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चोर

8 अप्रैल 2022

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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा होजाता है, लेकिन मैं आप को यक़ीन दिलाता हूँ कि मेरे साथ मेरे ज़मीर का मुआमला कुछ और ही था। वो हर रोज़ मुझे सरज़निश करता और मैं ख़फ़ीफ़ होके रह जाता।

वाक़ई मैंने बीसियों आदमियों से क़र्ज़ लिया था। मैंने एक रात सोने से पहले बल्कि यूं कहिए कि सोने की नाकाम कोशिश करने से पहले हिसाब लगाया तो क़रीब क़रीब डेढ़ हज़ार रुपय मेरे ज़िम्मे निकले। मैं बहुत परेशान हुवा मैं ने सोचा ये डेढ़ हज़ार रुपय कैसे अदा होंगे। बीस पच्चीस रोज़ाना की आमदन है लेकिन वो मेरी शराब के लिए बमुश्किल काफ़ी होते हैं।

आप यूं समझिए कि हर रोज़ की एक बोतल ...... थर्ड क्लास रम की ...... दाम मुलाहिज़ा हों...... सोला रुपय...... सोला रुपय तो एक तरफ़ रहे, उन के हासिल करने में कम-अज़-कम तीन रुपय टांगे पर सर्फ़ होजाते थे। काम होता नहीं था, बस पेशगी पर गुज़ारा था। लेकिन जब पेशगी देने वाले तंग आगए तो उन्हों ने मेरी शक्ल देखते ही कोई न कोई बहाना तराश लिया या इस से पेशतर कि मैं उन से मिलूं कहीं ग़ायब होगए। आख़िर कब तक वो मुझे पेशगी देते रहते ...... लेकिन मैं मायूस न होता और ख़ुदा पर भरोसा रख कर किसी न किसी हीले से दस पंद्रह रुपय उधार लेने में कामयाब होजाता।

मगर ये सिलसिला कब तक जारी रह सकता था। लोग मेरी इज़्ज़त करते थे मगर अब वो मेरी शक्ल देखते ही भाग जाते थे...... सब को अफ़सोस था कि इतना अच्छा मिकैनिक तबाह हो रहा है।

इस में कोई शक नहीं कि मैं बहुत अच्छा मकैनिक था। मुझे कोई बगड़ी मशीन दे दी जाती तो मैं उस को सरसरी तौर पर देखने के बाद यूं चुटकियों में ठीक करदेता। लेकिन जहां तक मैं समझता हूँ मेरी ये ज़ेहानत सिर्फ़ शराब मिलने की उम्मीद पर क़ायम थी, इस लिए कि मैं पहले तय कर लिया करता था कि अगर काम ठीक होगया तो वो मुझे इतने रुपय अदा कर देंगे जिन से मेरे दो रोज़ की शराब चल सके।

वो लोग ख़ुश थे। मुझे वो तीन रोज़ की शराब के दाम अदा कर देते। इस लिए कि जो काम मैं कर देता वो किसी और से नहीं हो सकता था।

लोग मुझे लूट रहे थे...... मेरी ज़ेहानत ओ ज़कावत पर मेरी इजाज़त से डाके डाल रहे थे......और लुत्फ़ ये है कि मैं समझता था कि मैं उन्हें लूट रहा हूँ...... उन की जेबों पर हाथ साफ़ कर रहा हूँ...... असल में मुझे अपनी सलाहियतों की कोई क़दर न थी। मैं समझता था कि मैकेनिज़्म बिलकुल ऐसी है जैसे खाना खाना या शराब पीना।

मैंने जब भी कोई काम हाथ में लिया मुझे कोफ़्त महसूस नहीं हुई। अलबत्ता इतनी बात ज़रूर थी कि जब शाम के छः बजने लगते तो मेरी तबीअत बे-चैन हो जाती। काम मुकम्मल हो चुका होता मगर मैं एक दो पेच ग़ायब कर देता ताकि दूसरे रोज़ भी आमदन का सिलसिला क़ायम रहे...... ये शराब हराम-ज़ादी कितनी बुरी चीज़ है कि आदमी को बे-ईमान भी बना देती है।

