मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते हैं, लेकिन वो एडिटर जो ख़ून पसीना एक कर के उनकी दौलत में इज़ाफ़ा करते हैं, आरामदेह ज़िंदगी से हमेशा दूर रखे जाते हैं।
मुझे शिकायत है उन नाशिरों से जो कौड़ियों के दाम तसानीफ़ ख़रीदते हैं और अपनी जेबों के लिए सैंकड़ों रुपये इकट्ठे कर लेते हैं जो सादा-लौह मुसन्निफ़ीन को निहायत चालाकी से फाँसते हैं और उनकी तसानीफ़ हमेशा के लिए हड़प कर जाते हैं।
मुझे शिकायत है उन सरमायादार जोहला से जो रुपये का लालच देकर ग़रीब और अफ़लास-ज़दा अदीबों से उनके अफ़्क़ार हासिल करते हैं और अपने नाम से उन्हें शायेअ करते हैं।
सबसे बड़ी शिकायत मुझे उन अदीबों, शाइरों और अफ़साना निगारों से है जो अख़बारों और रिसालों में बग़ैर मुआवज़े के मज़मून भेजते हैं। वो क्यों उस चीज़ को पालते हैं जो एक खील भी उनके मुँह में नहीं डालती। वो क्यों ऐसा काम करते हैं जिससे उनको ज़ाती फ़ायदा नहीं पहुंचता। वो क्यों उन काग़ज़ों पर नक़्श-ओ-निगार बनाते हैं जो उनके लिए कफ़न का काम भी नहीं दे सकते।