आवश्यकता पड़ने पर मनुष्य को अपने बराबर वालों के साथ ही पराक्रम का प्रदर्शन करना चाहिए। अपने से अधिक शक्तिशाली से भिड़ने पर मुँह की खानी पड़ जाती है। वह तो हड्डी-पसली एक कर सकता है। इसलिए ऐसी परिस्थिति आने पर उससे सादर क्षमायाचना कर लेनी चाहिए। अपने से कमजोर व्यक्ति पर जोर आजमाइश नहीं करनी चाहिए अपितु उस पर दया दिखानी चाहिए यानी हर प्रकार से उसकी सहायता या रक्षा करनी चाहिए।
इसी भाव को निम्नलिखित श्लोक स्पष्ट कर रहा है-
तृणानि नोन्मूलयति प्रभञ्जनो
मृदूनि नीचैः प्रणतानि सर्वतः।
स्वभाव एवोन्नतचेतसामयं
महान्महत्स्वेव करोति विक्रम॥
अर्थात जिस प्रकार से प्रचण्ड आँधी-तूफ़ान बड़े-बड़े वृक्षों को जड़ से उखाड़ देता है किन्तु छोटे से तृण को नहीं उखाड़ता उसी प्रकार से सच्चे पराक्रमी मनुष्य समय आने पर अपने बराबरी के लोगों पर ही पराक्रम का प्रदर्शन करते हैं और निर्बलों पर दया दिखाते हैं।
इस श्लोक में उदाहरण दिया है कि जब प्रचण्ड आँधी चलती है तो वह बड़े-बड़े वृक्षों को समूल उखाड़ फैंकती है यानी जो वृक्ष तनकर खड़े रहते हैं, उसका सामना करने का दम्भ भरते हैं, उन्हीं को वह नष्ट करती है। इसके विपरीत वह छोटे-छोटे तिनकों को कुछ नहीं कहती। उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाती बल्कि उन्हें संरक्षण देती है।
हम देखते हैं कि संसार में समर्थ, सामान्य और अभावग्रस्त लोग रहते हैं। समर्थता विद्या, धन, बल आदि किसी भी रूप में हो सकती है। सामान्य लोगों को स्वयं को कभी ऐसा प्रदर्शित नहीं करना चाहिए कि वे सामर्थ्यवान लोगों की तरह हैं। विद्वान न होते हुए जो विद्वत सभा में अपनी तथाकथित योग्यता का दम्भ भरता है, उसे औंधे मुँह गिरना पड़ता है। धन न होते हुए जो धनवानों के समान दिखने का प्रयास करता है, शीघ्र ही उसकी पोल खुल जाती है। यहाँ भी उसे मुँह की खानी पड़ती है। अपने से अधिक शक्तिशाली को ललकारने पर अपनी हड्डियों को तुड़वाने की नौबत आ जाती है।
विद्या, धन, बल आदि में अपने सामान लोगों के समक्ष किरकिरी नहीं होती। सभी के समान होने पर प्रदर्शन करने की आवश्यकता नहीं होती। अपने सामान आईक्यू वालों से चर्चा-वार्ता सफल होती है। धन में प्रायः समान अवस्था वाले एक-दूसरे को भली भाँति समझ सकते हैं। इसी प्रकार समान बल वाले जब टकराएँगे तो तराजू की तरह पलड़ा ऊपर-नीचे होता रहेगा या बराबरी पर रहेगा।
विद्या, धन, बल आदि में अपने से कम लोगों को प्यार से रखना चाहिए। उन्हें संरक्षण देने चाहिए। उनकी समय-समय पर सहायता करनी चाहिए। समाज में अपना स्थान बनाना हो तो सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों का सहारा बनने का प्रयास करना चाहिए। ये लोग आपके किए हुए उपकार का अहसान मानेंगे। समय आने पर साथ देने से कभी पीछे नहीं हटेंगे। ये लोग वास्तव में सच्चे सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
एक कहावत है- 'तालाब में रहकर मगर से बैर' इसका अर्थ यही है अपने से बलवान का विरोध नहीं करना चाहिए। इसका सीधा-सा अर्थ यही है कि अपने बराबर के लोगों से सम्बन्ध रखना चाहिए। अपने से कमतर लोगों के सहायक बनकर उनका उत्थान करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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