दूसरे की बात को सुनकर, बिना सोचे-समझे यथावत रटकर सुना देने वाला व्यक्ति अपने नाम सदा के लिए गुलामी लिखवा लेता है। लोग ऐसे व्यक्ति को अपना गुलाम समझने की भूल कर बैठते हैं। एक प्रकार से वह उन लोगों के लिए मनोरञ्जन का कारण बन जाता है। इसके विपरीत अपनी बुद्धि का सदुपयोग करने वाला व्यक्ति चाहे कठोर ही क्यों न हो, स्वतन्त्रता का सुख भोगता है। वह किसी के अधीन नहीं रह पाता। उसका अपना ही एक स्वतन्त्र अस्तित्व होता है, जो सदा बना रहता है। वह अपनी ही धुन में मस्त रहता है।
इस बात को हम उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं। एक तोता जो सदा दूसरों को प्रसन्न करने के लिए उनकी बात को सुनकर वैसे का वैसा ही दोहरा देता है, सदा पिंजरे में ही कैद रहता है। उसका यह स्वभाव दूसरों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। लोग बार-बार उससे अपनी कही गयी बात को दोहराने के लिए कहते हैं। वह भी उनके मनचाहे शब्द उन्हें तथा उनके बन्धु-बान्धवों को सुनाकर प्रसन्न करने का प्रयास करता है। इस कारण सारी आयु पिंजरे में गुजरना ही उसकी नियति बन जाती है। वह वहाँ से चाहकर भी स्वतन्त्र नहीं हो पाता। वहीं अपना सिर टकराता रह जाता है पर मुक्त नहीं हो पाता।
इसके विपरीत कर्कश या कटु बोलने वाला कौवा सदा स्वतन्त्र रूप से उड़ता-फिरता है। किसी के घर की मुँडेर पर यदि वह बोले तो उसकी कटु बोली किसी को पसन्द नहीं आती। उसे कंकर मारकर वहाँ से भाग दिया जाता है। इसका कारण है किसी की चापलूसी न करना। जो कहना है साफगोई से कहता है। यानी वह सारा समय स्वेच्छा से इधर-उधर विचरण करता रहता है। किसी की आज्ञा का वह गुलाम नहीं बनता। इसीलिए वह जब किसी प्रिय के आने का सन्देश लाता है तो सबको अच्छा लगता है। और पितृपक्ष में जब अपनी जरूरत होती है तो लोग उसे आदरसहित बुलाकर उसे खिलाते हैं, सम्मानित करते हैं।
एक छोटा बच्चा जब बोलना आरम्भ करता है तब उसे नए-नए शब्दों को सीखने का बहुत शौक होता है। एक-एक शब्द को सीखने, बोलने और समझने में उसे समय लगता है। घर के सदस्य बार-बार एक ही शब्द बोलते हैं और बच्चा बिना उसका अर्थ समझे उन्हें दोहरा देता है। उसे अपने साथ इस प्रकार शब्द दोहराते सुनकर बहुत प्रसन्नता होती है और बच्चा भी खिलखिलाकर हँसता है। उसकी इस अदा पर माता-पिता बलिहारी हो जाते हैं।
परन्तु बड़ा होकर वही बच्चा यदि यही हरकत करे तो उसे सबकी फटकार सुननी पड़ती है, बड़ों के कोप का भाजन बनना पड़ता है। इसका कारण है कि अब उसे समझदार हो जाना चाहिए। उसे बच्चों वाली हरकतें छोड़ देनी चाहिए। कुछ बच्चे जो अपने पढ़ाए गए पाठ का रट्टा लगाकर परीक्षा में सफल होने का प्रयास करते हैं। उन्हें लोग रट्टू तोता कहकर तिरस्कृत करते हैं। यदि परीक्षा में थोड़ा घुमा-फिराकर प्रश्न पूछ लिया जाए तो फिर टाँय-टाँय फिस हो जाती है।
कुछ लोग अपनी बुद्धि का पूर्णरूप से उपयोग नहीं करते। वे कुँए के मेंढक की तरह अपने ज्ञान का दायरा विस्तृत ही नहीं करना चाहते। इसलिए वे रेस में पिछड़ जाते हैं और अपनी जग हँसाई करवा बैठते हैं। ऐसे लोग शून्य में ताकते हुए अपनी मूर्खता का परिचय देते हैं। अपनी अज्ञता को छुपाने के लिए उल्टे-सीधे बहाने गढ़ते हैं। इन लोगों का बस ईश्वर ही मालिक है।
अपने असूलों पर चलने वाला व्यक्ति कड़वा हो सकता है पर किसी का अहित नहीं करता। वह किसी की चापलूसी करके कुछ भी पाना नही चाहता। इसलिए हो सकता है उसका व्यवहार कभी खटक जाए। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि वह त्याज्य है। उसके पास जो पूँजी है वह अनमोल है। अतः मानसिक गुलामी की बेड़ियों को काट देना ही श्रेयस्कर हैं। अपने व्यवहारिक ज्ञान के बल पर मनुष्य को आगे बढ़ना चाहिए और समाज में अपना एक स्थान बनाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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