मैं क़रीब क़रीब हर रोज़ काम करता था। मेरी मांग बहुत ज़्यादा थी इस लिए कि मुझ ऐसा कारीगर मुल्क भर में नायाब था...... तार बाजा और राग बोझा वाला हिसाब था। मैं मशीन देखते ही समझ जाता था कि इस मैं क्या क़ुसूर है।

मैं आप से सच्च अर्ज़ करता हूँ। मशीनरी कितनी ही बिगड़ी हुई क्यों न हो उस को ठीक करने में ज़्यादा से ज़्यादा एक हफ़्ता लगना चाहिए। लेकिन अगर उस में नए पुर्ज़ों की ज़रूरत हो और आसानी से दस्तयाब न हो रहे हूँ तो उस के मुतअल्लिक़ कुछ नहीं कहा ज सकता।

मैं बिलानाग़ा शराब पीता था और सोते वक़्त बिलानाग़ा अपने क़र्ज़ के मुतअल्लिक़ सोचता था, जो मुझे मुख़्तलिफ़ आदमियों को अदा करना था। ये एक बहुत बड़ा अज़ाब था। पीने के बावजूद इज़्तिराब के बाइस मुझे नींद न आती...... दिमाग़ में सैंकड़ों स्कीमों आती थीं। बस मेरी ये ख़्वाहिश थी कि कहीं से दस हज़ार रुपय आजाऐं तो मेरी जान में जान आए...... डेढ़ हज़ार रुपया क़र्ज़ का फ़िल-फ़ौर अदा कर दूँ। एक टैक्सी लूँ और हर क़र्ज़-ख़ाह के पास जाकर माज़रत तलब करूं और जेब से रुपय निकाल कर उन को दे दूँ। जो रुपय बाक़ी बचें उन से एक सैकेण्ड हैंड मोटर ख़रीद लूं और शराब पीना छोड़ दूँ।

फिर ये ख़याल आता कि नहीं दस हज़ार से काम नहीं चलेगा...... कम अज़ कम पच्चास हज़ार होने चाहिऐं...... मैं सोचने लगता कि अगर इतने रुपय आजाऐं, जो यक़ीनन आने चाहिऐं तो सब से पहले मैं एक हज़ार नादार लोगों में तक़सीम कर दूँगा...... ऐसे लोगों में जो रुपया लेकर कुछ कारोबार कर सकें।

बाक़ी रहे उनचास हज़ार...... इस रक़म में से मैंने दस हज़ार अपनी बीवी को देने का इरादा किया था। मैंने सोचा था कि फिक्स्ड डिपोज़िट होना चाहिए ...... ग्यारह हज़ार हुए बाक़ी रहे उनतालिस हज़ार...... मेरे लिए बहुत काफ़ी थे। मैंने सोचा ये मेरी ज़्यादती है चुनांचे मैंने बीवी का हिस्सा दोगुना कर दिया, यानी बीस हज़ार...... अब बचे उनत्तीस हज़ार...... मैंने सोचा कि पंद्रह हज़ार अपनी बेवा बहन को दे दूँगा। अब मेरे पास चौदह हज़ार रहे ...... इन में से आप समझीए कि दो हज़ार क़र्ज़ के निकल गए। बाक़ी बचे बारह हज़ार...... एक हज़ार रूपे की अच्छी शराब आनी चाहिए ...... लेकिन मैंने फ़ौरन थू कर दिया और ये सोचा कि पहाड़ पर चला जाऊंगा और कम अज़ कम छः महीने रहूँगा ताकि सेहत दुरुस्त होजाए। शराब के बजाय दूध पिया करूंगा।

