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बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022

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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं।

दोनों गॉगल्स ने अपनी किताबें मेज़ पर रखीं। अपने डस्ट कौर उतारे और बुश शर्टों के बटन बन गईं।

एक गॉगल ने इस बुशशर्ट से जो ख़ालिस अमरीकी थी, कहा “आप का लिबास बड़ा वाहियात है।”

वो बुशशर्ट हंसा। “तुम्हारे गॉगल्स बड़े वाहियात हैं। उसे लगा कि तुम ऐसी दिखाई देती हो जैसे रोशन दिन अंधेरी रात बन गया है।”

इस अंधेरी रात ने उस बुशशर्ट से कहा। “मैं तो चांदनी रात हूँ।”

अमरीकी बुशशर्ट ने उस को एक कोह हिमाला पेश किया जो बहुत ठंडा और मीठा था।

उस ने चम्मच से उस कोह हिमाला को सर कर लिया। लेकिन इस मुहिम के दौरान में उस को बड़ी कोफ़्त हुई....... वो बर्फ़ों की आदी नहीं थी। वो मजबूरन अपनी सहेली दूसरी गॉगल्स के साथ आगई थी कि वहां उस का चहेता बुशशर्ट मिल गया।

दूसरी गॉगल्स अपने बुशशर्ट से अलाहिदा बातें कर रही थी।

“आज तुम इतनी हसीन क्यों दिखाई दे रही हो”

“मुझे क्या मालूम”

“अपनी चकीं उतार दो”

“क्यों?”

“मुझे तुम्हारी आँखें नज़र नहीं आतीं।”

“मेरा दिल तो तुम्हें नज़र आरहा होगा।”

“नज़र आता रहा है................. नज़र आता रहेगा................. लेकिन मुझे तुम्हारी आँखों पर ये ग़िलाफ़ पसंद नहीं।”

“तेज़ रोशनी मुझे पसंद नहीं।”

“क्यों?”

“बस नहीं.............. तुम्हारी बुशशर्ट भी मुझे पसंद नहीं।”

“क्यों?”

“इस लिए कि इस का डिज़ाइन बहुत बे-हूदा है.............. ऐसा मालूम होता है कि आइसक्रीम में कीड़े मकोड़े चल रहे हैं।”

“तुम खा तो चुकी हो।”

“मैंने तो सिर्फ़ चखी है, खाई कब है?”

“आप बारिदा शुमाली में सिर्फ़ आइसक्रीम चखने के लिए ही आती हैं”

“आप मजबूर करते हैं तो मैं आती हूँ, वर्ना मुझे उस जगह से कोई रग़बत नहीं।”

“मैं ये चाहता था कि हम दोनों मिल कर कोई मुहिम सर करें।”

“कौन सी मुहिम?”

“बे-शुमार मुहिमें हैं.............. लेकिन एक सब से बड़ी है।”

“कौन सी?”

“किसी आतिंश फ़िशां पहाड़ के अंदर कूद जाएं और वहां के हालात मालूम करें।”

मैं तैय्यार हूँ.............. लेकिन फिर मैं यहां आकर आइसक्रीम ज़रूर खाऊंगी।”

“मैं ख़िलाऊँगा तुम्हें”

दोनों बाँहों में बाँहें डाले एक ऐसी दोज़ख़ में चले गए जो आहिस्ता आहिस्ता ठंडी होती गई। इस गॉगल्स की सारी किताबें उस बुशशर्ट की लाइब्रेरी में दाख़िल होगईं।

दूसरी गॉगल्स ने अपनी बुशशर्ट को अपने बुलाउज़ की सारी किताबें पढ़ाईं मगर उस की समझ में न आईं, ऐसा मालूम होता था कि वो बुशशर्ट किसी घटिया क़िस्म के दर्ज़ी की सिली हुई है।

उस ने बारिदा शिमाली में उस से कहा। “तुम आइसक्रीम न खाया करो.............. हम आइन्दा आतिशीं हाऊस में जाया करेंगे................

