मानव मस्तिष्क का कोई सानी नहीं है। इस छोटे से अवयव में न जाने क्या क्या रहस्य छिपे रहते हैं, ईश्वर के सिवा किसी ओर को इसका ज्ञान नहीं रहता। इसी के बल पर वैज्ञानिकों ने विश्व में अनेक चमत्कार किए हैं। उन्होंने मनुष्य की आवश्यकता के लिए सभी प्रकार के सुख-सुविधा के साधन तैयार किए है। उनके इसी बूते पर मनुष्य ने आज दूरियों को समेटकर, इस दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर लिया है।
मनुष्य ने चाँद-सितारों तक अपनी पैठ बढ़ा ली है। इस कारण अनेक नक्षत्रों पर उसका आवागमन बाधारहित होता जा रहा है। धरती, आकाश, समुद्र आदि कोई स्थान ब्रह्माण्ड में ऐसा नहीं है, जहाँ आज मानव की पैठ नहीं है। आज वह सिर उठाकर निर्बाध रूप से इसकी घोषणा कर सकने में समर्थ है। आज वैज्ञानिक निरन्तर आगे ही आगे बढ़ते जा रहे हैं। उनका पीछे लौटना निश्चित ही असम्भव है।
मनुष्य के मस्तिष्क में तीन प्रकार की तरंगे कार्य करती हैं। पहली तरह की तरंगे उस समय अपना काम करती हैं या वे उस समय चलती हैं जब मनुष्य सोच विचार में लगा रहता है। उसके विचारों की उठा-पटक अनवरत चलती रहती है। सामन्यतः मनुष्य खाली बैठ नहीं सकता, जब वह कोई कार्य नहीं कर रहा होता तब भी उसके मस्तिष्क में विचार मन्थन की प्रक्रिया चल रही होती है।
इस समय वह अपनी योजनाओं को बनाता है, उन्हें क्रियान्वित करके सफलता के सोपान पर चढ़ता है। फिर अपना सिर गर्व से ऊँचा उठाकर आकाश को छूने का दम्भ भरता है। जो मनुष्य अवसर चूक जाता है, वह दुनिया की रेस में पिछड़ जाता है। लोग उसे पीछे धकेलकर आगे बढ़ जाते हैं और पीछे मुड़कर उसकी ओर देखने का कष्ट भी नहीं करते। वह अलग-थलग पड़ा व्यक्ति फिर धीरे-धीरे दुनिया में गुमनामी के अंधेरों में खोने लगता है।
दूसरी प्रकार की अल्फा तरंगे कहलाती हैं। वे तब चलती हैं जब हम शान्त होते हैं, निद्रा के आगोश में होते हैं और स्वप्न ले रहे होते हैं। उस समय मनुष्य अच्छा या बुरा बहुत कुछ देख रहा होता है। कभी जागने के बाद भी उसे स्वप्न की सारी बातें याद रहती हैं, तो कभी आंशिक। कभी कभी दिमाग पर जोर देने के उपरान्त भी उसे कुछ याद नहीं आ पाता।
कभी-कभार मनुष्य को इतने डरावने और दिल दहला देने वाले स्वप्न आते हैं कि वह कई दिनों तक परेशान रहता है। कभी-कभी वह स्वप्न में अपने प्रियजनों के सानिध्य का आनन्द उठता है। यदा कदा अपनी समस्याओं का समाधान भी उसे स्वप्न के माध्यम से मिल जाता है जिसके लिए वह जागते हुए वह माथापच्ची कर रहा होता है तथा निराश हो रहा होता है। कई लोगों ने स्वप्न में मिले हल के कारण चमत्कार कर दिए।
तीसरी तरह की तरंगें तब चलती हैं जब हम गहरी निद्रा में सो रहे होते हैं। वहाँ पर कोई स्वप्न नहीं होता। साकार और निराकार के पार का कुछ वहाँ पर होता है। चेतन और अवचेतन के पार जो कुछ भी होता है उसे बुद्धत्व कहते हैं। ये तरंगें उस समय साकार और निराकार अथवा हृदय और मष्तिष्क के बीच में कहीं पर स्थित होती हैं।
यह वही समय होता है जब साधक इस स्थिति को साधकर उस ईश्वर के साथ एकाकार हो जाने के क्रम में एक कदम और आगे बढ़ जाता है। मनुष्य की यह उच्च स्थिति कहलाती है। इसे पा लेना हर किसी मनुष्य के वश की बात नहीं होती। बहुत ही बहुत ही भाग्यशाली होते हैं वे लोग जो इस अवस्था तक पहुँच पाते हैं।
इस अवस्था को पाना बच्चों का खेल नहीं है अपितु बहुत कठिन है। दुनिया के आकर्षण इतने हैं कि वे मनुष्य को वहाँ तक पहुँचाने से पहले ही भ्रमित कर देते हैं और वह अपने लक्ष्य मोक्ष से भटक जाता है। फिर चौरासी लाख योनियों के फेर में फंसकर आवागमन के चक्र के जाल में उलझ जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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