बस ऐसे ही ख़यालात में दिन रात गुज़र रहे थे ...... पच्चास हज़ार कहाँ से आयेंगे ये मुझे मालूम नहीं था...... वैसे दो तीन स्कीमों ज़ेहन में थीं। शम्मा दिल्ली के मुअम्मे हल करूं और पहला इनाम हासिल कर लूँ...... डरबी की लॉटरी का टिकट ख़रीद लूँ...... चोरी करूं और बड़ी सफ़ाई से।

मैं फ़ैसला न कर सका कि मुझे कौन सा क़दम उठाना चाहिए। बहरहाल ये तय था कि मुझे पच्चास हज़ार रूपे हासिल करना हैं...... यूँ मिलें या वूँ मिलें।

स्कीमें सोच सोच कर मेरा दिमाग़ चकरा गया...... रात को नींद नहीं आती थी जो बहुत बड़ा अज़ाब था। क़र्ज़-ख़ाह बेचारे तक़ाज़ा नहीं करते थे लेकिन जब उन की शक्ल देखता तो नदामत के मारे पसीना पसीना हो जाता ...... बाअज़ औक़ात तो मेरा सांस रुकने लगता और मेरा जी चाहता कि ख़ुद-कुशी कर लूँ और इस अज़ाब से नजात पाऊँ।

मुझे मालूम नहीं कैसे और कब मैंने तहय्या कर लिया कि चोरी करूंगा...... मुझे ये मालूम नहीं कि मुझे कैसे मालूम हुआ कि ...... मुहल्ले में एक बेवा औरत रहती है जिस के पास बे-अंदाज़ा दौलत है ...... अकेली रहती है...... मैं वहां रात के दो बजे पहुंचा। ये मुझे पहले ही मालूम हो चुका था वो दूसरी मंज़िल पर रहती है...... नीचे पठान का पहरा था मैंने सोचा कोई और तरकीब सोचनी चाहिए ऊपर जाने के लिए ...... में अभी सोच ही रहाथा कि मैंने ख़ुद को इस पार्सी लेडी के फ़्लैट के अंदर पाया...... मेरा ख़याल है कि मैं पाइप के ज़रीये ऊपर चढ़ गया था। टार्च मेरे पास थी ...... उस की रोशनी में मैंने इधर उधर देखा। एक बहुत बड़ा सैफ था। मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी सैफ खोला था न बंद किया था लेकिन उस वक़्त जाने मुझे कहाँ से हिदायत मिली कि मैंने एक मामूली तार से उसे खोल डाला। इन्दर ज़ेवर ही ज़ेवर थे। बहुत बेश-क़ीमत ...... मैंने सब समेटे और मक्के मदीने वाले ज़र्द रूमाल में बांध लिए...... पच्चास साठ हज़ार रुपय का माल होगा...... मैंने कहा ठीक है इतना ही चाहिए था। कि अचानक दूसरे कमरे से एक बुढ़िया पार्सी औरत नमूदार हुई...... उस का चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ था...... मुझे देख कर पोपली सी मुस्कुराहट उस के होंटों पर नमूदार हुई। मैं बहुत हैरान हुआ कि ये माजरा किया है...... मैंने अपनी जेब से भरा हुआ पिस्तौल निकाल कर तान लिया...... उस की पोपली मुस्कुराहट उस के होंटों पर और ज़्यादा फैल गई। उस ने मुझे बड़े प्यार से पूछा। “आप यहां कैसे आए?”

मैंने सीधा सा जवाब दिया। “चोरी करने।”

“ओह!” बुढ़िया के चेहरे की झुर्रियां मुस्कराने लगीं। “तो बैठो...... मेरे घर में तो नक़दी की सूरत में सिर्फ़ डेढ़ रुपया है...... तुम ने ज़ेवर चुराया है लेकिन मुझे अफ़सोस है कि तुम पकड़े जाओगे क्योंकि इन ज़ेवरों को सिर्फ़ कोई बड़ा जौहरी ही ले सकता है...... और हर बड़ा जौहरी इन्हें पहचानता है...... ”

ये कह कर वो कुरसी पर बैठ गई...... मैं बहुत परेशान था कि या इलाही ये सिलसिला किया है। मैंने चोरी की है और बड़ी बी मुस्कुरा मुस्कुरा कर मुझ से बातें कर रही है...... क्यों?