दूसरी गॉगल्स गलगबाने लगी। इस गलगाहट में उस ने अपनी बुशशर्ट के काज बनाने शुरू कर दिए और इन में कई फूल टॉनिक दिए।

ये बुशशर्ट घटिया किस्म के दर्ज़ी की सिली हुई नहीं थी, असल में उस का कपड़ा खुर्दरा था, जैसे टाट हो, इस में दूसरी गॉगल्स ने अपनी मख़मल के कई पैवंद लगाए, मगर ख़ातिर-ख़्वाह नतीजा बरामद न हुआ।

वो आतिशीं हाऊस में भी कई मर्तबा गए, वहां उन्हों ने कई गिलास पिघली हुई आग के पिए। मगर कोई तस्कीन न हुई।

दूसरी गॉगल्स हैरान थी कि उस का बुशशर्ट जिस के लिए उस ने अपने बुलाउज़ के तमाम बख़िए उधेड़ दिए, उस से मुल्तफ़ित क्यों नहीं होता। वो उस की हर सिलवट से प्यार करती थी। लेकिन वो बारिदा शुमाली में और आतिशीं हाऊस में उस के ख़ूबसूरत फ़्रेम से कोई दिलचस्पी लेता ही नहीं था।

अजीब बात है कि वो बारिदा शुमाली में गर्म हो जाता और आतिशीं हाऊस में ओला सा बन जाता। दूसरी बुशशर्ट बहुत हैरान थी कि ये क्या माजरा है!

उस ने पहली गॉगल्स को जो उस की सहेली थी, एक ख़त लिखा और उस को अपना सारा दुख बताया।

उस ने जवाब में ये लिखा। “तुम कुछ फ़िक्र न करो। ये बुशशर्ट ऐसे ही होते हैं। कभी सिकुड़ जाते हैं। कभी फैल जाते हैं। मेरा ख़याल है कि तुम्हारी लांड्री में भी कोई नुक़्स है। उसे दूर करने की कोशिश करो। तुम्हारी इस्त्री भी ऐसा मालूम होता है, ख़राब होगई है, इसे ठीक कराओ। कहीं करंट तो नहीं मारती?”

दूसरी गॉगल्स ने उसे लिखा। “कभी कभी मुझे ऐसा महसूस होता है कि मेरी इस्त्री करंट मारती है............ मेरा बुशशर्ट गीला हो चुका होता है कि मेरी इस्त्री गर्म होती है, मैं जब इस पर फेरती हूँ तो मुझे बिजली के धचके लगते हैं।”

जवाब में उस की सहेली ने लिखा। “मैं तुम्हारी इस्त्री की ख़राबी समझ गई हूँ। नया प्लग भेज रही हूँ, उस को लगा कर देखो, शायद ये ख़राबी दूर हो जाये।”

वो प्लग आया। बड़ा ख़ूबसूरत था। मगर जब उस ने अपनी इस्त्री में लगाना चाहा तो फ़िट न हुआ। कंडम करके उस ने वापिस कर दिया, और अपने बुशशर्ट की रफू गिरी शुरू करदी।

ये काम बड़ा नाज़ुक था मगर इस दूसरी गॉगल्स ने बड़ी मेहनत से किया पर नतीजा फिर भी सिफ़र रहा ........ वो बारिदा शुमाली में गई। वहां उस ने पाँच कोह हिमाला चमचों से सर किए........... वहां से यख़-बस्ता हो के उठी और एक निहायत वाहियात बुशशर्ट के साथ आतिशीं हाऊस जा कर उस ने दस ज्वालामुखी निगले और वापस अपने चमड़े के थैले में आगई।

दूसरे दिन वो फिर अपने चहेते बुशशर्ट से मिली। उस को इस ने बताया कि वो रात एक निहायत लग्व क़िस्म के बुशशर्ट के साथ आतिशीं हाऊस गई थी, उस ने क़तअन बुरा न माना, वो सोचने लगी कि ये कैसा किलिफ़ लगा बुशशर्ट है जिस की जेबों में रश्क और हसद के सिक्के खनखनाते ही नहीं।

