अयोग्य व्यक्ति को यदि उसकी योग्यता से बढ़कर सम्मानित पद मिल जाए तो उसके पाँव जमीन पर नहीं पड़ते। वह सीधी चाल नहीं चलता बल्कि टेढ़ा-टेढ़ा चलता है, यह वास्तविकता है। इंसानी प्रकृति ही ऐसी है कि उसमें अहंकार शीघ्र आता है।
इसी प्रकार किसी ऐसे व्यक्ति की सौभाग्य से लाटरी लग जाए जिसके पास दो जून खाने का भी जुगाड़ नहीं है तो ऐसे उस मनुष्य की मानसिक स्थिति की जरा कल्पना कीजिए। बताइए उसके पैर जमीन पर क्यों पड़ने लगें? वह तो अपने आप को किसी भी सूरत में राजा-महाराजा से कम नहीं समझेगा।
इसी प्रकार किसी नीचे पद वाले को ऊँचे पद पर बिठा दिया जाए तो वह हर किसी से अकड़कर बात करेगा। अपनी तरक्की के अहम में बद् दिमाग हो जाएगा। सभी को अपना गुलाम बनाने का प्रयत्न करेगा।
मुझे चौसर के खेल का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं पर कहते हैं उसमें भी ऐसा ही होता है। जब प्यादा वजीर बन जाता है तब वह सीधी चाल न चलकर वह टेढ़ा-टेढ़ा चलता है। उसी प्रकार यदि ओछा व्यक्ति भी भाग्य से उच्च पद पाने पर बहुत ही इतराने लगता है। इसी बात को रहीम जी ने इस प्रकार कहा है-
जो रहीम ओछौ बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो-टेढ़ो जाय॥
यहाँ हम कछुए और खरगोश का उदाहरण भी ले सकते हैं। कछुआ खरगोश की बेवकूफी के कारण रेस जीत गया। ऐसे ही अन्य बहुत से लोग होंगे जो सौभाग्य से दूसरों की मूर्खता के कारण योग्यता न होने पर भी सफल हो जाते हैं और फिर उनके पैर जमीन पर नहीं पड़ते। वे आकाश में ऊँची उड़ान भरने लगते हैं।
जायज-नाजायज तरीकों से धन कमाने वाले चोर, डाकू, स्मगलर, भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोर आदि की भी यही स्थिति होती है। अनाप-शनाप तरीकों से कमाया धन उनके सिर पर चढ़कर बोलने लगता है। जैसे सिरसाम(दिमागी बुखार) हो जाने पर मनुष्य उल्टा-सीधा बोलने लगता है। वैसा ही व्यवहार ये लोग दूसरों से करने लगते हैं।
ऐसे लोग अपनी पुरानी हैसीयत की किसी को हवा भी नहीं लगने देना चाहते। ये अहंकारी लोग स्वभाव से क्रूर बन जाते हैं। इसलिए स्वार्थी हो जाते हैं। हर किसी का अपमान करने में अथवा पंगा लेने में खुशी महसूस करते हैं। मैं, मेरे बच्चे और मेरा परिवार बस, इससे आगे की नहीं सोचते। सारी दुनिया को भी आग लगा देने में उन्हें कोई परहेज नहीं होता। किसी की भी जान की कीमत उनके लिए कुछ नहीं होती। वे सारी दुनिया के लोगों को कीड़े-मकोड़ों की तरह समझते हैं।
ऐसे लोगों को अपने पद अथवा धन का इतना नशा हो जाता है कि खुद को भगवान समझने लगते हैं। ये भगवान को अपने से हीन समझने की भूल कर बैठते हैं। वास्तव में इन्हें मालिक का धन्यवाद करना चाहिए जिसने उन्हें उनकी सामर्थ्य से कई गुणा अधिक दिया है।
मेरी बात का चाहे आप विश्वास न करें। अपने आसपास आपको बहुत से ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाएँगे। वैसे समाचार पत्रों, टीवी और सोशल मीडिया पइर भी गाहे-बगाहे ऐसे लोगों की चर्चाएँ आ जाती हैं।
ऐसे लोगों को हम सुधार तो नहीं सकते परन्तु उनसे किनारा अवश्य कर सकते हैं। अपनी इज्जत अपने हाथ होती है, इसलिए सावधानी आवश्यक है।
चन्द्र प्रभा सूद
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