लेकिन फ़ौरन इस क्यों का मतलब समझ में आगया जब माता जी ने आगे बढ़ कर मेरे पिस्तौल की परवा न करते हुए मेरे होंटों का बोसा ले लिया और अपनी बांहें मेरी गर्दन में डाल दीं...... उस वक़्त ख़ुदा की क़सम मेरा जी चाहा कि गठड़ी एक तरफ़ फेंकूं और वहां से भाग जाऊं। मगर वो तस्मा पा औरत निकली उस की गिरिफ़्त इतनी मज़बूत थी कि मैं मुतलक़न हिल जुल न सका...... असल में मेरे हर रग-ओ-रेशे में एक अजीब-ओ-ग़रीब क़िस्म का ख़ौफ़ सराएत कर गया था। मैं उसे डायन समझने लगा था जो मेरा कलेजा निकाल कर खाना चाहती थी।

मेरी ज़िंदगी में किसी औरत का दख़ल नहीं था। मैं ग़ैर शादीशुदा था। मैंने अपनी ज़िंदगी के तीस बरसों में किसी औरत की तरफ़ आँख उठा कर भी नहीं देखा था। मगर पहली रात जब कि मैं चोरी करने के लिए निकला तो मुझे ये फफा कुटनी मिल गई जिस ने मुझ से इश्क़ करना शुरू कर दिया...... आप की जान की क़सम मेरे होश-ओ-हवास ग़ायब होगए...... वो बहुत ही करीह-उल-मंज़र थी मैंने इस से हाथ जोड़ कर कहा। “माता जी मुझे बख़्शो...... ये पड़े हैं आप के ज़ेवर ...... मुझे इजाज़त दीजिए।”

उस ने तहक्कुमाना लहजे में कहा। “तुम नहीं जा सकते...... तुम्हारा पिस्तौल मेरे पास है...... अगर तुम ने ज़रा सी भी जुंबिश की तो डिज़ कर दूँगी...... या टैली फ़ोन करके पुलिस को इत्तिला दे दूँगी कि वो आकर तुम्हें गिरफ़्तार करले......लेकिन जान-ए-मन में ऐसा नहीं करूंगी...... मुझे तुम से मुहब्बत होगई है...... मैं अभी तक कुंवारी रही हूँ...... अब तुम यहां से नहीं जा सकते।”

ये सुन कर क़रीब था कि मैं बेहोश होजाऊं कि टन टन शुरू हुई। दूर कोई क्लाक सुबह के पाँच बजने की इत्तिला दे रहा था। मैंने बड़ी बी की ठोढ़ी पकड़ी और उस के मुरझाए हुए होंटों का बोसा लेकर झूट बोलते हुए कहा। “मैंने अपनी ज़िंदगी में सैंकड़ों औरतें देखी हैं लेकिन ख़ुदा वाहिद शाहिद है के तुम ऐसी औरत से मेरा कभी वास्ता नहीं पड़ा। तुम किसी भी मर्द के लिए नामित-ए-ग़ैर-मुतरक़्क़बा हो। मुझे अफ़सोस है कि मैंने अपनी ज़िंदगी की पहली चोरी तुम्हारे मकान से शुरू की। ये ज़ेवर पड़े हैं। में कल आऊँगा बशर्ते कि तुम वाअदा करो कि मकान में और कोई नहीं होगा।”

