बारम्बार दुखों और कष्टों के आने पर भी जो मनुष्य गिरगिट की तरह अपना रंग नहीं बदलता अर्थात अपने अपने जीवन मूल्यों का त्याग नहीं करता, ऐसे ही खरे सोने जैसे मनुष्य का समाज में मूल्य बढ़ता है। लोग उसे महत्त्व देते हैं, उसका सम्मान भी करते हैं। ऐसे उस महात्मा मनुष्य के सद् गुणों के उदाहरण लोग समय-समय पर भावी पीढ़ियों को देते रहते हैं।
सब लोग जानते हैं कि सोने को आग में तपाने पर ही वह खोट से रहित होकर कुन्दन बनता है। जिसे देखकर सबकी ही आँखें चुन्दिया जाती हैं। इसी प्रकार मनुष्य भी दुखों और कष्टों की अग्नि में तपकर ही कुन्दन बनता है। जब मनुष्य उन विपरीत परिस्थितियों में रहकर सकारात्मक रवैया अपनाता है तभी उसकी वास्तविक पहचान बनती है। उसका नाम समाज में सम्मान से लिया जाता है।
यहाँ हम दूध का उदाहरण लेते हैं। हम दूध को अग्नि पर उबालते हैं। फिर उसे जब ठण्डा करके जमा देते हैं, तभी वह दही बनता है। फिर दही को मथते हैं अर्थात उसके उस कठिन प्रक्रिया से गुजरने पर मक्खन बनता है। फिर मक्खन को आग पर पकाने से घी बनता है। यानी हर स्वरूप में ढलने के लिए दूध को सदैव एक असहनीय पीड़ा से गुजरना पड़ता है। तभी वह अपने हर रूप में और अधिक मूल्यवान बनता जाता है।
इन सभी पदार्थों को समय-समय पर हम बाजार से खरीदते रहते हैं। बाजार में जाकर जब खरीदते हैं तो दूध से महँगा दही बिकता है, दही से महँगा मक्खन बेचा जाता है और मक्खन से कहीं अधिक महँगा घी मिलता है। दूध की सबसे मजेदार बात यह है कि इन सभी रूपों में उसका रंग एक ही रहता है। यानी वह है सफेद रंग। इस दूध की यह विशेषता होती है कि वह किसी भी रूप में आ जाए उसका रंग उस स्थिति में परिवर्तित नहीं होता।
इस उदाहरण को यहाँ देने का मात्र यही तात्पर्य है कि जीवन में कुछ भी पाने के लिए मनुष्य को सदैव उसका मूल्य चुकाना पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहें तो कोई भी वस्तु इस संसार में यूँ ही नहीं मिल जाती। मनचाही वस्तु प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अथक परिश्रम करना पड़ता है, अपना सुख-चैन होम करना पड़ता है। तभी वह अपने जीवनकाल में कुछ प्राप्त कर सकने में समर्थ होता है।
सकारात्मक विचार रखते हुए सन्मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति ही वास्तव में इस संसार में अपना नाम कमाता है। जो मनुष्य परेशानियों के आने पर भी घबराता नहीं है और न ही अपनी राह से भटकता है वही धैर्यवान महापुरुष कहलाता है। उसके पीछे चलने के लिए बहुत से लोग स्वेच्छा से तैयार हो जाते हैं। वह देश, धर्म और समाज का मार्गदर्शन करता है। उसका साथ पाना हर व्यक्ति के लिए सौभाग्य की बात होती है। उसका नाम इतिहास में युगों तक अमर हो जाता है।
वैसे तो कोई भी विवेकी मनुष्य अपने संस्कारों का परित्याग करके कुमार्ग नहीं चलता। परन्तु फिर भी कुछ लोग ऐसे होते हैं जो परेशानियों से घबराकर सन्मार्ग को छोड़कर कुमार्गगामी बन जाते हैं। वे शार्टकट अपना लेते हैं जो पहले तो बहुत आकर्षक होता हैं और बाद में और अधिक कष्टप्रद हो जाता है। कुछ दूर चलने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हो जाता है। परन्तु उस समय चाहकर भी वे उस रास्ते को छोड़ नहीं पाते। जब चिड़िया चुग गई खेत वाली स्थिति हो जाती है तब पश्चाताप करते रहने से भी कोई हल नहीं निकल पाता।
वास्तव में मनुष्य वही है जो अपने समक्ष आने वाली चुनौतियों का डटकर सामना करे। उनसे कभी हार न माने। उसे सदा अपने विवेक, अपने बाहुबल और अपनी कर्मठता पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। साथ में उसे यह भी मानना चाहिए कि हर स्थिति में ईश्वर उसके साथ खड़ा है। वह कभी उसका अनिष्ट नहीं होने देगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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