कुछ दिन पूर्व जी टी वी पर ब्लू व्हेल खेल के विषय में चर्चा हो रही थी जिसे मैंने सुना। इस चर्चा में वह बच्चा भी शामिल था, उसका नाम ध्यान नहीं, जिसने इस खेल को तीन-चार लेवल तक खेल था। बाद में उसे यह ध्यान आया कि वह अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान है। उसके चले जाने के बाद उनका क्या होगा? यह बच्चा तो समय रहते बच गया परन्तु उन बच्चों का क्या जो इस खेल को खेलते हुए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। उनके माता-पिता पीछे रोते-बिलखते रह जाते हैं।
दरअसल इस गेम में ऐसे लोगों को निशाना बनाया जाता है जो अवसाद में होते हैं या अकेलेपन का शिकार होते हैं। जब यह गेम वे अपने मोबाइल पर लोड करते हैं तो उसे उसी समय अपने बारे में पूरी जानकारी देनी होती है। ऐसे लोगों को 50 दिनों तक 50 टास्क दिए जाते हैं जिसमें आखिरी टास्क होता है खुद की जान लेना।
यह खेल चैलेंजर्स (खिलाडी अथवा प्रतिभागी) और प्रशासकों के बीच होता है। इसमें व्यवस्थापकों द्वारा दिए गए कर्तव्यों की एक श्रृंखला शामिल होती है जिसे खिलाड़ियों को पूरा करना होता है। प्रायः प्रतिदिन एक कार्य करना होता है, जिनमें से कुछ आत्म विकृति से भी जुडे होते है। कुछ कार्य अग्रिम में दिए जा सकते है, इस खेल के अन्तिम कार्य में आत्महत्या करने के लिए कहा जाता है।
कार्यों की सूची को 50 दिनों में पूरा किया जाना होता है। जिसमें - प्रातः 4.20 पर जागना, क्रेन पर चढ़ाई करना, एक विशिष्ट वाक्याँश या चित्र को अपने हाथ या बाजू पर गुदवाना, गुप्त कार्य करना, एक सुई को अपने हाथ या पैर में चुभोना, किसी पुल या छत पर खडा होना, व्यवस्थापक द्वारा भेजे गये डरावने संगीत को सुनना और वीडियो को देखना होता है।
कुछ दिन पूर्व जी न्यूज पर बता रहे थे कि विश्व में लगभग 3000 और भारत में 16 बच्चों की मौत इस आत्मघाती खेल से हो चुकी है। दुनियाभर में कई लोगों की जान लेने के बाद ब्लू व्हेल नाम का गेम भारत में भी तेजी से फैलता जा रहा है। कई मासूम बच्चे इस गेम का शिकार बन रहे हैं। इस ब्लू व्हेल गेम से बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। इन मौतों का कारण वे चैलेंज हैं, जो इस गेम को खेलने वाले बच्चों को दिए जाते हैं। यह आत्मघाती ब्लू व्हेल खेल, खेलने वाले को अन्त में आत्महत्या करने के लिए विवश किया जाता है और न करने वालों को डराया-धमकाया जाता है। आत्महत्या करने का तरीका कोई भी हो सकता है, जैसे बहुत ऊँची मंजिल से कूदना, रेल की पटरी पर लेट जाना आदि।
ये चैलेंज किस तरह के होते हैं, इनकी जानकरी NCPCR यानी National Commission for Protection of Child Rights ने अपनी वेबसाइट पर दी है-
1. हाथ पर रेजर की मदद से f57 कुरेदना और उसकी फोटो क्यूरेटर को भेजना।
2. सुबह 4.30 बजे उठना और वो डरावने, विकृत वीडियोज देखना जिन्हें क्यूरेटर ने आपको भेजा है।
3. बाजू को अपनी नसों के पास से होते हुए रेजर से काटना। ये कट ज्यादा गहरे नहीं होने चाहिए। केवल 3 कट हों और उनकी फोटो क्यूरेटर को भेजना।
4. एक पेपर शीट पर व्हेल बनाना और उसकी फोटो क्यूरेटर को भेजना।
5. अगर आप 'व्हेल बनने को तैयार' हैं तो पैरों पर रेजर से 'YES' के निशान में निशान बनाना। अगर आप तैयार नहीं हैं, तो आपको खुद को सजा देनी है और कई कट खुद को मारने होंगे।
6. हाथ पर f40 का निशान बनान और उसे क्यूरेटर को भेजना।
7. सुबह 4.20 बजे उठना है और जो छत सबसे ऊंची हो वहां पहुँचना है।
8. रेजर से हाथ में व्हेल की आकृति बनाना और उसकी फोटो क्यूरेटर को भेजना।
9. पूरा दिन डरावने वीडियोज देखना।
10. जो संगीत क्यूरेटर आपको भेजे उन्हें ध्यानपूर्वक सुनना।
11. अपने होंठो को काटना।
12. अपने साथ कुछ भी ऐसा करना जिससे आपको दर्द का अनुभव हो।
13. सबसे ऊंची छत पर पहुँचो और वहाँ किनारे पर कुछ देर खड़े रहो।
14. किसी पुल पर जाओ और वहां किनारे पर खड़े रहो।
15. छत पर जाकर किनारे पर बैठो और अपने पैरों को हिलाओ।
16. सुबह 4.20 पर उठो और रेलवे लाइन पर जाओ।
17. पूरे दिन किसी से भी बात मत करो।
18. हर रोज अपने शरीर पर एक कट मारो।
19. ऊँची बिल्डिंग से कूद जाओ और अपनी जिन्दगी को खत्म करो।
20. किसी क्रेन पर चढ़िए या इसकी कोशिश करिए।
उन सभी 50 कार्यों को करने वालों को सरलता से पहचाना जा सकता है। ये लोग खेलने वाले की सहनशक्ति की परीक्षा लेते हैं कि सामने वाला उनके करतबों से कहाँ तक डर सकता है। ऐसा व्यक्ति या बच्चा डरा-सहमा रहता है। उसे भूख नहीं लगती और सारा समय वह अकेला रहना चाहता है। उसके शरीर पर कुछ खुदा हुआ होता है। आपके आसपास अगर किसी भी ऐसे लक्षण देखने को मिलें तो जल्दी-से-जल्दी पुलिस को रिपोर्ट करें।
जो लोग इस गेम को बीच में छोड़ना चाहते हैं उन्हें जान से मार देने की धमकी दी जाती है। उन्हें यह भी धमकाया जाता है कि उनके माता-पिता या पूरे परिवार को मार दिया जाएगा। इसलिए डर के मारे भी बच्चे इस खेल की छोड़ने का साहस नहीं कर पाते। यदि ऐसे बच्चे या व्यक्ति अपने घर वालों को सब बात दें तो उनके घर के लोग उन्हें सान्त्वना देकर बचा सकते हैं। उन खेल प्रशासकों की वे पुलिस में शिकायत कर भी दर्ज कर सकते हैं।
माता-पिता का या दायित्व बनता है कि वे बच्चों को ब्लू व्हेल जैसे खेलों से सावधान करें। अपने बच्चों में आने वाले परिवर्तन पर ध्यान देकर उसका उपचार करें। बच्चे अधिक समय अकेले रहते हैं या माता-पिता की उपेक्षा के कारण स्वयं को अकेला समझने लगते हैं। इस कारण अवसादग्रस्त हो जाते हैं। उन्हें समय दें और बच्चों को आश्वस्त करें कि ये बच्चे उनके लिए अनमोल हैं, वे उन्हें किसी भी मूल्य पर खो नहीं सकते।
चन्द्र प्रभा सूद
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