बुढ़िया ये सुन कर बहुत ख़ुश हुई। “ज़रूर आओ...... तुम अगर चाहोगे तो घर में एक मच्छर तक भी नहीं होगा जो तुम्हारे कानों को तकलीफ़ दे...... मुझे अफ़सोस है कि घर में सिर्फ़ एक रुपया और आठ आने थे...... कल तुम आओगे तो में तुम्हारे लिए बीस पच्चीस हज़ार बंक से निकलवा लूंगी...... ये लो अपना पिस्तौल।”

मैंने अपना पिस्तौल लिया और वहां से दुम दबा कर भागा...... पहला वार ख़ाली गया था...... मैंने सोचा कहीं और कोशिश करनी चाहिए। क़र्ज़ अदा करने हैं और जो मैंने प्लान बनाया है उस की तकमील भी होना चाहिए।

चुनांचे मैंने एक जगह और कोशिश की। सर्दीयों के दिन थे सुबह के छः बजने वाले थे...... ये ऐसा वक़्त होता है जब सब गहरी नींद सौ रहे होते हैं...... मुझे एक मकान का पता था कि इस का जो मालिक है बड़ा मालदार है...... बहुत कंजूस है...... अपना रुपया बैंक में नहीं रखता...... घर में रखता है। मैंने सोचा इस के हाँ चलना चाहिए।

मैं वहां किन मुश्किलों से अंदर दाख़िल हुआ में बयान नहीं कर सकता...... बहरहाल पहुंच गया। साहिब ख़ाना जो माशा-अल्लाह जवान थे। सो रहे थे। मैंने उन के सिरहाने से चाबियां निकालीं और अलमारियां खोलना शुरू कर दीं।

एक अलमारी में काग़ज़ात थे और कुछ फ़्रैंच लेदर। मेरी समझ में न आया कि ये शख़्स जो कुँवारा है फ़्रैंच लेदर कहाँ इस्तिमाल करता है...... दूसरी अलमारी में कपड़े थे। तीसरी बिलकुल ख़ाली थी मालूम नहीं इस में ताला क्यों पड़ा हुआ था।

और कोई अलमारी नहीं थी। मैंने तमाम मकान की तलाशी ली लेकिन मुझे एक पैसा भी नज़र न आया...... मैंने सोचा उस शख़्स ने ज़रूर अपनी दौलत कहीं दबा रखी होगी......चुनांचे मैंने इस के सीने पर भरा हुआ पिस्तौल रख कर उसे जगाया।

वो ऐसा चौंका और बिदका कि मेरा पिस्तौल फ़र्श पर जा पड़ा। मैंने एक दम पसोल उठाया और उस से कहा। “मैं चोर हूँ...... यहां चोरी करने आया हूँ...... लेकिन तुम्हारी तीन अलमारियों से मुझे एक दमड़ी भी नहीं मिली...... हालाँकि मैंने सुना था कि तुम बड़े मालदार आदमी हो।”

वो शख़्स जिस का नाम मुझे अब याद नहीं मुस्कुराया...... अंगड़ाई लेकर उठा और मुझे से कहने लगा। “यार तुम चोर हो तो तुम ने मुझे पहले इत्तिला दी होती...... मुझे चोरों से बहुत प्यार है ...... यहां जो भी आता है वो ख़ुद को बड़ा शरीफ़ आदमी कहता है हालाँकि वो अव़्वल दर्जे का काला चोर होता है ...... मगर तुम चोर हो...... तुम ने अपने आप को छुपाया नहीं है ...... मैं तुम से मिल कर बहुत ख़ुश हुआ हूँ।”

ये कह कर उस ने मुझे से हाथ मिलाया। उस के बाद रेफ्रीजरेटर खोला। मैं समझा शायद मेरी तवाज़ो शर्बत वग़ैरा से करेगा...... लेकिन उस ने मुझे बुलाया और खुले हुए रेफ्रीजरेटर के पास ले जाकर कहा। “दोस्त मैं अपना सारा रुपया इस में रखता हूँ...... ये संदूकची देखते हो......इस में क़रीब क़रीब एक लाख रुपया पड़ा है...... तुम्हें कितना चाहिए?”

