस के होश-ओ-हवास गुम थे कोइले उठाती उन्हें पीसती और अपने चेहरे पर मलना शुरू कर देती।

उस का ख़ाविंद सख़्त परेशान था। उस ने कई डाक्टरों से मश्वरा किया। दवाएं भी दीं लेकिन ख़ातिर-ख़्वाह नतीजा बरामद न हुआ। फ़हमीदा के दिल-ओ-दिमाग़ में सुर्मा ही सुर्मा था। वो हर बात कालिक के साथ सोचती थी।

उस का ख़ाविंद उस से कहता “क्या बात है तुम इतनी अफ़्सुर्दा क्यों रहती हो”

वो जवाब देती “जी, कोई ख़ास बात नहीं मुझे आप सुर्मा ला दीजिए”

उस का ख़ाविंद उस के लिए सुर्मा ले आया, मगर फ़हमीदा को पसंद न आया। चुनांचे वो ख़ुद बाज़ार गई और अपनी पसंद का सुर्मा ख़रीद कर लाई।

अपनी आँखों में लगाया और सौ गई जिस तरह वो अपने बेटे आसिम के साथ सोया करती थी।

सुबह जब इस का ख़ाविंद उठा और और इस ने अपनी बीवी को जगाने की कोशिश की तो वो मुर्दा पड़ी थी उस के पहलू में एक गुड़िया थी जिस की आँखें सुर्मे से लबरेज़ थीं।

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022
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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

8 अप्रैल 2022
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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

9 अप्रैल 2022
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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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