तान्त्रिकों अथवा मान्त्रिकों के फेर में मनुष्य न ही पड़े तो अच्छा है। उनके चक्कर में पड़कर मनुष्य बरबाद हो जाता है। ये लोग अनावश्यक रूप से लोगों को बरगलाते हैं। उन्हें मन्त्रमुग्ध करके उनके सोचने की शक्ति को प्रभावित कर देते हैं। उस समय मनुष्य उनके कथनानुसार कार्य करने के लिए विवश हो जाता है। केवल गाँवों और कस्बों के लोग ही नहीं पढ़े-लिखे समझदार भी समय आने पर इनके चँगुल में फँस जाते हैं।
जो लोग इनके पास जाते हैं उन्हें भय दिखाकर, ये अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। ये अपने पास आए व्यक्ति को कहेंगे कि तुम्हारे घर में किसी की मृत्यु होने वाली है या कोई एक्सीडेंट होने वाला है या किसी ने कोई जादू-टोना तुम्हारे ऊपर किया है या तुम्हारे घर के पितर रुष्ट है इसलिए उनके घर के सदस्यों की परेशानी बढ़ रही है। यदि शीघ्र उपचार न किया गया तो परेशानी और बढ़ जाएगी।
कुछ ढोंगी तान्त्रिक सन्तान प्राप्ति के नाम पर बलात्कार व कार्य सिद्धि के लिए बलि के नाम पर किसी बच्चे अथवा इन्सान की हत्या जैसे अपराध भी कर देते हैं। फिर समाज व न्याय के दोषी ये सलाखों के पीछे भी चले जाते हैं। ऐसे अपराधी प्रवृत्ति के लोगों के कारण सारी जाती दोराहे पर लाकर खड़ी कर दी जाती है।
अपने घर पर कष्ट का समय आने वाला हो तो कोई कैसे शान्त रह सकता है। इस आने वाले कष्ट से मुक्त तो होना ही पड़ेगा। इसलिए वे उसके लिए उपाय करना चाहते हैं। बस यही तो वे तन्त्र-मन्त्र वाले चाहते हैं कि मनुष्य कमजोर पड़कर उनसे उपाय पूछे। तब वे मनमाना धन वसूलते हैं। उन्हें कहेंगे फलाँ पूजा करो, दान-दक्षिणा दो। अब व्यक्ति डरेगा कि यदि वह स्वयं पूजा करेगा तो कहीं कोई गलती हो जाएगी तो और भी अनिष्ट हो जाएगा। इसलिए वह उन्हीं को कहता है कि आप ही यह पूजा आदि कर दो। अब तो हो गई उनकी मौज। तब मनमाना धन वसूल करने की पूरी छूट उनको मिल जाता है।
ये तान्त्रिक लोग भी लोगों की हैसियत को देखकर दाम माँगते हैं। कई लोग जो उनकी मुँहमाँगी राशि देने में समर्थ नहीं होते, वे कर्ज लेकर उन्हें वांछित राशि देते हैं ताकि उनके घर पर कोई कष्ट न आने पाए। मनुष्य के पास सुख-दुख उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार मिलते हैं।
कुछ ही दिनों में दीपावली आने वाली है। प्रायः तान्त्रिक लोग होली, दीपवाली और नवरात्रों में श्मशान में जाकर तन्त्र साधना करते हैं। कुछ तान्त्रिक शव से साधना करते हैं। मनुष्य की खोपड़ी का भी साधना के लिए प्रयोग किया जाता है। इस विषय मे टी वी पर कई बार दिखाया गया है। बहुत-सी पुस्तकों में इन साधनाओं का उल्लेख किया गया है।
जो लोग केवल अपने लिए साधन करते हैं, वे सदा अपने में ही मस्त रहते हैं परन्तु कुछ साधक संसार में आकर जन साधारण को अपनी सिद्धियों के चमत्कारों से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। अपने पास आने वालों के समक्ष वे ऐसे चमत्कार दिखाते हैं जिनमें से कुछ चमत्कार तो साइंस पढ़ने वाले बच्चे भी कर सकते हैं।
गाँवों में लोग अधिक पढ़े-लिखे न होने के कारण हर बीमारी के लिए इन तान्त्रिकों के पास जाकर झाड़-फूँक करवाते हैं। उनका मानना है कि इस उपचार से हर रोग ठीक हो जाता है और रोगी स्वस्थ हो जाता है। परन्तु ऐसा नहीं होता। रोगियों का रोग जब बढ़ जाता है तब उसे अस्पताल ले जाया जाता है। उस समय तक बहुत देर हो जाती है और रोगी की जान पर बन आती है।
अपने विवेक की कसौटी पर कसकर ही निर्णय लें तो श्रेयस्कर होगा। ईश्वर यदि हमारे पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार यदि हमें दुख देता है तो वह कुछ समय के लिए ही होता है। जैसे सुख का समय बीत गया वैसे ही दुख का समय भी बीत जाएगा। बस सकारात्मक विचार अपनाने चाहिए। दुख का समय बीत जाएगा, यह सोचते हुए जीवन में आशा का दामन नहीं त्यागना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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