उस ने संदूकची बाहर निकाली जो यख़-बस्ता थी। उसे खोला। अन्दर सबज़ रंग के नोटों की गड्डियां पड़ी थीं। एक गड्डी निकाल कर उस ने मेरे हाथ में थमादी और कहा। बस इतने काफ़ी होंगे...... दस हज़ार हैं।

मेरी समझ में न आया कि उसे क्या जवाब दूँ। मैं तो चोरी करने आया था...... मैंने गड्डी उस को वापस दी और कहा। “साहिब! मुझे कुछ नहीं चाहिए...... मुझे माफ़ी दीजिए...... फिर कभी हाज़िर हूँगा।”

मैं वहां से आप समझिए कि दुम दबा कर भागा घर पहुंचा तो सूरज निकल चुका था...... मैंने सोचा कि चोरी का इरादा तर्क कर देना चाहिए...... दो जगह कोशिश की मगर कामयाब न हुआ...... दूसरी रात को कोशिश करता तो कामयाबी यक़ीनी नहीं थी...... लेकिन क़र्ज़ बदस्तूर अपनी जगह पर मौजूद था जो मुझे बहुत तंग कर रहा था ...... हलक़ में यूं समझिए कि एक फांस सी अटक गई थी...... मैंने बिल-आख़िर ये इरादा करलिया कि जब अच्छी तरह सो चुकूंगा तो उठ कर ख़ुदकुशी कर लूँगा।

सो रहा था कि दरवाज़े पर दस्तक हुई ...... मैं उठा...... दरवाज़ा खोला...... एक बुज़ुर्ग आदमी खड़े थे। मैंने उन को आदाब अर्ज़ किया...... उन्हों ने मुझ से फ़रमाया। “लिफ़ाफ़ा देना था इस लिए आप को तकलीफ़ दी...... माफ़ फ़रमाएगा, आप सो रहे थे।”

मैंने उस से लिफ़ाफ़ा लिया...... वो सलाम कर के चले गए ...... मैंने दरवाज़ बंद किया ......लिफ़ाफ़ा काफ़ी वज़नी था...... मैंने उसे खोला और देखा कि सौ सौ रुपय के बे-शुमार नोट हैं...... गिने तो पच्चास हज़ार निकले......एक मुख़्तसर सा रूक़आ था, जिस में लिखा था कि “आप के ये रुपय मुझे बहुत देर पहले अदा करने थे...... अफ़सोस है कि मैं अब अदा करने के काबिल हुआ हूँ”

मैंने बहुत ग़ौर किया कि ये साहब कौन हो सकते हैं जिन्हों ने मुझ से क़र्ज़ लिया...... सोचते सोचते मैंने आख़िर सोचा कि हो सकता है किसी ने मुझ से क़र्ज़ लिया हो जो मुझे याद न रहा हो।

बीस हज़ार अपनी बीवी को...... पंद्रह हज़ार अपनी बेवा बहन को...... दो हज़ार क़र्ज़ के ...... बाक़ी बचे तेराह हज़ार ...... एक हज़ार में अच्छी शराब के लिए रख लिए ...... पहाड़ पर जाने और दूध पीने का ख़याल मैंने छोड़ दिया।

दरवाज़े पर फिर दस्तक हुई...... उठ कर बाहर गया। दरोज़ा खोला तो मेरा एक क़र्ज़-ख़ाह खड़ा था। उस ने मुझ से पाँच सौ रुपय लेना थे। मैं लपक कर अंदर गया...... तकिए के नीचे नोटों का लिफ़ाफ़ा देखा मगर वहां कुछ मौजूद ही नहीं था।

(2002)

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ
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मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।
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पेश-बंदी

7 अप्रैल 2022
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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।  दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन क

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निगरानी में

7 अप्रैल 2022
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'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।  रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा, 

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सफ़ाई पसंदी

7 अप्रैल 2022
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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।  खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,  “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”  एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया

