जीवन का सत्य है कि एक दिन जीव को इस असार संसार से विदा लेनी होती है। शरीर से जब प्राण निकल जाते हैं तो उस समय जीव मृत कहलाता है और उसका यह भौतिक शरीर प्राण न रहने के कारण शव कहलाता है। भरतीय संस्कृति में जीव के जन्म के पूर्व से लेकर मृत्यु के पश्चात तक सोलह संस्कारों का विधान है। मृतक देह का दाहकर्म संस्कार इन्हीं संस्कारों का एक भाग है। यह दायित्व बन्धु-बान्धवों को बिना किसी पूर्वाग्रह या हील-हुज्जत के निभाना चाहिए।
इस लेख में हम किसी कर्मकाण्ड की चर्चा न करके विषय से सम्बन्धित मान्यताओं पर प्रकाश डालेंगे। भारतीय संस्कृति के अनुसार शवयात्रा को देखकर उसे प्रणाम करना चाहिए। प्रायः देखा होगा कि मार्ग में आने वाली शवयात्रा को देखकर लोग अपना सिर झुकाकर प्रणाम करते हैं और ईश्वर का स्मरण करते हुए उसकी सद्गति के लिए प्रार्थना करते हैं।
जब भी कोई शवयात्रा निकलती है तो लोग 'राम नाम सत्य है' का उच्चारण करते हुए चलते हैं। इसका अर्थ यह होता है कि केवल ईश्वर का नाम ही सत्य है, वही परम शाश्वत है। इसके अतिरिक्त शेष सब नश्वर है, असत्य है। इसलिए मनुष्य को सदा ईश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए। इस नश्वर संसार में भौतिक वस्तुओं के पीछे भागने के स्थान पर परम सत्य प्रभु की शरण में जाना चाहिए।
मान्यता यह भी है कि जिस मृतात्मा ने शरीर छोड़ा है, वह प्रणाम करने वाले व्यक्ति के सभी कष्टों, दुखों और अशुभ लक्षणों को अपने साथ ले जाती है। मान्यता यह भी है कि शव यात्रा को देखने वाले व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। उसके रुके काम पूर्ण होने की सम्भावना बन जाती है। उसके जीवन से दुख भी दूर होते हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण के अलावा ज्योतिष की भाषा में स्वप्न में शव या शवयात्रा को देखना शुभ माना जाता है। कोई व्यक्ति सपने में किसी शव को देखता है तो इसका अर्थ शुभ होता हैं। यह स्वप्न धन लाभ की ओर संकेत करता हैं। ऐसे में स्वप्न में शव देखने वाले व्यक्ति को कहीं से भी धनलाभ होता हैं, उसे ढेर सारा पैसा शीघ्र मिलता हैं। स्वप्न में मनुष्य स्वयं की शवयात्रा के साथ चल रहा हो तो उसकी भाग्यवृद्धि होगी ऐसा माना जाता है। इसी तरह स्वयं अर्थी को ले जाते हुए देखने पर बिना मेहनत के फल मिलने का संकेत होता हैं। एवंविध सपने में अर्थी को देखने व शव को देखने का मतलब दोनों ही अवस्थाओं में शुभ होता है। एक स्वप्न धन देता है और दूसरा स्वास्थ्य प्रदान करता हैं।
यदि स्वप्न में किसी शव से बात की जाए तो ज्योतिषीय गणना के अनुसार वह अशुभ होता है। इसका अर्थ होता है कि कहीं कोई दुर्घटना घटने वाली है या कुछ अनिष्ट होने की सम्भावना है।
किसी शव को नहलाना और अर्थी को कन्धा देना पुण्य का कार्य माना जाता है। जिस व्यक्ति को नहीं जानते, कोई लावारिस लाश है अथवा कोई ऐसा मित्र या पड़ौसी हो जो निपट अकेला रहता हो, उसे देखने वाला कोई नहीं हो तो उसके शव को नहलाकर उसका अन्तिम संस्कार करने से बड़ा और कोई पुण्य नहीं होता। इसीलिए हमारे भारत देश में युद्ध के समय होने वाले शत्रुओं के शवों का संस्कार धर्मिक रीति से करने की प्रथा चली आ रही है। आज भी इस परम्परा का पूर्ववत पालन किया जा रहा है।
सारी कटुताएँ अथवा शत्रुता जीवित व्यक्ति के साथ निभाई जातीं हैं। मरने के पश्चात वे सब समाप्त हो जाते हैं। इसीलिए मरने वाले व्यक्ति की बुराई करने के लिए बड़े बुजुर्ग मना करते हैं। वे कहते हैं मृत व्यक्ति की जो भी अच्छाइयाँ थी, सदा उन्हें स्मरण करना चाहिए। व्यक्ति के अन्तिम समय में सारी नाराजगी को तक पर रख देना चाहिए। प्रयास यही करना चाहिए कि इस पुण्यकार्य में अपना योगदान दिया जाए। व्यक्ति की अन्तिम यात्रा में भाग लेना सामाजिक दायित्व कहलाता है, इसलिए इससे मुँह नहीं मोड़ना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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