उस ने फिर अपनी सहेली गॉगल्स को ख़त लिखा और सुनाया। “तुम्हारा भेजा हुआ प्लग मेरी इस्त्री में लगा ही नहीं................ मैंने वापस भेज दिया था। उम्मीद है कि तुम्हें मिल गया होगा............. अब मुझे तुम से ये पूछना है कि मैं क्या करूं.............. वो मेरा बुशशर्ट................ समझ में नहीं आता क्या शैय है............. ख़ुदा के लिए आओ.............. मैं बहुत परेशान हूँ, अपने बुशशर्ट को मेरा सलाम कहना, मेरा ख़याल है कि तुम उस को हर रात पहनती हो............ उस का कपड़ा बड़ा मुलाइम है।”

उस की सहेली, उस के बुलावे पर आगई, उस के साथ का अपना बुशशर्ट नहीं था........... दोनों बहुत ख़ुश थीं, उन के शीशे आपस में टकराए......... बड़ी खनकें पैदा हुईं, जैसे कई कांच की चूड़ियां एक कलाई में पड़ी बज रही हैं।

उस की सहेली गॉगल्स का फ्रे़म सुनहरा था। उसे देख कर दूसरी को थोड़ा सा रश्क हुआ, मगर उस ने इस जज़्बे को फ़ौरन दूर कर दिया और इस सुनहरे फ्रे़म का तआरुफ़ अपने बुशशर्ट से कराया ताकि वो उस के मुतल्लिक़ कोई राय क़ायम करे और बताए कि उस पर इस्त्री किस तरह करनी चाहिए। ताकि उस की सिलवटें दूर हो जाएं।

वो अपनी सहेली के बुशशर्ट से बड़े तपाक से मिली, उस ने बड़े ग़ौर से उस का टांका टांका देखा, मगर उसे कोई ऐब नज़र न आया वो उस के अपने बुशशर्ट के मुक़ाबले में कई दर्जे अच्छा सिला हुआ था।

इन दोनों की मुलाक़ातें होती रहें, आख़िर एक दिन उन्हों ने बारिदा शुमाली जाने का प्रोग्राम बनाया वो मालूम करना चाहती थी कि इस बुशशर्ट का रद्दे-अमल क्या होता है। वो अपनी सहेली गॉगल्स से कह गई थी कि वो अपने शीशों में से उस के बुशशर्ट को देखना चाहती है।

जब वो बारिदा शुमाली में गए तो वहां उस बुशशर्ट को आग लग गई जिस में उस ने अपनी साथी गॉगल्स को भी लपेट में ले लिया.............. दोनों देर तक उस आग में जलते रहे............. और उसे बुझाने के लिए आतिशीं हाऊस में चले गए................ चूँकि आबले ज़्यादा पड़ गए थे, इस लिए वो कई दिन उन का ईलाज बाहर ही बाहर करते रहे।

दूसरी गॉगल्स हैरान थी कि ये दोनों कहाँ ग़ायब होगए हैं.............. इस के दोनों शीशे धुनदले होते जा रहे थे कि अचानक उस की सहेली का बुशशर्ट आगया। उस ने उस को न पहचाना और कहा। “माफ़ कीजिएगा मेरे शीशे धुँदले होगए हैं।”

उस ने फ़ौरन उस के शीशे निकाले, उन को अपनी सांसों से पहले गर्म, फिर नम-आलूद किया, और अपने दामन से पोंछ कर साफ़ कर दिया।

वो हैरत-ज़दा होगई................ उस की ज़िंदगी में उस के शीशे कभी इतने साफ़ नहीं हुए थे........... दोनों बारिदा शुमाली में कोह हिमाला खाने के लिए गए............ वो ये खा ही रहे थे कि पहला बुशशर्ट दूसरी गॉगल्स के साथ आगया।

दोनों ख़ामोश रहे......... उन्हों ने दिल ही दिल में महसूस कर लिया कि वो ग़लत चोटियों पर चढ़ रहे थे।

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022
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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

8 अप्रैल 2022
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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

20 अप्रैल 2022
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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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