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करामात

7 अप्रैल 2022
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लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।  लोग डरके मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे।  कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पा कर अपने से अलाहिदा कर दिया त

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आँखों पर चर्बी

7 अप्रैल 2022
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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…  पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्जिद में काटे हैं।  वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।  लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही

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इस्लाह

7 अप्रैल 2022
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“कौन हो तुम?”  “तुम कौन हो?”  “हरहर महादेव... हरहर महादेव?”  “हरहर महादेव?”  “सुबूत क्या है?”  “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”  “ये कोई सुबूत नहीं?”  “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 

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हैवानियत

7 अप्रैल 2022
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बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी, उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए।

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जेली

7 अप्रैल 2022
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सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…  सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।  सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई।

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सॉरी

7 अप्रैल 2022
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छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।  इज़ार-बंद कट गया।  छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला,  “चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।” 

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तआवुन

7 अप्रैल 2022
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चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब क

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पठानिस्तान

7 अप्रैल 2022
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“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”  “मैं... मैं...”  “ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”  “मुस्लिमीन।”  “ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”  “मोहम्मद ख़ान।”  “टीक ऐ...जाओ।” 

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इश्तिराकियत

7 अप्रैल 2022
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वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।  एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा, “देखो यार किस मज़े से इतना माल अक

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मज़दूरी

7 अप्रैल 2022
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लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...  'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा, दुनिया में कौ

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सफ़ेद झूठ

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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एक अश्क आलूद अपील

7 अप्रैल 2022
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अमृतसर की तंग-गलियों और उसके ग़लीज़ बाज़ारों से भाग कर जब मैं बंबई पहुंचा तो मेरा ख़्याल था कि इस ख़ूबसूरत और वसीअ शहर की फ़िज़ा फ़िरका-वाराना झगड़ों से पाक होगी मगर मेरा ये ख़्याल ग़लत साबित हुआ। चंद महीनो

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अगर

7 अप्रैल 2022
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’अगर' की बेशुमार ऐसी शक्लें हो सकती हैं क्योंकि अब तक जो कुछ हुआ है इस को हर रंग में देखा जा सकता है। 'अगर' के मैदान में ऐसे कई घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हकीम सुक़रात इस मार-धाड़ में

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मुझे शिकायत है

7 अप्रैल 2022
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मुझे शिकायत है उन सरमायादारों से जो एक पर्चा रुपया कमाने के लिए जारी करते हैं और उसके एडिटर को सिर्फ पच्चीस या तीस रुपये माहवार तनख़्वाह देते हैं। ऐसे सरमाया-दार ख़ुद तो बड़े आराम की ज़िंदगी बसर करते है

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मुझे कहना है

7 अप्रैल 2022
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मैं एक ऐसा इन्सान हूँ जो ऐसे रिसालों और ऐसी किताबों में लिखता हूँ और इसलिए लिखता हूँ कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं जो कुछ देखता हूँ, जिस नज़र और जिस ज़ाविए से देखता हूँ, वही नज़र, वही ज़ाविया मैं दूसरों

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तहदीद-ए-असलहा

7 अप्रैल 2022
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तहदीद-ए-असलहा के मुताल्लिक़ आपने बीसियों मर्तबा अख़बारों में पढ़ा होगा मगर सच कहिए कि आपने इसके मुताल्लिक़ क्या समझा? लेकिन मैं आपकी अक़ल-ओ-दानिश का इम्तिहान लेना नहीं चाहता। मैंने इसके मुताल्लिक़ जो कुछ

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सुरमा

8 अप्रैल 2022
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फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी म

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हुस्न कि तख़लीक़

8 अप्रैल 2022
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कॉलिज में शाहिदा हसीन-तरीन लड़की थी। उस को अपने हुस्न का एहसास था। इसी लिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़्लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। Gस के ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था

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एक ख़त

8 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया। और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ

