जिन्दगी जीने के लिए प्रतिदिन एक नया और उपयोगी सूत्र हमें देती है। बस उस पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जो बुद्धिमान उस सूत्र को समझकर आत्मसात कर लेते हैं, वे आगे बढ़कर सफलता को छू लेते हैं। वे समाज में अलग से अपनी एक पहचान बना लेते हैं। वे जीवन में कभी हार नहीं मानते। जो लोग उसे जानकर भी किसी कारणवश समझना नहीं चाहते, वे कूपमण्डूक बनकर रह जाते हैं। उन्हें मनचाही सफलता नहीं मिल पाती।
अपने लिए एक नियम बना लेना चाहिए कि अपना हर काम स्वयं करेंगे। इस सूत्र को मानने के लिए आयु कोई बन्धन नहीं बनती। हाँ, यदि शरीर पूरी तरह से अशक्त हो जाए तो बात अलग है। घर में बच्चों के होने व भरा पूरा परिवार होने पर भी प्रयास यही करना चाहिए कि यथासम्भव स्वावलम्बी ही बना जाए। एक आयु के बाद यदि वे मना भी करें तो भी अपने कार्य स्वयं ही करते रहना चाहिए। इस तरह मनुष्य में कर्मठता बनी रहती है और बेचारगी का अहसास नहीं होता।
घर-परिवार के साथ रहते हुए भी अपनी दैनन्दिन आवश्यकताओं के लिए पति-पत्नी को एक-दूसरे की सहायता लेनी चाहिए, किसी अन्य की नहीं। इतने वर्षों के वैवाहिक जीवन के उपरान्त वो दोनों एक दूसरे की जरूरतों को अच्छी तरह समझते हैं। इसलिए उन्हें प्यार से एक-दूसरे की जरूरतों को समझ लेना चाहिए। समय के अनुसार उन्हें परस्पर व्यवहार करना चाहिए। यदि एक बार काम करना छोड़ दिया तो दूसरों पर निर्भरता हो गयी समझो। फिर इन्सान का मनोबल टूटने लगता है। उसे लगता है कि वह अब किसी काम का नहीं रह गया है। धीरे-धीरे ऐसा मनुष्य अवसाद ग्रस्त होकर बिस्तर ही पकड़ लेता है। उसका मन इसी उधेड़बुन में ही सदा लगा रहता है कि अपना काम किससे करवाऊँ।
जब तक हाथ-पाँव चलते हैं, तब तक आत्मनिर्भर रहा जा सके तो बहुत ही अच्छा है। बाद में तो चलने के लिए भी दूसरों का सहारा लेना पड़ता है। प्रयास यही करना चाहिए कि महीने में एक दो बार ऐसे ही कहीं घूमने निकला जाए। जब हम घूमना-फिरना बन्द करके खुद को घर में कैद कर लेते हैं तब फिर घर से बाहर निकलने में, अकेले जाने में हिचकिचाहट होने लगती है। तब चाहकर भी मनुष्य अपने बनाए हुए घेरे से बाहर नहीं निकल सकता। उसे पूरी तरह से बच्चों पर आश्रित हो जाना पड़ता है, जो उचित नहीं है।
जिन्दगी भर मनुष्य खूब काम करता है। दिन-रात एक कर देता है अपने घर-परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए। एक आयु के बाद अपने दायित्वों से मुक्त हो जाने के बाद उसे अपने लिए समय निकालना चाहिए। आजकल कहीं भी जाने-आने में कठिनाई नहीं होती। लोकल जाना हो तो कॉल करते ही टैक्सी हाजिर हो जाती है। यदि देश या विदेश में कहीं घूमने जाने हो तो एजेंट टिकट बुक करा देते हैं या इंटरनेट से भी टिकट बुक करवाई जा सकती है। आजकल टूर पैकेज लेकर भी सुविधा से यात्रा की जा सकती है। घर से स्टेशन या एयरपोर्ट जाने के लिए और वहाँ से होटल में जाने के लिए टैक्सी आ जाती है। इसी प्रकार वापिसी में भी स्टेशन या एयरपोर्ट पर जाने और घर आने के लिए टैक्सी मिल जाती है। होटल में कोई तकलीफ होनी नहीं है।
यदि मनुष्य थोड़ा-सा अपना ध्यान रख सके तो स्वास्थ्य आयु के अनुसार एकदम फिट रहता है। उसे सैर करने, योगासन करने व घूमने-फिरने से परहेज नहीं करना चाहिए। यदि रुचि हो तो फ़िल्म देखने भी जाया जा सकता है। मित्रों से मिलने के लिए भी समय निकाल जा सकता है। उनके साथ घूमने का, पिकनिक मनाने का कार्यक्रम बनाया जा सकता है। इसलिए जहाँ तक सम्भव हो सके, दूसरों का मुँह ताकना छोड़कर आत्मनिर्भर बनने का प्रयास चाहिए। अपने कार्यों के लिए पराश्रित होना छोड़ देना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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