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क़ादिरा क़साई

8 अप्रैल 2022
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ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान ने उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने

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किताब का ख़ुलासा

8 अप्रैल 2022
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सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर के वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मश

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खुद फ़रेब

8 अप्रैल 2022
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हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी छोटी उंगलीयों के नाख़ुन का

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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गुस्लख़ाना

8 अप्रैल 2022
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सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर दिया गया है। फ़र्श वग़ैरा

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चोर

8 अप्रैल 2022
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मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा

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टेढ़ी लकीर

8 अप्रैल 2022
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अगर सड़क सीधी हो......... बिलकुल सीधी तो इस पर उस के क़दम मनों भारी हो जाते थे। वो कहा करता था। ये ज़िंदगी के ख़िलाफ़ है। जो पेच दर पेच रास्तों से भरी है। जब हम दोनों बाहर सैर को निकलते तो इस दौरान में वो

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डाक्टर शिरोडकर

8 अप्रैल 2022
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बंबई में डाक्टर शिरोडकर का बहुत नाम था। इस लिए कि औरतों के अमराज़ का बेहतरीन मुआलिज था। उस के हाथ में शिफ़ा थी। उस का शिफ़ाख़ाना बहुत बड़ा था एक आलीशान इमारत की दो मंज़िलों में जिन में कई कमरे थे निचली मंज़

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ताँगे वाले का भाई

8 अप्रैल 2022
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सय्यद ग़ुलाम मुर्तज़ा जीलानी मेरे दोस्त हैं। मेरे हाँ अक्सर आते हैं घंटों बैठे रहते हैं। काफ़ी पढ़े लिखे हैं उन से मैंने एक रोज़ कहा! “शाह साहब! आप अपनी ज़िंदगी का कोई दिलचस्प वाक़िया तो सनाईए!” शाह साहब

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दूदा पहलवान

8 अप्रैल 2022
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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का

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नफ़सियात शनास

8 अप्रैल 2022
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आज मैं आप को अपनी एक पुर-लुत्फ़ हिमाक़त का क़िस्सा सुनाता हूँ। करफियों के दिन थे। यानी उस ज़माने में जब बंबई में फ़िर्का-वाराना फ़साद शुरू हो चुके थे। हर रोज़ सुबह सवेरे जब अख़बार आता तो मालूम होता कि मुतअ

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बारिदा शिमाली

8 अप्रैल 2022
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दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं। दोनों गॉगल्स ने अपनी किताब

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भंगन

8 अप्रैल 2022
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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता ह

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शेर आया शेर आया दौड़ना

9 अप्रैल 2022
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ऊंचे टीले पर गडरिए का लड़का खड़ा, दूर घने जंगलों की तरफ़ मुँह किए चिल्ला रहा था। “शेर आया शेर आया दौड़ना।” बहुत देर तक वो अपना गला फाड़ता रहा। उस की जवाँ-बुलंद आवाज़ बहुत देर तक फ़िज़ाओं में गूंजती रही। जब च

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शलजम

9 अप्रैल 2022
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“खाना भिजवा दो मेरा। बहुत भूक लग रही है” “तीन बज चुके हैं इस वक़्त आप को खाना कहाँ मिलेगा?” “तीन बज चुके हैं तो क्या हुआ। खाना तो बहरहाल मिलना ही चाहिए। आख़िर मेरा हिस्सा भी तो इस घर में किसी क़दर है।

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बदसूरती

20 अप्रैल 2022
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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्

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तमाशा

20 अप्रैल 2022
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दो तीन रोज़ से तय्यारे स्याह उक़ाबों की तरह पर फुलाए ख़ामोश फ़िज़ा में मंडला रहे थे। जैसे वो किसी शिकार की जुस्तुजू में हों सुर्ख़ आंधियां वक़तन फ़वक़तन किसी आने वाली ख़ूनी हादिसे का पैग़ाम ला रही थीं। सुनसान

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आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

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